कोरोना जैसी महामारी में भी हमने जितना लूटते बना हमने लूटें कभी डॉक्टर बनकर तो कभी पुलिस बनकर , कभी व्यापारी बनकर तो कभी सस्ते गल्ले का दुकानदार बनकर । सरकारे ने भी आम जनता को लूटने में कोई कोर कसर नही छोड़ी । विश्व का सबसे बड़ा नोटतांत्रिक देश भारत बन ही गया ,जहां “लोक” नोट के आगे नतमस्तक हैं। यही हाल चुनावों में भी रहा जब कुछ विशेष पदों पर नोट से ही हार-जीत तय करना है तो क्यों इस ख़तरनाक परिस्थिति में हज़ारों लोगों की जान पर खेलकर चुनाव कराया गया ? इससे बेहतर होता कि आप अमुक पद के प्रमाणपत्र की नीलामी कराते जो ज़्यादा बोली लगाता उसका नाम लिखकर कर प्रमाण पत्र उसे सौंप देते।इससे एक लाभ तो यह होता कि अभी जो सिस्टमजीवियों को ₹20-25 लाख में ही अपनी हिस्सेदारी बांटनी पड़ती है व एक के हिस्से में कुछ लाख रुपए ही आते हैं उससे निजात मिलती और सबका मार्जिन ऑफ़ प्रॉफिट बढ़ता क्योंकि नीलामी का बेस प्राइज़ ही ₹15-20 लाख रखना होगा। आपदा को अवसर’ में बदलने वालो की कमी नहीं है । कोविड की दूसरी लहर की शुरुआत में हम जिस तरह का मंजर देख रहे हैं वो दिल दहलाकर रख देने वाला है । ऐसे में हमारे बीच उन लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो आपदा को अवसर में बदल रहे हैं । तो आइये जानें कोविड की इस दूसरी लहर में वो लोग कौन हैं जो शासन प्रशासन की नजरों में धूल झोंकते है जमकर कालाबाजारी को अंजाम दे रहे हैं । अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य करीब एक साल बाद भरात में स्थिति जस की तस बनी हुई है और मौत का ग्राफ दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है । साल 2020 में जब दुनिया इस वायरस के कोप से थर थर कांप रही थी यहां भारत में हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तमाम तरह की बातें करते सुना । साल 2020 में मार्च के बाद हमने कई मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्र से संबोधित होते देखा और एक दिन वो भी आया जब हमने प्रधानमंत्री को ये कहते सुना कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीवन गुजरना है और इस आपदा को अवसर में बदलना है ।कोविड की इस दूसरी लहार में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है लोगों को आपदा को अवसर में बदलते देखना । लोग जो इस दूसरी लहर में न केवल शासन प्रशासन की नजरों में धूल झोंक रहे हैं बल्कि कालाबाजारी को अंजाम देते हुए जमकर आपदा को अवसर में बदल रहे हैं । प्राइवेट हॉस्पिटल के मालिकान बिल्कुल गिद्घ सरीखे व्यवहार कर रहे । आज जैसे हालात हैं वो तमाम लोग जो किसी अपने के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल का रुख कर रहे हैं उनका भरपूर शोषण प्राइवेट अस्पताल का मैनेजमेंट कर रहा है । क्या देश की राजधानी दिल्ली क्या लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, आगरा और वाराणसी हर जगह स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है । चूंकि प्राइवेट अस्पताल फौरन ही मरीज को अपने आईसीयू में डाल दे रहे हैं. इस आपदा में हम कई ऐसे अस्पतालों के बारे में सुन चुके हैं जो मरीजों से आईसीयू के नाम पर हर दिन के हज़ारों रुपये ऐंठ रहे हैं।इन अस्पतालों में कालाबाजारी का लेवल क्या है इसका अंदाजा इसी को देखकर लगाया जा सकता है कि आईसीयू चार्ज के अलावा मरीज से दवाइयों और हॉस्पिटल में मुहैया हो रही ऑक्सीजन की मोटी कीमत वसूली जा रही है। बात मेडिकल स्टोर वालों की हुई है और उनके द्वारा की जा रही कालाबाजारी पर चर्चा हो रही है तो ये बताना भी बहुत जरूरी है कि ये वही लोग हैं जो एक जमाने में दवाइयों की खरीद पर 10% या 15% की छूट देते थे लेकिन आज इनका रवैया पूरी तरह बदल चुका है. ज़रूरी दवाइयां और मेडिकल से जुड़े सामान या तो इन्होंने स्टॉक कर लिए हैं या फिर ये मुंह मांगी कीमतों पर सामान देकर कालाबाजारी की आग को हवा दे रहे हैं ।मृत्यु अंतिम सत्य है और व्यक्ति को तकलीफ से मुक्ति देती है, या ये कहें कि चिंताओं पर लगाम लगा देती है । लेकिन कोविड का मामला ऐसा नहीं है । चाहे शमशान हो या कब्रिस्तान हर जगह हाल बुरे हैं ।इतनी लाशें हैं कि क्या ही कहा जाए ऐसे में इन जगहों पर भी जमकर फायदा उठाया जा रहा है. जिस किसी को भी अपने परिजन का अंतिम संस्कार जल्दी कराना है पैसा फेंके काम हो जाएगा ।चाहे कब्रिस्तान हो या शमशान यहां लोग लगे हैं और उन लोगों की मदद कर रहे हैं जो परेशान हाल हैं. इससे पहले कि आप इन लोगों को दुआएं दें जान लीजिए इनके द्वारा मुहैया कराई जारही मदद मुफ्त नहीं है इसकी कीमत है और ये कीमत बहुत है । आपदा को अवसर में बदलने वाली इन बातों के सबसे अंत में हम उनलोगों का जिक्र करना चाहेंगे जो हैं तो मानव योनि में लेकिन जो किसी गिद्ध से कम नहीं हैं. जिस तरह किसी मरते हुए पशु को देखकर गिद्ध उसके ऊपर मंडराने लगते हैं वैसा ही हाल ऐसे लोगों का है. जब देश में ऑक्सीजन की किल्लत शुरू हुई इन लोगों ने तमाम ज़रूरी चीजों को स्टॉक कर लिया. आज जब लोग मदद की डिमांड कर रहे हैं तो ऐसे ही लोगों की बड़ी संख्या सामने आ रही है और मदद के नाम पर मोटे पैसे अपनी जेब में डाल रही है।ऑक्सीजन का वो छोटा सिलिंडर जो कभी 6 हज़ार रुपए में मिल जाता था आज उसे ये लोग 25 से 30 हज़ार के बीच बेच रहे हैं इसी तरह ऑक्सीजन का वो जंबो सिलिंडर जिसकी कीमत 15 हज़ार हुआ करती थी आज इन लोगों की बदौलत 80 हज़ार से 1 लाख के बीच मिल रहा है ।मामले में दिलचस्प ये भी है अब ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर मशीन इनकी नजर में आ गई है और इन्होंने उसकी कालाबाजारी शुरू कर दी है. जो मशीन अभी कुछ दिनों पहले तक 50 हज़ार में आसानी से मिल जाती थी आज ये लोग उस मशीन को सवा लाख से डेढ़ लाख के बीच बेचकर आपदा को अवसर में बदल रहे हैं । — पंकज कुमार मिश्रा, एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार ,केराकत जौनपुर । संपर्क सूत्र – 8808113709