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मिले सुर मेरा तुम्हारा…..मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (सम्पादकीय)

आज एकाएक कम्प्यूटर में गीत बज उठा जो दशकों पूर्व दूरदर्शन पर खूब प्रचारित प्रसारित हुआ था – ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा––––’, इसको पंडित भीमसेन जोशी ने मुख्य रूप से स्वर दिए । यह विज्ञापन भारतीय जनमानस में एकता का संदेश पहुँचाने में सफल हुआ था ।
इस बात से बात निकली कि कितना सही है, मेरा–तेरा सुर मिलकर हमारा सुन बनता है । सफलता और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह अति आवश्यक है । अभी कोरोना को लेकर लोग बेखौफ होते जा रहे हैं । बार–बार कहने पर भी आधे से ज्यादा बिना मास्क के नजर आने लगे हैं और चन्द लोग अभी समझते हैं कि अभी कोरोना पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुआ है । अभी फिर छुट–पुट संक्रमण दिखने लगा है । यहाँ सुर–भिन्न हुए –– अधिकतर नहीं मानते कि अब सावधानी रखने की आवश्यकता है । अलग अलग सुर ताल रखकर हमने बहुत कुछ खो दिया है । अब संकल्प के साथ हमें वैक्सीनेशन और कोरोना गाइडलाइन्स के पालन से प्राप्त होने वाली सफलता को धूमिल नहीं करना है ।
यदि वैश्विक परिवेश में देखें तो सुर आजकल सबके अलग नजर आने लगे हैं । यूक्रेन और रूस न थमने को, न ही किसी की बात मानने को तैयार हैं । नतीजा विश्व बिरादरी कमोबेश भुगत रही है । वे दोनों देश तो बर्बादी का मंजर देख ही रहे हैं । एक अहम हजारों लोगों की जान पर बन आया । उन देशों की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हो रहा है यविशेषकर यूक्रेन कोद्ध । भले ही अन्य देश आर्थिक मदद करके व अन्य मदद से यूक्रेन की पीठी थपथपा रहे हों किन्तु इससे युद्ध विराम होने में कोई सहायता नहीं मिल रही है । जान–माल का नुकसान लगातार हो रहा है ।
भारत के मनीषियों ने सदैव पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखा–जाना और माना है– ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ । तब परिवार के लोग लड़ने के स्थान पर आपस में मिल बैठकर कोई समस्या की गुत्थी क्यों नहीं सुलझा सकते । आवश्यकता है पहल करने की, सुर में सुर मिलाने की । विश्व बिरादरी भारत की ओर ही निहार रही है कि शायद वह ही कोई राह दिखायेगा ।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमें अमन–चैन–शांति का वरदान दें – धरा में प्रेम–भाईचारे की फसल लहलहाती रहे और सब अपने के स्थान पर सबके हित की सोच रखने लगें । तब सुर में सुर मिलकर हमारा सुर बनेगा और विश्व धरा में शान्ति–सुख–प्रेम–भाईचारा पनपने लगेगा ।

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