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हिंदी जन के मन और मनोरंजन की सशक्त भाषा बनी है

(14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष)

हिंदी दिवस पर कुछ लोग कुंठा के चलते कहें या फिर इसे मनोविज्ञान का खेल कहें कि चीजों को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करने या फिर विरोध करने पर वे लोगों का ध्यानाकर्षित करने में कामयाब हो जाते हैं। खैर जो भी हो ये उनकी सोच है। सितंबर माह में अक्सर विभिन्न माध्यमों में सुनने और पढ़ने में आता है या ये कहें कि कई तथाकथित प्रबुद्ध विद्ववत जन प्रचारित और प्रसारित किया जाता है कि हिंदी दिवस पर नेता और अधिकारीगण हिंदी को बढ़ाने के लिए जो भाषण देते हैं वह अधिकांश अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों द्वारा लिखा गया होता है अथवा अंग्रेजी में होता है। यह तो अच्छी बात है ना कि अंग्रेजी के जानकर लोग हिंदी में भाषण तैयार करते हैं। हिंदी का जानकार हिंदी का भाषण लिखे इसमें क्या खास बात है? यह तो हिंदी की जीत है कि अंग्रेजी वाले हिंदी लिख-पढ़ रहे हैं। कुछ लोग इससे भी आगे जाकर हिंदी दिवस को भारतीय सनातन धर्म में मनाए जाने वाले श्राद्ध पर्व की तरह-सा घोषित करने में भी संकोच नहीं करते हैं। खैर लोकतंत्र है और सभी को अभिव्यक्ति की आजादी है और यह आजादी भारतीय संविधान ने देश के नागरिकों को प्रदान की है और इस तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग को इस बात का भी भान होना चाहिए कि हिंदी को जो स्थान मिला है वह भी भारतीय संविधान प्रदत्त है। और इसकी गरिमा को बरकरार रखना सभी नागरिकों की साझी जिम्मेदारी है। अब अन्य को दोष देकर स्वयं जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेने के प्रयास को क्या ही कहा जाए?

बार-बार भारत सरकार और सरकारी कर्मियों पर जो ये आरोप लगाये जाते हैं, वे सब कुंठा से अधिक कुछ नहीं हैं। और जो कहते हैं कि भारतीय सनातन धर्म में अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए साल में एक बार पिंडदान (पितृपक्ष में) का आयोजन किया जाता है और हिंदी के साथ भी सरकार ऐसा ही कर रही है। यह कतई बेबुनियाद और मनगढ़ंत बातें हैं। पिछले कुछ वर्षों में सरकार और सरकारी कर्मियों में राजभाषा हिंदी को लेकर गंभीरता बढ़ी है। हिंदी जन के मन और मनोरंजन की सशक्त भाषा बनी है, तब ही तो मूल रूप से दक्षिण भारतीय भाषा में बनी फिल्में हिंदी में रिलीज होने पर हजारों करोड़ का कारोबार कर लेती हैं। पिछले दिनों में आई केजीएफ, बाहुबली, पुष्पा आदि फिल्में इसके अच्छे उदाहरण हैं।

हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाता है। सरकारी कार्यालयों में सितंबर माह में भाषा के भौगोलिक वर्गीकरण क क्षेत्र, ख क्षेत्र और ग क्षेत्र के अनुसार क्रमशः हिंदी माह, पखवाड़ा और सप्ताह मनाया जाता है। और कुछ तथाकथित लोगों का आरोप है कि हिंदी के नाम पर करोड़ों रुपये सरकारी कोष से बहा दिए जाते हैं और हिंदी के उद्धार के लिए कुछ नहीं किया जाता। हिंदी के साथ आजादी के बाद से लगातार सौतेला व्यवहार किया जाता रहा है। इसे अंग्रेजी की दासी बना दिया गया है। उन्हें इस बात को अच्छे से समझना चाहिए कि पैसा किसी भी कार्य की मौलिक और अनिवार्य आवश्यकता होती है। और यदि हिंदी से किन्हीं का रोजगार बढ़ता है जैसे होटल वालों का, गाड़ी वालों का आदि-आदि का तो इसमें बुराई ही क्या है? यह हमें और हरेक नागरिक को स्वंय समझना है कि हिंदी हमारी माँ है, वह कोई सौतेली माँ नहीं है। हिंदी वह भाषा है जिसका प्रावधान देश के संविधान में है। संविधान की 8 वीं अनुसूची में 22 भाषाओं का प्रावधान है। सभी समान रूप से सम्मान की अधिकारिणी हैं।

हिंदी भाषा हमारी सांस्कृतिक धरोहर और विरासत का अभिन्न अंग है। हिंदी दिवस के बहाने हम अपनी भाषा के सौंदर्य और समृद्धि को याद करते हैं। इस हिंदी दिवस के अवसर पर हम और हमारी अगली  पीढ़ी, हिंदी की महत्वपूर्ण संवैधानिक भूमिका और उसकी महिमा को समझकर, इसे और भी मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ…!

जय हिंद, जय हिंदी..!

-*डॉ. मनोज कुमार*

उप प्रबंधक (राजभाषा) एवं सदस्य सचिव, नराकास (का.-2)

वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, नागपुर

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