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डी. एम. का चश्मा

राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश में बंदर डी.एम. साहब का चश्मा लेकर भाग गया । बंदर नहीं जानता डी. एम. साहब के रूतबे को । उसे तो सारे मानुष एक जैसे ही नजर आते हैं । उसने डी. एम. साहब का चश्मा देखा और छीन कर भाग गया । हो सकता है कि डी. एम. साहबका चश्मा मंहगा हो । वे बड़े अधिकारी जो ठहरे । बड़े अधिकारी महंगा चश्मा लगाते हैं, धूप-छांव वाला । उनके चश्मे से सारा हरा ही हरा दिखाई देता है । धूप में छाया नजर आती है और सूखे में हरियाली । इस कारण से ही उन्हें न तो सूखा दिखाई देता है और न ही धूप । बंदर जब चश्मा लेकर भागा होगा तब उनकी नजरों में वास्तविकता आई होगी ‘‘अरे यहां तो बहुत धूप है……और गंदगी भी…….सड़कों पर गडढे हैं……’’ । उधर बंदर ने जब चश्मा लगाया होगा तो वह घबरा गया होगा ‘‘अरे मैं कहां स्वर्ग टाइप में आ गया’’ । बंदर को धूप से परहेज नहीं है, उसे कष्ट सहते आम आदमी को देखने में भी कोई परेशानी नहीं है ‘‘उसे क्या लेना देना’’ । वह तो ठाठ से किसी घर की मुंडेर पर बैठकर केला खाता रहता है । डी एम साहब का चश्मा एक अदना सा बंदर लेकर भाग गया, उनके अधीनस्थ कर्मचारी सकते में आ गए । प्रलिस वाले लाठी भांजने लगे । बंदर ने इपदेखा कर दिया । उसे पुलिस से भय नहीं लगता । पुलिस से भय तो आम आदमी को लगता है । आम आदमी की इसी कमजोरी का लाभ बिहार के एक शहर में कुछ लोगों ने उठाया । उन्होने एक पूरा फर्जी थाना ही खोल लिया वो भी बीच शहर में । एक थानेदार, कुछ पुलिस कर्मी और कुछ कर्मचारी । किराए के मकान में थाना चालू हो गया । फर्जी थानेदार पूरी वर्दी में कुर्सी पर बैठकर अपराधियों को सजा देने लगीं । फर्जी पुलिस वाले अपराधियों को पकड़कर थाने में लाने लगे और आमर्तार पर जैसा वास्तविक थानों में होता है ‘‘कुछ ले देकर मामला सुलझाया’’ जाने लगा । किसी को शक तक नही हुआ । थाने में बकायदा पोस्टिंग होती और नियुक्ति भी होती । इतने शानदार ढंग से चल रहा फर्जी थाना आखिर एक दिन पकड़ में आ ही गया । पर इस पूरे घटनाक्रम ने सभी की आंखे खोल दीं की कोई ऐसा भी कर सकता है । इधर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सीबीआई कर चपेट में आ गए । सीबीआई ने रेड डाली और घंटों उनके घर के कागज उलटाते-पलटाते रहे । मामाला दिल्ली सरकार की नई शराब नीति से जुड़ा है और इसके मंत्री मनीष सिसोदिया ही हैं । भाजपा को तो आप पार्टी के खिलाफ कुछ न कुछ चाहिए ही था तो शरब नीति पकड़ाई में आ गई । मालूम नहीं कि इस नीति में कितनी गड़बड़ी है पर भाजपा जिस ढंग से हो-हल्ला मचा रही है उससे तो ऐसा लगने लगा है कि कोई बहुत बड़ा घोटाला हो गया है । मनीश््रा सिसोदिया से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक सफाई दे देकर परेशान है, वे शरब नीति पर कम और शिक्षा नीति पर ज्यादा बोल रहे हैं । आप पार्टी को लगने लगा है कि उनकी शिक्षा नीति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ नीति है और वे उसके कांधे पर पैर रखकर अपनी छवि को मजबूत बनाने का प्रयास कर रहे हैं  । वैसे तो आप पार्टी ने अपने विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप भी लगायें हैं ।  