Latest Updates

 नशे के मरघटघट (धूम्रपान निषेध दिवस पर)

 घट रहीं सांसें सिसकती जा रही है जिंदगी,

जिंदगी को विष नशीला दे रही है जिंदगी।

विषैली खुशियां लपेट तन यहां पर थिरकते,

निराशा के द्वीप में अनगिन युवा मन भटकते,

खिलखिला कर फिर सिसकियां भर रही है जिंदगी।

जिंदगी को विष नशीला दे रही है जिंदगी।

पी रहे हैं सुरा को या सुरा उनको पी रही,

जी रहे हैं तृप्ति में या तृषा धड़कन सी रही,

छटपटा कर शांत होती जा रही है जिंदगी,

जिंदगी को विष नशीला दे रही है जिंदगी।

उमर को नीलाम करते राष्ट्र के विषधर यहां,

बेचते खुलकर नशीला जहर सौदागर यहां।

मौत बिकती है कहीं पर बिक रही है जिंदगी,

जिंदगी को विष नशीला दे रही है जिंदगी।

महल और कुटिया के दीपक बुझते जाते हैं,

घरों से अर्थी जनाजे उठते जाते हैं।

नशे के मरघट में जलती रही है जिंदगी।

जिंदगी को विष नशीला दे रही है जिंदगी।

गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *