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भुट्टा खरीदते मंत्री जी

                                                                                                   कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

मंत्री जी ने सोचा था कि उनकी वाह-वाह होगी कि ‘‘देखो इतने बड़े मंत्री जी सड़क के किनारे खड़े होकर भुट्टा खा रहे हैं संभवतः इसके लिए ही उन्होने अपना वीडियो बनवाया और वायरल भी कर दिया । पर दुर्भाग्य देखो की इसमें मंत्रीजी विलेन ही बन गए । फगगन सिंह कुलस्ते जी ने अपनी ‘‘लांग ड्राइव’’ के दौरान सड़क के किनारे बैठे एक दुकानदार से भुट्टा खरीदा । वे अपनी गाड़ी में बैठे-बैठे बोर हो रहे होगें । वैसे माना तो यह जाता है कि जनप्रतिनिधि जब भी फिरी होते हैं तब वे देश की हालात पर चिंतन करते हैं, आम लोगों की स्थिति पर चिंतन करते हैं, उन्हे यह सोचना पड़ता है कि वे आम आदमी का भला कैसे कर सकते हैं पर सोचने और चिंतन करने का सारा काम कुछ विशेष लोगों ने अपनेमजबूत दिमाग के हवाले कर रखा है ऐसे में जनप्रतिनिधियों के पास यह काम तो होता नहीं है वे बोर हो जाते हें । बोर होने वाले मंत्रीजी को ही सड़क के किनारे बैठा भुट्टा वाला नजर आता है । वे भुट्टा खाते हुए अपनी बोरियत दूर करना चाहते हैं और भुट्टे वाले को भी अहसान से लाद देना चाहते हैं ‘‘देखो हम मंत्री हुए तो क्या है पर आम लोगों से अभी भी जुड़े हुए हैं’’ । आम व्यक्ति बोर होने वालों के लिए बोरियत मिटाने के काम आने लगे हैं । मंत्री जी ने यूं ही पूछ लिया ‘‘कितने का भुट्टा है’’ पर दुकानदार ने यूं ही नहीं बताया उसने तो पूरी गंभीरता से बताया कि 15 रू. का एक । मंत्रीजी चैंक गए ‘‘अच्छा….पर भुट्टा तो फिरी में मिलता है..’’ । शासन और प्रशासन से जुड़े लाग अक्सर यह समझ लेते हैं कि ‘‘सब कुछ फिरी में ही मिलता है’’ । वे फिरी वाली योजनाओं की इतनी गहराई में उतर जाते हैं कि उन्हें चारों ओर फिरी ही फिरी दिखाई देता रहता है । मंत्रीजी को शायद मालूम नहीं है कि अब तो खेत की काली मिट्टी तक फिरी में नहीं तौल कर मिल रही है । मंत्रीजी का वार्तालाप वायरल हो गया । तिने भुट्टे में दाने नहीं थे उससे कई गुना ज्यादा उनको समझाइश मिल गई ं। लोग ऐसे ही जनप्रतिनिधियों को बिचका देते हैं । अब कोई भी जन प्रतिनिधि सड़क किनारे वालों से बात नहीं करेगा । मंत्री बनने के पहले वे भी आम व्यक्ति ही थे , हर एक जनप्रतिनिधि, जनप्रतिनिध्त्वि प्राप्त करने के पहले आम ही होता है फिर वह धीरे-धीरे खास होता जाता है । वह खास होता है तो उसकी आम व्यक्ति से दूरी बनती जाती है । मंत्री जी आम व्यक्ति से दूर हो गए और उनकी गाड़ी फर्राटे भरने लगी । फर्राटे भरती गाड़ियां यह देख और समझ ही नहीं पाती कि जिस सड़क पर वे दौड़ रहे हैं उनकी नींव कितनी कमजोर है । वो तो भला हो बरसात को वो बता देता है कि भैया यहां से हौले-हौले चलना वरना आपकी गाड़ी बीच सड़क पर न समा जाए । मध्यप्रदेश का एक पुल तो ऐसे ही धंस गया । बताया जाता है कि पिछले साल ही उसका भव्य उदघाटन समारोह सम्पन्न हुआ था । उम्मीद थी कि यह पुल कई बसंत देखेगा और कई बरसात को झेलेगा पर बेचारा एक ही बरसात में ढह गया । अखबार की सुर्खियां बना तो शासन ने विधानानुसार जांच बैठा दी । अब जांच चलती रहेगी । जांच का अंत कभी नहीं होता वह चलती रहती है । देश के अन्य राज्यों की सड़कें और पुलों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है ‘‘हम सब एक हैं’’ के भाव के अनुसार इन सरकारी सड़कांें का निर्माण होता है और हम सब एक हैं के भावों को लेकर ही वे पानी में अपने आपको समाहित कर लेते हैं । राज्य कोई भी हो निर्माण करने वालों की सोच कए ही रहती है । बुन्देलखंड एक्सप्रेस का