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विरोध प्रदर्शन का बेहद घटिया तरीका !

पहले कानपुर फिर  प्रयागराज और अब मुरादाबाद  में पत्थर  चले ,जबकि कानपुर में हुए पत्थरबाजी को लेकर उत्तर प्रदेश प्रशासन ने जिस प्रकार कार्रवाई की है एक उदाहरण हो सकता है कानून व्यवस्था में शांति स्थापना का। लेकिन इसके बावजूद भी उन्मादियों में कोई सबक नहीं है। तब जब पूरे देश में योगी जी के शासन से और बेहतर क्या हो सकता है? प्रश्न है फिर यह किसकी लड़ाई है? यह नफरत किसके खिलाफ है? प्रशासन कितना भी प्रयास कर ले, शुक्रवार को सड़कों पर होने वाला प्रदर्शन किसी भी हाल में रोका नहीं जा सकता। क्योंकि वे इबादतगाह में निश्चित तौर पर इकट्ठा होते हैं और सरकार उन्हें किसी भी कानून द्वारा इस प्रकार इकट्ठा होने से रोक नहीं सकती। तो फिर जब वे वापस सड़कों से लौटते हैं तो एक साथ उनकी इतनी संख्या बल उन्हें विरोध प्रदर्शन के लिए मनोबल प्रदान करता है। हम जिस दिन हम सड़कों पर निकल कर अपने आराध्यों के अपमान के खिलाफ एकजुटता दिखाएंगे, केवल उसी दिन उनका सड़कों पर निकलना संवेदनशील घोषित किया जा सकता है। कर्नाटक में हमने प्रयोग करके दिखाया है। हिजाब केवल और केवल तब ही प्रतिबंधित किया जा सका, जब भगवा के साथ सामने से हमारी उपस्थिति हुई। सनातन समाज को सोचना होगा कि इस लड़ाई को कैसे जीता जा सकता है? यदि हर शुक्रवार हिंदू भी सड़कों पर अपनी गतिशील उपस्थिति दिखाने के लिए संख्या बल के साथ किसी भी आध्यात्मिक प्रायोजन को आरंभ कर ले, तब और केवल तब ही उनकी उपस्थिति को प्रतिबंधित किया जा सकेगा।  नुपुर शर्मा ने जो कुछ कहा वह गलत था भले ही अंतर्राष्ट्रीय दबाव रहा हो पर भाजपा ने नुपुर शर्मा के बयान से खुद को अलग करते हुए उसे पार्टी से निलंबित कर दिया । नुपुर शर्मा ने भी खुद उस बयान पर खेद जताते हुए माफी मांग ली अब उस पर एफ.आई.आर .भी दर्ज हो गई है । देर सबेर उसकी गिरफ्तारी भी हो जानी थी । अब और क्या चाहते है आप ? उसे फांसी पर लटका दिया जाए या पत्थर फेंक फेंक कर मार दिया जाए ? माफ कीजिए आज के आप के प्रदर्शन के दौरान हुए उपद्रव और हिंसा से वे लोग भी आहत हुए है जो इस पूरे मामले में आपके साथ खड़े हुए थे ।आप अपने मन से यह गलतफहमी निकाल दीजिए की आपके किसी प्रदर्शन से आपके कौम को कोई फर्क पड़ने वाला है या यह सरकार दबाव में आयेगी या आपके सामने झुकेगी ।बल्कि आपने तो आतंकवादियों के काम को और आसान कर दिया । आप उनके बनाई पिच पर बेटिंग करने लग गए । कल तक मीडिया थोड़े संभल कर डिबेट कर रही थी अब आपने उसे खुद को दंगाई बताने का अवसर दे दिया । और हां पैगम्बर साहब के मामले खाड़ी देशों के विरोध से ज्यादा उत्साहित होने की भी जरूरत नही है । वे तब तक साथ है जब तक मामला धर्म का है यह मामला पैगम्बर साहब का नही होता तो खाड़ी देश चूं तक नही करने वाले थे । इससे पहले कितने दंगे हुए कितने लोगो के फ्रीज चेक किए गए कितने लोगो के घर बुलडोजर चले पर खाड़ी देश चुप रहा । कानून को अपना काम करने दीजिए । अपनी लड़ाई सड़क के बजाय न्यायालय में लड़ीये । बड़ा से बड़ा वकील कीजिए पर सड़क पर इस तरह उतरने से परहेज कीजिए । जो आपको सड़क पर उतरने को कह रहा है वह कदापि आपका हितैषी नही हैं। आप मुसीबत में आयेंगे तो यही सबसे पहले आपसे मुंह फेरने वालो ने होगा ।