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एक थी सुमन… (स्टबर्न बट काइंड, लविंग बट फ़ेयर)

(राजसभा डाइरेक्टर, अंग्रेज़ी की प्रोफेसर, अप्रैल 4, 1956-जून 27-2020)

बिहार भागलपुर के एक छोटे से गाँव कमलपुर में पैदा हुई सुमन माला ठाकुर , मध्यमवर्गीय एक आम परिवार में ४ एप्रिल १९५६ में पैदा हुई जहां नातो पैसा था ना ही लड़कियों के लिए शिक्षा का महत्व। ऐसे में सुमन के दादा बिंदेश्वरी प्रसाद ठाकुर जो बिहार शरीफ़ नालंदा में एक ज़माने में शिक्षक थे और गाँव के कई लोगों को शिक्षित करवाया उनके सामने समस्या थी की लोगों को कैसे समझायाजाए, द्वार पर बैठक लगी, उनका कहना था की आगे चलके दाल ही तो घाटनी पड़ेगी , क्या होगा पढ़ा कर बेटियों को, ऐसे में माँ तारा ठाकुर(लखपुरा वाली) ने, आँगन के द्वार की दहलीज़ से लगे माटी की कोठी के पीछे, घूँघट की आढ में बहुत साहस करके बस इतना ही कहा कि, जब बेटे कॉलेज में पढ़ सकते हैं तो बेटियाँ क्यों नहीं? फिर क्या था सुमन को अनुमति मिली, विषमताओं के बावजूद ना सिर्फ़ कॉलेज की पढ़ाई करके विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान हासिल किया बल्कि मात्र २४ साल की उम्र में अंग्रेज़ी की प्रफ़ेसर बनी, दुनिया को अलविदा कहने के ठीक १५दिन पहले (१३ जून २०२०)अपनी छोटी बहन के योग संस्था(कनाडा में) का नाम  आरोग्य  सुमन ने ही रखा जो आरोग्य कनाडा के नाम से मशहूर है।

यूँ तो मिडिल क्लास परिवार में लड़कियों का सपने देखना आसान नहीं होता है, पर सुमन ने सपने देखे, उड़ान भरी,अच्छी ख़ासी प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ कर अच्छे भविष्य का सपना लेकर दिल्ली गईं और फिर दिल्ली जाकर प्रतिष्ठित  IAS  की परीक्षा में भाग लिया, पर ये तो शुरुआत थी, उनका जज़्बा उन्हें रजयसभा ले गया। विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी अंग्रेज़ी बांग्ला मैथिली और अंगिका की अच्छी जानकार होने के कारण १९८६ में सुमन ने राज्य सभा में दुभाषिये के रूप में अपना कार्य करना आरम्भ किया और अपना कार्य काल पूरा होने तक सुमन निदेशक के पद पर कार्य रत रहीं, सेवा निवृत होने पर गोवा में अपना आशियाना बनाया और अपने इकलोते पुत्र सोनमन के साथ वहीं बस गईं।

लोवर मिडिल क्लास परिवार में माँ तारा ठाकुर हाउस वाइफ़ थीं, पिता मदन मोहन ठाकुर रेलवे में थे, घर के ६ बच्चों की ज़िम्मेदारी पिता पर थी, दिन रात एड़ी चोटी मेहनत कर पसीना बहाकर, बच्चों को ग्रैजूएट बनाना बस यही सपना था पर स्कूल के बाद आगे रास्ता कौन दिखाए, तो इसकी ज़िम्मेदारी सुमन ने बेटे जैसे निभाई और अपने से छोटे चार भाई बहनों को अपनी निगरानी में ग्रैजूएट बनाया,  पिताने बस छोड़ कर पैदल दफ़्तर जाना शुरू किया, सुबह शाम टियूशन करने लगे ताकि परिवार की परवरिश हो.

