(Smt Kavita Malhotra)
विकास के नाम पर समूचा विश्व जिस गति से आगे बढ़ रहा था, आज उसकी रफ़्तार थम सी गई है। न तो कोई कारण ही किसी की पकड़ में आ रहा है न ही अब तक कोई निवारण हाथ आया है।
कारण जो भी हो एक बात तो तय है कि समूचे विश्व से अहम का वहम तो मिटा ही दिया इस कोरोना वायरस ने।
आज जब बात औक़ात की आई है तो क्यूँ ना अपने अँदर की सोई चेतना की लौ को जागृत करके आफताब बनाने की कोई तरकीब निकाली जाए।अब तो समय भी है और अवसर भी।
आज वास्तव में समूचे विश्व को उस साधना की ज़रूरत है जिससे अपने आज को भी तराशा जाए और आने वाले कल को भी।वर्तमान में रहना सीख पाएँ, जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करके, किसी पर कभी कोई ऊँगली न उठाएँ।प्रकृति के रहस्य बहुत सरल हैं। यदि प्रकृति से सामँजस्य बिठाना है तो, अपनी चेतना से स्वार्थ की धूल झाड़नी होगी और वैश्विक उत्थान की राह पर एकजुट होकर चलना होगा।तभी तो रामराज्य आएगा।
बॉलिवुड अभिनेता इरफान खान का यूँ चले जाना उनकी बोलती ख़ामोशियों के शोर का अनाहद नाद है, जो पवित्र रमज़ान के दिनों में समूचे भारतवर्ष के लिए एक प्राकृतिक सँदेश छोड़कर गया है –
क्या लाया था जो खोएगा
मेरे जाने पे बाग़बान रोएगा
ना मैं हिंदू बन कर मरूँगा
न मुस्लिम की मौत वरूँगा
इँसान बन कर जिया सदा
मैं इँसान बनकर ही मरूँगा
न हिंदू न मुस्लमान रोएगा
मेरी मौत पर इँसान रोएगा
कितनी खूबसूरत बात कह गए इरफान जाने से पहले।उनकी सोच को नमन
विनम्र श्रद्धाँजलि