कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
ठंडी चाय में भी उबाल आता है साहब । कम से कम मध्यप्रदेश की ठंडी चाय में तो ऐसा उबाल आया कि एक अधिकारी को अपनी कुर्सी पर ही खतरा महसूस होने लगा । वे मुख्यमंत्री हैं उन्हें सब चीजें गर्म चाहिए । वैसे हो सकता है कि उन्हें गर्म न चाहिए हो पर प्रोटोकाल नाम की भी तो कोई चीज होती है । कई लोग गरम चाय को ठंडा करके पीते हैं पर इसके बाद भी चाय तो उन्हें गरम ही चाहिए । मुख्यमंत्री जी भी ठंडी चाय पीते हों पर उनके सामने गरम चाय परोसी जाने चाहिए थी । प्रोटोकाल का उल्लंघन हो गया और चाय परोसने वाले अधिकारी को नोटिस थमा दिया गया । ठंडी चाय ने उसकी अच्दी भली चल रही नौकरी में गर्माहट ला दी । मुख्यमंत्री हों या और कोई भी जनप्रतिनिधि वे आवभगत के आदि हो चुके होते हैं उन्हें बड़ा अधिकारी भी अदना सा ही जान पड़ता है । गुस्सा वे स्वंय नही जताते इसके लिए भी उनके पास अधिकारी होता है जो उनकी ओर से गुस्सा बयां करता है । आम आदमी जब गुस्सा होता है तो अपने नथुने फुला लेता है पर जनता के प्रतिनिधि जिन्हें जनप्रतिनिधि कहा जाता है वे ऐसा नहीं कर पाते वे मुस्कुराते हुए अपने नथुने फुलाते हें और ‘‘चलो मैंने माफ किया’’ कहकर अपना गुस्सा दिखाते हैं । ठंडी चाय का गरम मामला जब अखबारों की सुर्खियां बना तो उन्हें माफ कर दिया गया । चाय का क्या है साहब की टेबिल तक आते-आते ठंडी हो जाती है अब वह बेचारा कोई जलता हुआ स्ओव हाथ में लिए थोड़ी न घूमेगा । वैसे अब तो यही होने वाला है कई प्रोटोकाल अधिकारी इस घटना से सबक लेगें और चाय हमेशा गरम ही बनी रहे इस पर शोध करेगें, साहब के हाथों में जाने वाली चाय के उपर से भाप उड़ती दिखाई दी जाने चाहिए । यह भाप ही तो बादल बनाती है और बादल पानी बरसाते हैं । पानी बरस रहा है कुछ राज्यों में पर कुछ राज्य अभी चातक जैसे ‘‘पीहू…पीहू ’’ की टेर लगा रहे हैं । जहां पानी बरस रहा है वहां इतना बरस रहा है कि मैदान का पानी तक आम व्यक्तियों के घरों में घुसकर उन्हें नहला रहा है । वे कीचड़ से सने अपने घरों को देखकर पानी जा….जा की टेर लगा रहे हैं । नाली और नाले तो साफ कराये गए थे कम से कम आफिसों की फाइलों में जमा बिल तो यही बता रहे हैं कि करोड़ों रूप्ये खर्च हो गए नालियों की साफ-सफाई कराने में पर पानी है कि नाली की बजाए सड़कों से होता हुआ ड्राइंग रूम में आकर आराम फरमा रहा है । गरम चाय से उठने वाली भाप का कमाल है और जहां ठंडी चाय रही वहां पाी भी कम ही बरसा । ऐसे कुछ राज्य संभावित सूखे के भय से भयभीत हैं । बरसा नहीं तो पानी कहां से मिलेगा । पानी की बरबादी करके हम बरसात में ही वाटर लेबल बढ़ जाने के सपने देखते हैं । खेतों कह सूखती फसलों के संभावित खतरे को देखते हैं । वैसे भी यदि पानी हो और बिजली न हो तो भी फसलें सूख ही जाती हैं । कई राज्यों में इस बार बिजली ने भी परेशान किया । बेचारी बिजली जैसे-जैसे अपना उत्पादन बढ़ाती है वैसे ही वैसे उसकी खपत बढ़ती जा रही है कहीं कोयला नहीं मिल रहा तो कही पानी की कमी हो रही है । वैसे भी