कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
प्रधान मंत्री जी ने पूरा गणित लगाकर बता ही दिया है कि वे प्रतिदिन दो किलो गालियों का डोज लेते हैं हो सकता है कि वे इससे अधिक डोज लेते हों और उनको जानकारी मेे केवल दो किलो ही आइ्र हो । गालियों के वजन को मापने के किस यंत्र का उपयोग उन्होने किया यह अभी गुप्त है । गालियां शाब्दिक होती हैं और हैं और वे व्यक्ति के अंदर की इष्र्या, गुस्सा और कटुता को अभिव्यक्त करती हैं । प्रधानमंत्री ज जानते हैं कि उनको मिलने वाली गालियों का वजन भले ही दो किलो हो पर उनके प्रति नफरत की अभिव्यक्ति का वजन इससे कहीं ज्यादा हो सकता है । नफॅरत के अपने कारण हैं, ढेर सारी विपक्षी पार्टियां जो चातक जैसी निगाहों से प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर निहार रहीं हैं, वे लोग जो प्रधानमंत्री के फेसलों के दायरें में आ रहे हों, उनकी ही पार्टी के वे नेता जो हासिए में खिसका दिये गए हों इसके अलावा आदि-आदि भी जोड़ लिए जायें तो दो किलो तो कम ही पड़ जायेगा । राजनीति में पैर खींचना और न खीच पाने की स्थिति में झल्ला पड़ना आम बात है । प्रधानमंत्री मोइी जी के लम्बे होते पैर और उन्हें न खींच पाने का दुख तो होगा ही । सो उन्हें वह तो मिलता ही होगा जिसके बारे में उन्होने कहा हैपर वह इतना आसान भी नहीं होगा । प्रधानमंत्री जी ने कह तो दिया पर यह ही तो राजनीति है । अब सिद्धांतों की राजनीति कौन कर रहा है, अपनी लाइन बड़ी करने के लिए दूसरों की लाइन छोटी करने का चलन बन चुका है और यदि वह छोटी नहीं कर पा रहे हैं तो गालियां अंतिम अस्त्र है ही । दो किलो गालियों का डोज प्रतिदिन, चेहरे पर निखार लाता है, दो किलो गालियों का डोज प्रतिदिन काम करने की क्षमता प्रदान करता है, ो किलो गालियों का डोज प्रतिदिन राज्य दर राज्य अपना परचम लहाराने में मदद करता है । बहुत कीमती होती हैं गालियां, हर एक नसीब में होती भी नहीं हैं । वैसे केजरीवाल इस डोज से मुकाबला करते हुए दिख रहे हैं । प्रतिदिन वे भी गालियों का डोज ले रहे हैं । वे अब अनुभवी राजनीतिज्ञ बन चुके हेै, पर फिर भी वे अभी अपने चेहरे पर रंग बदलने की कला को नहीं सीख पाए हैं । उनका चेहरा ‘‘बेचारगी’ के भावों से भरा होता है और जुबान अभी राजीनितज्ञाों की तरह कड़वा नहीं बोल पाती । ‘करत-करत अभ्यास के’’ की स्कीम की तह एक दिन वे इसमें भी कामयाब हो ही जायेेगें । किसी भी राजनीति दल को और उनके नेा को पराजित करने का नया र्फामूला तो यह ही है कि उसे इतने सारे आरोपों से घेर दो कि वह केवल आरोपों का जबाव ही देता रहे बाकी कुछ कामधाम न कर पाए । केजरीवाल सी नई स्कीम के घेरे में हैं । प्रतिदिन आरोपों का डोज उन्हें दिया जा रहा है और साथ में गालियों टाइप का रंगीन मिक्चर भी पिलाया जा रहा है । इस औषधि का लाभ तो केवल एक ही है कि पीने वाला निराशा और हताशा के वातावरण में गुम हो जाये और मैदान खाली कर दे । वैसे योगी जी के पास मैदान खाली कराने के लिए बुलडोजर तो है ही । योगी जी के कारण ही एकएक बुलडोजर के दिन फिर गए । एक समय था जब बुलडोजर के केवल नाली खोदने के काम आता था पर अब वह मकान गिराने और मैदान बनाने के काम आने लगा है । बुलडोजर चलता है कितनी भी मजबूत सीमेंन्ट से मकान बना लो बुलडोजर उसे तोड़ ही देता है और मैदान बना देता है । योगीजी की