मनीष सिसोदिया ने तो अपने पास रिकार्डिंग होने का दावा भी किया है । विधायकों की खरीद फरोख्त अब आम बात हो चुकी है । देश के विभिन्न राज्यों में विधायकों का दल बदलना और इस दलबदलने से सरकार बदलने का सिलसिला लम्बे समय से चल रहा है । स्थिति यह है कि राजनीतिक दल अपने ही विधायकों को शक की नजर से देखते हैं और एकाध दिन भी यदि किसी विधायक का फोन बंद हो जाए तो हाईकमान तक पसीना-पसीना हो जाता है । यह लोकतंत्र की सबसे अधिक शर्मनाक तस्वीर है । जरा सी आहट होते ही विधायकों को सैर सपाटे के लिए ले जाया जाता है और जीन्स टी शर्ट पहने विधायक अपना सारा कामकाज छोड़कर महंगे-मंहगे होटलों में समय व्यतीत करते दिखाई देते हैं । राजनीतिक दल कोई भी हो वह अपने विधायकों पर भरोसा नहीं कर पाता और उन्हें सैर सपाटा कराता रहता है । महाराष्ट्र की पूरी सरकार ही होटल में सैर सपाटे कर रहे उनके ही विधायकों की मौज मस्ती की भेंट चढ़ चुकी है । पहले कोप भवन होता था । कोई कोप भवन में चला जाए तो प्रजा अनुमान लगा लेती थी कि कुछ गड़बड़ होने वाली है । अब भवन नहीं रहे उनका स्थान बड़े-बड़े होटलों ने या रिसाॅर्टों ने ले लिया है । कोई गुमनाम व्यक्ति ऐसे होटलों का लाखों रूपओं का बिल चुकाता है और सारे लोग सारी दुनियादारी की चिन्ता को छोड़कर मस्ती करते रहते हैं । वे जानते हैं कि वे जब इस सैर सपाटे से तरोताजा होकर निकलेगें तब उनके लिए अच्छे दिन इंतजार कर रहे होगें । अभी तो झारखंड के विधायक सैर सपाटे पर निकले हैं । झारखंड में मिलीजुली सरकार काम कर रही है उसमें कांग्रेज के विधायक भी हैं और हेमंत सेरोन के विधायक भी । हेमंत सोरेन को कोयला खदान अपने नाम से लीज पर ले लेने के चलते चुनाव आयोग की सिफारिस पर राज्यपाल जी द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया है । भगदड़ न मचे इसके चलते वे अपने विधायकों के साथ सैर सपाटे पर निकल पड़े हैं । इन विधायकों को अपने अमूल्य वोट से चुनने वाला आम मतदाता ठगा सो महसूस करता रहता है । मतदाता को भी अब भरोसा नहीं रहा कि वे जिस पार्टी के चुनाव चिन्ह की बटन दबा रहे हैं वह चुनाव चिन्ह समय के साथ जाने कौन सा रूप् ले ले । एक बार चुन जाने के बाद चुने हुए माननीय को अपने मतदाता से कोई सरोकार नहीं रहता । जब नए चुनाव आयेगें तब नये ढंग से लालीपाप देकर समझा दिया जायेगा । आम मतदाता आज भी निरीह ही बना हुआ है । माननीयांें को सैर सपाटा कराने का प्रयोग अब पंचायत और नगरपालिका स्तर पर भी आजमाया जाने लगा है । हाल ही में मध्यप्रदेश में संपन्न हुए नगरीय चुनावों में नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी इस स्कीम के तहत सैर सपाटा करने का अवसर प्राप्त हुआ । बड़े स्तर से शुरू हुआ खेल छोटे-छोटे शहरों तक, दूरदराज के गांवों तक पहुंच गया बधाई हो हम वाकई प्रगति पथ पर कदम बढ़ा रहे हैं । मध्यप्रदेश में तो स्थिति यह रही कि सबसे अधिक जनप्रतिनिधि जिस पार्टी के विजयी हुए वे अपना अध्यक्ष ही नहीं बना पाए कोई दूसरी पार्टी का अध्यक्ष बन गया । सैर सपाटा और माया मोह का चक्कर है । किसे पता किसने किस को वोट देकर अपने ही दल के साथ गद्दारी कर ली । पर पता सब चल जाता है इसके बाद भी उन्हे पुचकार कर रखना पड़ता है क्योंकि यह सिलसिला तो अनवरत चलने वाला है । मध्यप्रदेश में अमित शाह के दोरे के बाद यहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को बदले जाने की चर्चा भी तेज हो गई । एक तो उन्हें भाजपा की केन्द्रीय समिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया और अमित शाह ने भी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दी । प्रश्न इसलिए ही उठ खड़े हुए । अब आगे क्या होगा कोई नहीं जानता सब भविष्य के गर्त पर है ।

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