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अनुरागी माँ (कविता-8)

  संसार- सरित में जब भटका , 
  ममता नौका लेकर आई । 
  जब भँवर बनी जीवन- धारा ,
   माँ शक्ति- पुञ्ज बनकर आई ।।

कन्टकमय पथ विपदाओं में ,
उसने चलना सिखलाया है ।
निज बाँह- पालने झुला- झुला ,
अधरों से चूम सुलाया है ।।
अज्ञान- तिमिर जब गहराए ,
तब दिव्य- ज्ञान लेकर आई ।
संसार- सरित ………

  जब आह कभी निकली मुख से , 
  तब स्नेहमयी माँ सिहराई ।
  नयनों में नेह- सुधा भर- भर , 
  करुणामय  पलकें भर आईं ।। 
  संताप भरे जीवन- पथ पर , 
   आशीष हृदय में भर लाई

। संसार ………..

तुम हो उदारिणी कल्याणी ,
काली अम्बे सम शक्तिमयी ।
जगवीर प्रसविनी सृष्टि बिन्दु , विदुषी दुःखहरिणी प्रेममयी ।।
तारों से छीन प्रकाश पुञ्ज ,
नव दीपक ज्योतित कर लाई । संसार …….

  अनुरागी माँ को श्रद्धानत , 
   निज भाव- सुमन अर्पण करता ।
  हो पूजनीय तुम हर युग में ,
  जग कोटि- कोटि वन्दन करता ।। 
  तीनों लोकों के सुख को माँ ,
   अपने आँचल में भर लाई ।  
   संसार सरित ........

  .    .  डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव 
                       लखनऊ

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