२४साल की उम्र में दुबली पतली लम्बी चोटी वाली काले मोटे चश्मे की फ़्रेम में सुमन वाक़ई सीरीयस प्रफ़ेसर बन गईं. भागलपुर के टी एन बी कॉलेज के म्यूज़िक प्रोग्राम में जब सुमन ने अखियों के झरोखों से मैंने देखा जो साँवरे… गाया तो रातों रात स्टार बन गई.छोटे से शहर भागलपुर की हर गली, नुक्कड़, पान की , लस्सी की दुकान जहां से सुमन गुज़रती, मनचले युवक अखियों के झरोखों से गीत गाने लगते, कई लोग ईर्ष्या करते तो कई आशीर्वाद देते और कहते बेटी हो तो सुमन जैसी।जो सुमन के पढ़ाई के ख़िलाफ़ थे वही लोग अपने बच्चों के कॉलेज अड्मिशन की पैरवी करवाने घर आने लगे, हर ज़रूरतमंद की मदद की , अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। भागलपुर मेंअच्छी ख़ासी अंग्रेज़ी प्रफ़ेसर की नौकरी थी सुमन की पर दिल्ली  जाकर IAS  की तैयारी में जुट गईं, दिल्ली में सजातीय से  दिल लगा, मन से पूरी सहमती नहीं थी , पर शादी हुई, जल्द ही एहसास हुआ कि सिलेक्शन ग़लत था। सुमन की ज़िंदगी में थोड़ी सी ख़ुशी तब आयी जब १०जुलाई १९८६ में राज्यसभा में उसकी नियुक्ति हुई, भोला मासूम मन उड़ने को तैयार पर पति के टोर्चर को सहना शायद उसकी नियति बन गई। ज़िंदगी के ऊहापोह में कुछ फ़ैसला लेने से पहले कोमल हाथों ने नन्हे शिशु की ज़िम्मेदारी उठाली, फिर पति से रिश्ता टूटा और अकेले बेटे की परवरिश की। दोस्त भी मिले जीवन में पर वो रचनाहै ना कि, “सुख के साथी मिले हज़ारों पर कोई दुःख में साथ निभाने वाला नहीं मिला..

दुनिया के हरविषय पर चर्चा करने वाली सुमन , अनेक भाषाओं में निपुण थीं साहित्य से लगाव भी भरपूर था , उनके प्रिय लेखकों की सूची भी कम लम्बी नहीं थीं, , चार्ल्सडिकेंस, शेक्सपीयर्स,जोर्जओरवेल से लेकर कालिदास, तुलसीदास, निराला, पंत,नीरज, सुभद्रा कुमारी चौहान, शिवानी, अमृतप्रितम सरीखे महान साहितज्ञ प्रायः सुमन की चर्चाओं का विषय बने रहते, साथ ही समाज के बदलते परिवेश पर भी नज़र बनाए रखतीं, तभी तो जोब्स स्टीव की ज़बरदस्त प्रशंसक भी थीं। सुमन अपने पीछे लिटरेरी वर्क की लिगेसी छोड़ गई हैं।

नाम के साथ बदनामियाँ भी बटोरीं खुद की वकालत करने के चक्कर में प्यार से लबालब भरी सुमन कब और कैसे कठोर हो गई पता ही नहीं चला,तन्हाई में आंसुओं के ज़रिये दिली जज़्बात का इजहार करने लगीं शायद ऐसे में ही कभी लिखा हो सुमन ने

“माँग कर ज़ाया करूँ क्यों आसमाँ के वक़्त का

कह दिया मैंने कि लिखना अच्छा मेरे वक़्त का

दर्द के पल जी के चुकता कर दिए सारे हिसाब

मुझको सुनना ही नहीं कोई बहाना वक़्त का

हंसते हंसते रो पड़े थे भूल हम पाएँगे क्या

हमसे पूछे ग़म में क्या होता बिताना वक़्त का”

