डाॅ. अशोक कुमार ज्योति ने हाल ही में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विषय के सहायक प्रोफेसर के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया है।
दरभंगा जिले के किरतपुर प्रखंड के ढाँगा गाँव में जनमे डॉ. अशोक कुमार ज्योति हिंदी-विषय में स्नातकोत्तर, पीएच्.डी., शिक्षा-विशारद हैं एवं उन्हें पत्रकारिता में भी स्नातकोत्तर-उपाधि प्राप्त है। इनके पिता जी श्री सुरेंद्र प्रसाद बिहार सरकार के सचिवालय की नौकरी से अवकाश-प्राप्त हैं।ये हिंदी के कवि, लेखक और संपादक हैं। ये देशभर के अनेक मंचों से काव्य-पाठ कर चुके हैं। देशभर के अनेक समारोहों में इनकी मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, लोकार्पणकर्ता, मुख्य वक्ता, अध्यक्ष, मंच-संचालक जैसे अनेक पद-दायित्वों के साथ सहभागिता रही है।
इनकी लिखित, संपादित और अनूदित 14 पुस्तकें प्रकाशित हैं। इन्हें भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा हिंदी-भाषा में ‘हिंदी-कविता में भारत के हिमकिरीट हिमालय का सौंदर्य और ऐश्वर्य’ विषय पर शोध-कार्य के लिए जूनियर और ‘बिहार की नदियों का सांस्कृतिक अनुशीलन’ विषय पर सीनियर फेलोशिप प्रदान किए गए। अभी ये मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संस्था भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद् के अंतर्गत सीनियर फेलोशिप के तहत ‘आपातकालीन हिंदी-साहित्य में व्यंग्य-बोध और उसकी सामाजिक प्रासंगिकता’ विषय पर शोधरत हैं।
‘निशांतकेतु की कहानियों में मानवतावादी संवेदना का प्रयोग-शिल्प’, ‘हिंदी-कविता में राष्ट्र-गौरव हिमालय’, ‘चंद्रकांता के उपन्यास ‘कथा सतीसर’ का कथा-तत्त्व’, ‘लुधियाना जिले के हर घर में शौचालय’, ‘अस्पृश्यता का अंत’, ‘निशांतकेतु की प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘प्रेमचंद की दलित चेतना की कहानियाँ’, ‘डाॅ. बालशौरि रेड्डी की प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘गर्भावस्था’, ‘निशांतकेतु की दलित-चेतना की कहानियाँ’ इत्यादि इनकी कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं। देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में इनके लगभग बीस से अधिक शोध-आलेख प्रकाशित हैं। इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में पचीस से अधिक शोध-पत्रों के वाचन का अवसर मिला है। इन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी के लिए माॅरीशस और नेपाल देशों की भी यात्राएँ की हैं।
ये वर्षों तक सुलभ इंटरनेशनल से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका ‘चक्रवाक्’ और ‘सुलभ इंडिया’ के सह-संपादक रहे। इससे पूर्व मनीषी विद्वान् पंडित विद्यानिवास मिश्र जी के सन्निधान में ‘साहित्य अमृत’ के उप-संपादक के रूप में भी इन्होंने अपनी सेवाएँ दी थीं। इन्होंने हिमाचल-प्रदेश विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी-संस्थान, दिल्ली-केंद्र में हिंदी और पत्रकारिता के विषयों का अध्यापन-कार्य भी किया है।
ये प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था सुलभ साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, आर्यावर्त साहित्य संस्कृति संस्थान, सुगति सोपान, नारायणी साहित्य अकादमी, भारतीय साहित्यकार संगठन, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति, अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन जैसी अनेक संस्थानों के परामर्शमंडल और कार्यसमिति के सदस्य हैं। इन्हें देशभर में हिंदी-वर्तनी के शुद्धतम प्रयोग के लिए जाना जाता है। यह गुण इन्हें अपने गुरु आचार्य निशांतकेतु जी से मिला है, जो लगभग 150 पुस्तकों के लेखक हैं और पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रहे थे। डाॅक्टर अशोक ने ‘निशांतकेतु की कहानियों में मानवतावादी संवेदना का प्रयोग-शिल्प और परिभाषा’ विषय पर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से लंगट सिंह काॅलेज की हिंदी-विभागाध्यक्ष डाॅ. सुधा कुमारी के निर्देशन में पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की थी। इन्हें अनेक साहित्यिक-सामाजिक संगठनों द्वारा पुरस्कृत किया गया है, जिनकी संख्या 20 से अधिक है।
डाॅक्टर अशोक वर्तमान में गुरुग्राम में अपनी धर्पमत्नी डाॅ. प्रभा शर्मा, जो दिल्ली के एक निजी विद्यालय में हिंदी-विषय की पी.जी.टी. हैं, और दो पुत्रियों सुश्री कांक्षा कौमुदी और सुश्री अतिमा एलिका के साथ निवास करते हैं। ज्येष्ठ पुत्री कांक्षा ने जीवविज्ञान-विषय के साथ बारहवीं की परीक्षा इसी वर्ष 91 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की है। अतिमा एलिका छठी कक्षा में पढ़ती हैं।
डाॅ. अशोक कुमार ज्योति ने अपने जीवन में अनेक संघर्षों का सामना किया है, किंतु इन्होंने अपना लेखन और पठन-पाठन हमेशा जारी रखा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विषय के सहायक प्रोफेसर बनने पर इन्हें पूर्व विधायक डाॅ. इजहार अहमद, श्री अनिरुद्ध सिंह, डाॅ. राम नंदन रमण, इंजीनियर श्री रामनारायण यादव सहित इलाके के अनेक गण्यमान्य व्यक्तियों ने हार्दिक बधाई दी है।