आपकी इस गलती से वे भी निराश है जो इतने विपरीत परिस्थितियों में भी आपके साथ लगातार खड़े होकर एक बड़ी ताकत से मुकाबला कर रहे है । हिंसा, तोड़फोड़ ,आगजनी आपको वह सब साबित करने के लिए पर्याप्त है जो आरोप वह हमेशा आप पर लगाते है । पैगम्बर साहब ने उस बुजुर्ग औरत तक को माफ कर दिया जो रोज उसके ऊपर कूड़े करकट फेंका करती थी ।प्रतिक्रिया दूरियों को बढ़ाती है जबकि माफ करने से दूरियां खत्म होती है । आज आवस्यकता दूरियों को बढ़ाने की नही बल्कि उसे खत्म करने की है । माफ करना सीखिए जो पैगम्बर साहब करते थे । आख़िर यह तुम्हारी कैसी आराधना है जो आदमी को अराजक , हिंसक और दंगाई बना देती है। ऐसा कौन सा सज्दा है जो करते ही हराम हो जाता है। बंद करो ऐसी जुमे की नमाज। भाड़ में डालो इस नमाज को जो मनुष्यता नहीं समझती। सिर्फ़ इस्लाम की हिंसा समझती है। हिंसा किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। नूपुर शर्मा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो ग़लत कहा। ग़लत किया है क़तर जैसे देशों ने। जिन्हों ने भारत के मुसलमानों को शह दे कर भड़काया।और जहालत के मारे यह मुसलमान हिंसा पर उतारु हो गए हैं। कभी कश्मीर , कभी कानपुर , मुजफ़्फ़र नगर , फिर पूरा देश। जहन्नुम बना दिया है देश को। इन अराजक और हिंसक लोगों को कस के रगड़ देना चाहिए। और क़ायदे से क़तर जैसे मुस्लिम देशों से राजनयिक संबंध ख़त्म कर लेना चाहिए। यह जो करोड़ो रुपए रोज क़ानून व्यवस्था के नाम पर हर जुमे को खर्च हो रहे हैं। हिंसा और आगजनी हो रही है। यह तो रुक जाएगी ,क़तर और अरब को अपना बाप मानने वाले लोग बुलडोजर के ही हक़दार हैं। मैं गांधी और उन की अहिंसा के बड़े प्रशंसकों में से हूं। पर अब लगता है कि गांधी ने बहुत ग़लत किया। बंटवारे के बाद मुसलमानों को हिंदुस्तान में बिलकुल नहीं रहने देना चाहिए था। सौ प्रतिशत को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था। बल्कि जबरिया भेज दिया जाना चाहिए था। गांधी-नेहरु की इस ग़लती को हम जाने कब तक भुगतते रहेंगे। और यह जिन्नावादी इस्लाम के नाम पर रोज डायरेक्ट ऐक्शन करते रहेंगे। डायरेक्ट ऐक्शन जिन्ना ने शुरु किया था। कि हिंदुओं को देखते ही मार डालो। जिन्ना के इस डायरेक्ट ऐक्शन में ही डर कर गांधी झुक गए और पाकिस्तान क़ुबूल कर लिया। पाकिस्तान बना कर एक सभ्य और शरीफ़ शहरी की तरह इन को भारत में रहना लेकिन आज तक नहीं आया। बात-बेबात हिंसा , जेहाद और ब्लैकमेलिंग ही इन का चरित्र हो गया है। यह सब देखते हुए भारत को अब इजरायल मॉडल की सख़्त ज़रुरत है। हद हो गई है। देश के संविधान की जगह शरिया के तलबगारों से छुट्टी चाहता है देश। आख़िर इस्लाम की बिना पर ही तो पाकिस्तान बना था। और यह कमबख़्त कहते हैं कि बाई च्वायस यहां भारत में रह गए थे। क्यों रह गए थे भाई। क्या भारत को दिन-ब-दिन जलाने के लिए ही रुके थे ? यह बात-बेबात आए दिन शहर-दर-शहर को हिंसा की आग में जलाने को अगर आप सेक्यूलरिज्म मानते हैं तो भाड़ में जाएं आप और आप का यह सेक्यूलरिज्म। कि रोज-रोज मनुष्यता को जलाते रहते हैं। अरे जलाना ही है तो विवाद की जड़ उस किताब को ही जला देना चाहिए। इन हिंसक लोगों से निपटने के लिए किसी स्टालिन , किसी हिटलर की ज़रुरत आ पड़ी है। लोकतांत्रिक तरीक़े से इन हिंसक लोगों से किसी सूरत नहीं निपटा जा सकता। इस जुमे की हिंसा पर बशीर बद्र याद आते हैं : यहां एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें …….तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है।

पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर।

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