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युवाओं में अतिरेक भविष्य की चिंता से बिगड़ रहा वर्तमान ..!

कैसी विडम्बना है कि आज हमारा देश विज्ञान से कटता जा रहा है। हम भूल रहे हैं कि धर्म से नौकरियां पैदा नहीं हो सकतीं, नेताओं के पीछे चलकर रोजगार पैदा नहीं हो सकते। केवल विज्ञान ही तय कर सकता है हमारा भविष्य। फिर भी, हम धर्म, मजहब, मंदिर, मस्जिद, हिंदू, मुसलमान, बेकार के, फालतू के, अर्थहीन मुद्दों पर सिमटकर रह गए हैं। देश में धर्म, ईश्वर, मंदिर और जात- पात की बढ़ती चर्चा से देश के भविष्य को लेकर गहरी चिंता होती है। पता नहीं ऐसी चर्चा देश को कहां ले जाकर छोड़ेगी। धर्म का “चोला” ओढ़ी हुई विश्व की “सरकारें” और “अदालतें” समाज  का “भला” नहीं कर सकतीं। किसी भी देश को पूरी तरह विकसित तभी कहा जा सकता है जब उसके नागरिक स्वस्थ हों, शिक्षित हों, क्योंकि जब वे स्वस्थ होंगे तभी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर पायेंगे और जब वे अच्छे शिक्षित होंगे तभी अच्छे कारोबार और अच्छी नौकरियाँ कर पायेंगे और देश को विकास के रास्ते पर ले जा पायेंगे।  किसी भी देश के नागरिकों को अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा और रोज़गार मुहैय्या कराना उस देश की सरकार की “ज़िम्मेदारी” होती है। दुनिया में बहुत से देशों में ऐसा हो रहा है कि वहाँ की सरकारें अपने देश के नागरिकों को मुफ्त या सस्ती शिक्षा, अच्छा और सस्ता इलाज, नौकरियाँ या रोज़गार उपलब्ध” करा रही हैं। लेकिन कैसी विडंबना है कि हमारे देश की सरकार, कानून और अदालतें जब कुछ अच्छा सोचती हैं तो विपक्ष की सेक्युलर ताकतें उसे रोक देती है , बजाय अपने नागरिकों को अच्छी और सस्ती शिक्षा, अच्छा और सस्ता इलाज, आसानी से नौकरियाँ, कारोबार, या रोज़गार, मुहैय्या कराने की बजाय, मंदिर और मस्ज़िद के फ़ैसले कर रही हैं, धर्मों और मज़हबों में हस्तक्षेप कर रही हैं। मूलभूत समस्याओं पर, देश व समाज के ज्वलंत मुद्दों पर फैसले करने के बजाय फ़ैसले कर रही हैं कि मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ी जाये या नहीं? मंदिर में किसको घुसने दिया जाए, किसको नहीं ? हम क्या खायें ? हम क्या पहनें? हम किसके साथ क्या संबंध बनायें? हम किससे प्यार करें, किससे शादी करें? बावजूद कि  इन  “फ़ैसलों” और “कानूनों” से न तो देश का भला होगा, और नहीं लोगों का। देश का भला तो देश के नागरिकों के शिक्षित होने, स्वस्थ होने, और रोज़गार और कारोबार अच्छा चलने से होगा। यदि सचमुच हमारी सरकारें और अदालतें देश के लोगों का भला करना चाहतीं हैं, तो उन्हें ऐसे “कानून” बनाने चाहिए जिससे “प्राइवेट स्कूलों” की “लूट” ख़त्म हो, सभी को सस्ती और अच्छी शिक्षा मिले; ऐसे कानून बनाने चाहिए जिससे प्राइवेट अस्पतालों और डॉक्टरों की लूट पर लगाम लगे, और लोगों को “सस्ता इलाज” आसानी से मिल सके। उन्हें ऐसे कानून बनाने चाहिए, जिससे लोगों के कारोबार बढ़ें, रोज़गार और नौकरियों के अवसर पैदा हों । आज की आधुनिक शिक्षा के नाम पर रोजगार के धंधे और स्लेव की कटघड़ी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं न कि शिक्षित किया जा रहा है। मनुष्य के मनुष्यत्व को विकसित न कर,मानुष के मनुष्यत्व को धंधा करने को सिखाया जा रहा, न कि शिक्षित क्या जा रहा। आज के आधुनिक शिक्षा को मनुष्य के इस अशिक्षित होने के कारण अनएजुकेटेड माना जाना चाहिए, आज का मानुष तो सिर्फ देखने भर के लिए पर अंदर से मनुष्य रूप में जानवर से भी बद्तर है इंसान बने कहां? अगर इंसानियत थोड़ी सी भी बची होती तो ,परिवार संगठित होता,  समाज संगठित होता,  देश संगठित होता, विश्व संगठित होता। आज विश्व भर में आधुनिक शिक्षाधारियों और डिग्री धारियों के रहते सब कुछ विखंडित है पर सिर्फ पूंजीवादी व्यवस्था ही संगठित है तो क्या फायदा आधुनिक पूंजीवादी शिक्षा का जिससे मानवता ही बिखरी पड़ी है। आज की आधुनिक शिक्षा द्वारा मनुष्यत्व को बिना विकसित किए ही इंजीनियर, डॉक्टर, साइंटिस्ट बनाकर क्या साबित करना चाहते हैं? आज का मानव डिग्री धारी होने के बावजूद भी जानवर से भी बदतर है,परिवार बना न सका, समाज बना न सका, दुनिया को संगठित कर न सका,कौवा चला हंस की चाल, जैसी हालत है। आज की आधुनिक शिक्षा के मानव प्रगतिशील तो हो ही न सका, बल्कि पूंजीवादी कंपनियों के नौकरी कर स्लैब बना मानव सिर्फ गुलामी कर रहा, उसकी औकात ही क्या है सिवाय अपने आधुनिक भरी जिंदगी को भरपूर करने के अलावा? आज की आधुनिक शिक्षा द्वारा आज का मानव सिर्फ सिर्फ एक ज्ञानी पुरुष बन सका न कि मनुष्यत्व में कुछ तब्दीली आई बल्कि पूंजीवादी व्यवस्था में तब्दीली आई?  आत्म मोक्षार्थम जगत् हिताय च ।

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर

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