लोकार्पाण हुआ और उसके दो दिनों बाद ही उसकी मरम्मत किए जाने की आकर्षक फोटो छपने लगी । ठेकेदार एक पीढ़ी के लिए ठेका नहीं लेा वह अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इससे जोड़े रखने के लिए पहले निर्माण कार्य का ठेका लेता हे फिर उसकी मरम्मत का ठेका लेता है । माम्मत चलती रहती है और ठेकेदार की पीढ़ियां पलती रहती हैं । आम आदमी टैक्स भरकर वित्तीय ढांचा तैयार करता है । जीएसटी जब आया था तब किसी को इसके बारे में ज्यादा समझ नहीं आया था पर अब जब हर वस्तु पर जीएसटी लग रहा है तब उसे समझ में आ गया कि आधी रात को संसद का विशेष सत्र बुलाकर समारोह पूर्वक जिस जीएसटी को लागू किया गया था उसके मायने क्या हैं । जीएसटी कमेटी ढूंढ़-ढूंढ़ कर ऐसी-ऐसी वस्तुओं को जीएसटी के हवाले कर रही है जिसकी कल्पना खुद आम आदमी भी नहीं कर पाता । जीएसटी लगते ही उस वस्तु का रूपरंग निखर आता है । आम आदमी को लगता है कि ‘‘देखो वह जिस वस्तु को बेकार समझता है वह कितनी मूल्यवान है सरकार तक उस पर टैक्स ले रही है’’ । आम आदमी हो सकता है प्रसन्न हो जाा हो पर जब वह ही वस्तु वह बड़े-बड़े माल से सुन्दर पैकेटों में सजसंवर कर घर लाता है तो उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं ‘‘ अरे यह तो पेड़ के नीचे गिरी जामुन है जिसे हम बेकार समझते थे’’ । काली जामुन सफेद आवरण में सजकर मंहगी हो जाती है और इस महंगी जामुन पर जब सरकार जीएसटी लेती है तो वह वीआइपी बन जाती है । लोग कहते हैं कि महंगाई बढ़ रही है । वो तो बढ़ेगी ही जब हर वस्तु को वीआईपी का दर्जा मिलेगा तो वह ऐसे ही थोड़ी न मिट्टी के मोल मिलेगी वैसे तो अब मिट्टी भी मंहगी हो चुकी है मालूम नहीं उसमें जीएसटी लग रही है कि नहीं वैसे अभी नहीं लग रही होगी तो आने वाले दिनों में लगेगी । जीएसटी कमेटी के सदस्यों का मंथन जारी है वे वो सारी वस्तुओं को खोज रहे हैं जो आम व्यक्ति के कभी न कभी, किसी न किसी रूप् में उपयोग में आती हैं भले ही साल में एकाध बार उपयोग में आए । कमेटी को अपना कार्य जारी रखना है तो उसे लिस्ट तैयार करते रहना होगा । कमेटी साल में कम से कम दो बार तो अपनी लिस्ट को लागू करती ही है तो उसे काम चाहिए आप बताते जाऐं कि अभी यह रह गया है वह जीएसटी लगताी रहेगी । मंहगाई बढ़ना कोई नई बात थोड़ी न है । समय के साथ सभी का विकास होना चाहिए । मंहगाई बढ़ती है और तब भी हम उसका उतना ही उपयोग करते रहते हैं जितना महंगाई बढ़ने के पूर्व कर रहे थे तब हमें और सरकार को पता चलता है कि हमारी आय कितनी बढ़ चुकी है । दो रूपया किलो शक्क्र खाते थे तब और अब जब पचास रूपया किलो शक्कर खा रहे हैं तब भी क्रय करने की हमारी क्षमता तो बरकारार ही है न । जब आपकी क्षमता बढ़ गई है तब टैक्स देने में क्या परेशानी है । मंत्री जी को नहीं मालूम था कि खेत में यूं ही पैदा हो जाने वाला भुट्टा अब इतना महंगा हो गया है कि वह 15 रू. का एक आता है….वैसे तो उन्हें ऐसी बहुत सी वस्तुओं का ज्ञान ही नहीं होगा कि वो अब कितने रूपए में मिल रही हैं । भुट्टा चर्चाओं में आ गया है इसका साफ मतलब है कि अगली बार जब जीएसटी कमेटी की बैठक होगी तब भुट्टा पर भी जीएसटी टैक्स लगाये जाने की घोषण हो सकती है । सरकार का ज्ञान ऐसे ही तो बढ़ता है । सरकार को टैक्स चाहिए ताकि वो आपके लिए विभिन्न निःशुल्क वाली योजनाऐं बना सके । सरकार फिरी में कुछ देकर टैक्स के माध्यम से उसकी भरपाई कर लेती है । आम आदमी को लगता है कि देखों कितनी अच्छी योजना आई पर वह समझ ही नहीं पाता कि यह सब ‘‘आपके चरणों का ही प्रसाद है’’ । आम आदमी समझता नही है इसलिए ही तो वह आम आदमी ही बना रहता है जो इसे समझ लेता है वह वीआईपी बना जाता है ।

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