अब तो राजनीतिक दलों ने फिरी बिजली देने का लालीपाप दे दिया है । बिजली फिरी, पानी फिरी, राशन फिरी, मकान तो प्रधानमंत्री दे ही रहे हैं, सब कुछ फिरी ऐसी जिन्दगी भला कहां मिलेगी दोबारा । वे शान से अपना दिन गुजारते हैं और मध्यमवर्गीय दिनभर आपाधापी में लगा रहता हेै, वह मेहनत करता है, कमाता है फिर कमाई का टैक्स देता है, इस टैक्स से गरीबों के लिए फिरी वाली योजनायें संचालित होती हैं । यह भी चक्र जीवन का । वे शेर जैसा दहाड़ते हैं और कई बार शेर जैसा सौम्य चेहरा बनाते हुए केवल दांत दिखाते रहते हैं । ऐसे ही शेर के मुख को लेकर विवाद हो रहा है । शेर तो हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है, हमारे गौरव का प्रतीक है इस कारण से ही तो इसे नई बने ससंद भवन के सबसे उपर कांस्य प्रतिमा के रूप में लगाया गया है । शेर का मुख ख्ुला हुआ है और चेहरे पर तेज है । कलाकृति का जब भी हूबहू निर्माण किया जाता है तब परिवर्तन तो संभावित होता है । शेर का मुख कुछ बदल गया पर भाव नहीं बदले । भावों का जन्म तो हमारी सोच से होता है । कई बार क्रूर चेहरा भी सौम्य दिखाई देता है तो कई बार सौम्य मुख भीक्रूर । भारतवासियों के दिलों मेें क्रूरता होती ही नहीं है, उनकी सौम्यता ने ही उन्हें मान-सम्मान दिलाया है । संसद भवन में लगे इस नए स्वरूप् को भी विवादों की जगह विकास का प्रतीक माना जाना चाहिए । देश सुनियोजित तरीके से नफरत के बीज बोये जा रहे हैं । जाहिर है कि ऐसी योजना सिवय पाकिस्तान को और कोई बना भी नहीं सकता । अपने तथाकथित आकाओं के बल पर भारत के शांत वातावरण में नफरत के बीज बोकर वो अशांति फेलाना चाहते हैं । राजस्थान से लेकर अमरावती तक की घटनाओं ने उनकी इस योजना को सबके सामने ला ही दिया है । तोलमोल के बोल वाले हमारे वातावरण को आपसी भाईचारे की मजबूत दीवार के ढहाने के लिए उपयोग में ले रहे हैं । इसे रोका जाना चाहिए । नफरत शब्द विदेशी है और हम किसी विदेशी वस्तुओं को उपयोग में नहीं लाते । महाराष्ट्र में अप्रत्याशित ढंग से नई सरकार बन गई । नया मुख्यमंत्री और नई केबिनेट । लोग आज तक समझने का प्रयास कर रहे हैं कि यह सब यकायक हो कैसे गया । लगतार चले घटनाक्रम ने तात्कालीन सत्ता की दीवार को ढहा दिया जिसे मजबूत दीवार माना जाता रहा है । अपनों ने धोखा दे दिया पर धोख देने वालों के अपने तर्क हैं । राजनीति में तर्क और समय को अपनी मुट्ठह में कैद कर लेना आवश्यक माना जाता है । आम जनता का इससे सबसे कोई लेना देना नहीं होता । वह वोट देकर निश्चिंत हो जाता है पर चुने गए जनपतिनिधि अपने भविष्य और वर्तमान के हिसाब से अपना रास्ता बनाते रहते हैं । वे दिल बदलते हैं, दल बदलते हैं और सत्ता की मलाई खाते हैं । राजनीति का माहौल अब हारर फिलम की तरह सस्पेंश भरा हो चुका है । कोई नहीं जानता कि कल क्या होने वाला है और जो होने वाला है वह कितने दिनों तक होता रहेगा । बहबहाल महाराष्ट्र निपट गया, गोवा की तैयारी है और बाकी राज्य निशाने पर होगें मालूम नहीं हमको तो तब पता चलता है जब विधायक होटलों की सैर करने लगते हैं ।