बुलडोजर वाली स्कीम को अन्य राज्यों ने भी अपना लिया है । मध्य्रपदेश की सरकार को भी यह स्कीम भा गई है और मकान गिराकर मैदान बनाने के काम पर बुलडोजर लगा दिया गया है । असम ने भी बलुडोजर को काम पर लगया हुआ है । बुलडोजर की मांग बढ़ गई, यहां तक कि खिलौने वाले बुलडोजर की मांग भी बढ़ गई । खिलौने वाला बुलडोजर बच्चों का मनोरंजन तो कर ही सकता है, साथ में यह डराने के काम भी आने लगा है ‘‘बुलडोजर भिजवाऊं क्या…’’ के भावों से भरी मुस्कान और हाथ में खिलौने वाला बुलडोजर लिए उनकी पार्टी के लोग घूमते रहते हैं । बुडोजर की आवाज टेप कर सुना दी जाती है, आदमी को तो वैसे ही हार्टअटैक आ जाता है, उसके दिलों की धड़कनों की गति तेजस ट्रेन से ज्यादा बढ़ जाती है । तेजस ट्रेन के भी जलवा चल रहे हैं । एक एक कर विभन्न राज्यों में इसकी गति बढ़ने लगी हे । अभी तो केवल उन राज्यों को ही तेजस के साथ मेलजोल बढ़ाने का अवसर मिल रहा है जहां चुनाव हैं या चुनाव निकट भविष्य में आने वाले हैं । तेजस में यात्रा करने वाला कुछ खास वर्ग ही होगा, आम व्यक्ति तो आज भी पैसिंजर ट्रेनों की राह देखता रहता है । उस खास वर्ग के लिए तेजस ट्रेन पटरी पर दौड़ रही है । खास व्यक्ति के पास समय की कमी होती है उसे कहीं भी बजटनुसार समय पर पहुंचना होता है, वह दौड़ नहीं ला सकता इसलिए उसे दौड़ लगाने वाला साधन चाहिए । तेजस ट्रेन उसके लिए दौड़ लगताी है और वह ट्रेन के अंदर आरामदायक सीट पर बैठा-बैठा ऊंखता रहता है । चुनाव आम मतदाताओं के लिए भी होता है पर तेजस ट्रेन इस उम्मीद में उसके आगे परोस दी जाती है कि वह कभी तो अपना आम अदामी का चोला उतारेगा और आम से खास हो जायेगा । आम आदमी खास आदमी बन सके इसके लिए राजनीतिक पार्टीयां चुनाव में उन्हें फिरी में बहुत सारी चीजें देने का वायदा करती हैं । घोषणायें, शिकारी जैसा जाल होता है जो आम आदमी को पखेरू की तरह फसंाने के उद्देश्य से ऐन चुनाव के समय बिछा दिया जाता है । आम आदमी फिरी के लोभ में इस जाल में फस जाता है और फिर पांच साल तक गालियों का डोज दे-देकर अपनी भड़ास निकलता रहता है । हिमचाल प्रदेश में तो मतदान हो भी गया, वहां की ईव्हीएम विश्राम कर रहीं हैं । आजकल ईव्हीएम को पन्द्रह दिनों से लेकर महिने भर तक विश्रााम करने का अवसर दिया जाता है फिर वे खोली जाती है और उनसे किसी पार्टी की जीत बाहर निकलती हे तो किसी की हार । हिमाचल प्रदेश की ईव्हीएम भी 8 दिसम्बर तक ऐसे ही विश्राम करेगी, फिर वह खुलेगी और गालियों का डोज झेलेगी । ईव्हीएम भी जाने कितनी गालियां खाती है । जो जीत जाता हे वह उसके गुणगान करता है और जो हार जाता है वह उसे तन्दुरस्ती कारक गालियों का च्यवनप्रास देता है । गुजरात में मतदान अभी होना है तो सभी लम्बे कुरते गुजरात की सड़कों पर घूम रहे है । नेताओं ने अपना जाल बिछा दिया है । एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करती घोषणायें हो रहीं हेंै, आम आदमी इन घोषणाओं में से अपने-अपने काम की घोषणा छांट रहा है । उसके सामने विकल्प चुनने की सुविधा है । सारी घोषणायें रंग रूप् बदलकर एक जैसी ही होती हेै, शुगरफिरी वाली गोलियों की तरह । मतदाता इसी के कारण तो असमंजस में फंस जाता है, वह अपना असमंजस दूर करने के लिए या तो गुजरात माॅडल को देखता है, या दिल्ली माॅडल को या फिर छत्तीगढ माॅडल को । सारे माॅडल एक जैसे