   सुमन का थर्ड वर्ल्ड विज़न भी अपने आप में ग़ज़ब का था।सुमन अक्सर थर्ड आइ(third eye) की बातें करतीं कहतीं कि इसकी निगाह से कोई नहीं बचेगा, कुछ बरसों में किसी की कोई प्राईवेसी नहीं रह जाएगी, लोग एलियंस की ज़िंदगी जीने लगेंगे, सब कुछ मशीनी होगा, इसकी तैयारी अभी से शुरू करनी चाहिए।  चाहे कोक स्टूडीओ की बात हो या टैरो रीडिंग, सब में दिलचस्पी थी, स्टडी करना, रिसर्च करना आदत थी।

 दुनिया को अलविदा करने के ठीक एक महीने पहले 26 मई 2020, एक पुरानी अधूरी सी कविता पूरी करके बहन को ये कहना कि इसे  ज़रूर record करना

बोल थे “दिल की बात हो कुछ दिल की बात हों, हालात  बदले तो क़िस्मत बदल जाए शायद मुलाक़ात हो, दिल की बात हो कुछ दिल की…….” आज ये सोचने को मजबूर करता है कि क्या सुमन को एहसास था अपने जाने का?

शायद नहीं….. शायद हाँ.

   भाषा विदुषी सुमन ने कवि हृदय भी पाया था। पुनर्नवा (फिर से नई) के उपनाम से कई गीत लिखे, उनमे से कुछ को उनके मित्र सतीश त्रिपाठी संगीत बद्ध कर रहे थे जैसे कि “आते जाते मेरी खिड़की पे नज़रें डाले जाती है तू, कहीं से कोई देख ना ले छुप के यूँ शर्माती है तू,आ रह लें इक संग मेरे घर, पड़े ना आना जाना, बाहों में मेरी …..,”  बेटा सोनमन संगीत के छेत्र में अपनी कदम जमाते जा रहे हैं। अपनी  माँ सुमन की ही तरह,प्रतिभाशाली “संचल मल्हार ठाकुर “ यानी  सोनमन की उपलब्धियों की सूची में अपने बैंड “इंडिगो चिल्ड्रन” की स्थापना करने से लेकर ब्रायन ऐडम के शो की ओपनिंग भी शामिल है। एक गीतकार संगीतकार और मुख्य गायक के रूप में बहुमुखी प्रतिभा के धनी सोनमन संगीत के छेत्र में नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं,  सुमन को अपने जीवन का केंद्र समझने वाले सोनमन के लिए जीवन का ये अध्याय आसान नहीं होगा,उनकी प्रेरणा स्त्रोत और पथ प्रदर्शक बन कर चलने वाली माँ, अब एक स्मृति बन कर रह गई  २७ जून २०२० की सुबह दिल का दौरा पड़ने के कारण सुमन मात्र ६४ वर्ष की आयु में इस संसार से हमेशा के लिए बिदा हो गईं , सुमन अक्सर कहा करती थीं

“जीवन में कुछ रखा नहीं है, जीवन को इतनी गम्भीरता से क्यों लेते हैं लोग? हादसे तो जीवन को नया मोड़ देने औरहमें मज़बूत बनाने के लिए आते हैं।

 सुमन अक्सर अपना गाना गुनगुनाया करती थीं वही उनके प्रियजनों की ओर से प्रेमांजलि बन कर सुमन को ही समर्पित हो रही है।

 “सपने तुम्हारे मैं बुन रहा हूँ तुमसे पूछे बिना, बाहों में मेरी फूलों सी महको कहे सुने कुछ बिना..”

सेल्फ़ मेड सुमन ने किसी से अपने दर्द का ज़िक्र तक नहीं किया और मुस्कुराते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दूर होकर तो और भी निकट हो जाते हैं। बहुत ही गरिमामय महिला थीं सुमन जो अब सिर्फ़ तस्वीर में सिमट कर रह गई हैं। जानने सुनने वाले अब भी यही कहते हैं,

हमारी अपनी थी सुमन, ऐसी थी सुमन

           एक थी सुमन

(मास्टर इन इंग्लिश लिटरेचर, पी एच डी इन लव एंड एफेक्शन)

(Written by
Nutan Thakur
Broadcaster SpiceRadio
1200am
Vancouver Canada)

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