दिखाई देते हें, सुनहरे, चमचमाते और मिठास भरे । उसे हर एक माॅडल से कुछ न कुछ चाहिए पर उसके पास अभी यह सुविधा नहीं है । उसे एक ही पार्टी द्वारा प्रस्तुत माॅडल को पकड़े रहना पड़ेगा । आम मतदाता भ्रमित हो रहा है, उसके भ्रम को दूर करने के लिए नेताजी सभाएं करते है ं सभाओं में वे गालियों का डोज देकर दूसरी पार्टी के घोषणापत्र का मजाक उड़ाते हें । चुनाव का चक ऐसे ही चलता हे । विकास की बातें अतीत की धरोहर में शामिल हो चुकी हैं, विकास नहीं चाहिए, फिरी में सारा कुछ चाहिए । नहीं मिला तो उसके पास गालियों का डोज तो है ही । गालियों का डोज तो इस बार भारत की क्रिकेट टीम को भी मिला । बेचारे सेमी फाइनल मे हार गए और हारे भी ऐसे कि इंग्लैंड की टीम का एक विकेट तक नहीं गिरा पाए । कहां तो भारत की टीम को विश्वविजेता बनने की प्रबल दावेदार माना जा रहा था, इसके कारण ही आमभारतीय उनसे आशा भी लगाए हुए था पर वे हार गए । कभी-कभी होता हे ऐसा कोई दिन हमारा नहीं होता तो हमारे पास सबकुद और बेहतर होते हुए भी हमें नुकसान उठाना पड़ता है । हमारी उम्मीदों का बिखर जाना हमें कष्ट देता है और जब कष्ट होता है तब गालियों का डोज बाहर निकलता है । क्रिकेट टीम कठघरें में खड़ी हो गई है उसके कुछ खिलाड़ी गालियों की तराजू में तुल रहे हैं, पर यह केवल पराजित भावनायें ही हैं । हार को स्वीकार करना चाहिए । केवल एक हार हमारे खिलाड़ियों को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकती । वे अच्छा खेले तभी तो सेमीफाइनल तक पहुंचे । कुछ भूकंप के झटके कुछ राज्यों के कुछ नगरों में महसूस किए गए । भूकंप भारत की धरती को हिला नहीं पाया पर उसने भय तो पैदा कर ही दिया । भूकंप की गहराई अधिक थी इसलिए नुकसान नहीं हुआ पर हम सावधान रहे इसकी चेतावनी वो दे गया । यूक्रेन और रूस का युद्ध तो अभी भी चल ही रहा है, यूक्रेन के शहर के शहर बरबाद होते जा रहे हैं, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें धरासाई हो रही हैं, वहां के निवासी सड़कों पर जीवनयापन करने को मूजबूर हो चुके हें । दो देशों की लड़ाई ने जाने कितने परिवारों को बार्बादी की स्थिति में पहुंचा दिया है । आखिर युद्ध से हासिल क्यो होगा, इस प्रश्न का जबाव किसी के पास नहीं हे, रूस के पास भी नहीं है । जाने कब खत्म होगा, पर इस युद्ध ने भी गहरी चेतावनी पूरे विश्व को दी हुई है । कोई भी अपराजेय नहीं है और कोई भी कमतर नहीं है । सारे विश्व में कई किसम की हलचल मची है । तुर्की से लेकर इरान तक और सउदी अरब तक । कब क्या हो जाए किसी को कोई भरोसा नहीं हे । इरान तो वैसे भी हिजाब के आन्दोलन से अभी भी जूझ ही रहा है । उसका आन्दोलन अनवरत जारी है और सरकार अपनी जिद्द पर अड़ी हुई है । उत्तरी कोरिया एक के बाद एक परमाणु मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है, वहां का सनकी शासक कब बिफर पड़े कोई नहीं जानता । विश्व की हस हलचल से आम व्यक्तियों की परेशानियां बझ़ती जा रही हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई बात मान ही नहीं रहा है । वैसे भी उसके पास सिवया प्रस्ताव पारित करने के और कोइ्र विकल्प हे ही नहीं ऐसा सारी दुनिया को लगने लगा है । निंदा प्रस्ताव से किसी को कोई परेशानी नहीं है इसलिए ही सारे विश्व में हलचल मची हुई है । इसका अंत कहां होगा कोई नहीं जानता ।