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सनातन और वेदत्व को संचित करने का प्रयास कर रहा ब्रह्मराष्ट्र एकम..!

तन से हिंदू, मन से हिंदू , समग्र राष्ट्र बस हिन्दू ही हिंदू का नारा सुनकर कुछ लोगो के मन में आशंका उत्पन्न हो रही की कही भारत सच में हिंदू राष्ट्र न बन जाए किंतु भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने से ज्यादा जरुरी है भारत को अखंड और  सनातनी राष्ट्र बनाया जाए जिसके लिए बाबा विश्वनाथ की पावन भूमि काशी से ब्रह्मराष्ट्र एकम का बीजारोपण हुआ है , जो आगामी भविष्य में सम्पूर्ण विश्व को सनातन को ओर मोड़ने का लक्ष्य लेकर राष्ट्रीय स्तर पर शनै शनै क्रियाशील हो रही  है। ब्रह्मराष्ट्र एकं का  प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन बाबा विश्वनाथ के पावन धाम काशी में हुआ जिसकी अपार सफलता से उत्साहित होकर  इसके आयोजकों ने द्वितीय अधिवेशन विगत दिनों   उत्तरखंड के पावन भूमि हरिद्वार में ( हरीपुर कलां के अद्भुत मंदिर में )  12 फरवरी 2023 को कराया । इस दूसरे राष्ट्रीय सनातनी अधिवेशन में देश के प्रकांड धर्माचार्य विद्वान एक मंच पर एकत्रित हुए और विश्व गुरु भारत के जरिए पूरे विश्व को सनातन संस्कृति की ओर बढ़ने का सुझाव दिया क्योंकि उन सबका मानना है की वेदत्व और विज्ञान के मध्य सनातन ही कड़ी है और इसे अब संरक्षित करके अपनाने का समय आ गया है ।  ब्रह्मराष्ट्र एकम समस्त विश्व के सनातन धर्म समाज में व्याप्त ऊँच नीच ,जाति पांति, पर आधारित भेदभाव को दूरकर सनातन धर्म की प्राचीन महान परंपराओं, संस्कृतियों,विश्वासों, व्यवहारों के पुनः स्थापना के विचार से प्रेरित विचार है ब्रह्मराष्ट्र एकम।इसके साथ ही ब्रह्मराष्ट्र एकम सनातन समाज में सद्भावना, समरसता एवं एकता की भावना का सूत्रपात करते हुए राष्ट्र को बौद्धिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक रूप से विकसित एवं सशक्त बनाने हेतु कृतसंकल्पित है। अब हमारे सामने प्रश्न यह है कि, यदि हम एक सशक्त और विकसित राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं तो हम सनातन धर्मियों को अपने सामाजिक और जातिगत मनमुटाव को परे रखना होगा और हाथ से हाथ मिला कर राष्ट्र के निर्माण में तन, मन, धन से जुड़ना होगा।ज्योहीं हम सशक्त रुप से एकजुट होना प्रारम्भ होंगें, हमारी आपसी एकता ही हमारे राष्ट्र के सामने से बहुत से प्रश्नों और संकटों को दूर कर देगी। ज्यों ज्यों हमारा सनातन समाज एकता के सूत्र आबद्ध होता जाएगा अनेकों समस्या एवं संकट स्वतःभस्म हो जाएंगे।

इसलिए वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हम अपने सारे मतभेदों को भुलकर राष्ट्र के निर्माण के प्रति संकल्पित हो जाएं,क्योंकि यह मजबूत राष्ट्र भारतवर्ष, सिर्फ भारत के लोगों के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी एवं समृद्धिशाली सिद्ध होगा। यहां बहुत से लोग यह प्रश्न उठा सकते हैं कि राष्ट्र की उन्नति के लिए क्या राष्ट्र का निर्माण आवश्यक है? तो इसका उत्तर होगा, ‘हाँ’।अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जिस राष्ट्र के मूल नागरिकों की जैसी इच्छा शक्ति, मनोकामना, स्वभाव और व्यवहार होगा उसी तरह से उस राष्ट्र का निर्माण होगा, जिसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण हमारे सामने जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल आदि देशों का है, यदि हम इजराइल का ही उदाहरण लें, तो हम देखते हैं कि अगर इसराइल के लोगों में ही आपसी एकता ना हो तो लोग गुलाम बना लेते है । विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर ‘मोक्ष’ की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। यम, नियम, अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष मार्ग पुष्ट होता है। जन्म और मृत्यु मिथ्‍या है। जगत भ्रमपूर्ण है। ब्रह्म और मोक्ष ही सत्य है। मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है। इसके अलावा स्वयं के अस्तित्व को कायम करने का कोई उपाय नहीं। ब्रह्म के प्रति ही समर्पित रहने वाले को ब्राह्मण और ब्रह्म को जानने वाले को ब्रह्मर्षि और ब्रह्म को जानकर ब्रह्ममय हो जाने वाले को ही ब्रह्मलीन कहते हैं। सनातन धर्म के सत्य को जन्म देने वाले अलग-अलग काल में अनेक ऋषि हुए हैं। उक्त ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है। अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा, वैसा कहा। इसीलिए सभी ऋषियों की बातों में एकरूपता है। जो उक्त ऋषियों की बातों को नहीं समझ पाते वही उसमें भेद करते हैं। भेद भाषाओं में होता है, अनुवादकों में होता है, संस्कृतियों में होता है, परम्पराओं में होता है, सिद्धांतों में होता है, लेकिन सत्य में नहीं। वेद कहते हैं ईश्वर अजन्मा है। उसे जन्म लेने की आवश्यकता नहीं, उसने कभी जन्म नहीं लिया और वह कभी जन्म नहीं लेगा। ईश्वर तो एक ही है लेकिन देवी-देवता या भगवान अनेक हैं। उस एक को छोड़कर उक्त अनेक के आधार पर नियम, पूजा, तीर्थ आदि कर्मकांड को सनातन धर्म का अंग नहीं माना जाता। यही सनातन सत्य है। भारत के जो भी हिन्दू शासक हों या भविष्य में बनें उनको पूर्ण समर्थन सेऔर ज्यादा सशक्त करना होगा, ताकि हम एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण कर सकें। क्योंकि राष्ट्र का निर्माण राष्ट्र के सच्चे सपूत करते हैं गद्दार और कायर नहीं। अतः ब्रह्मराष्ट्रएकम का विचार भारत जैसे राष्ट्र को अत्यधिक शक्तिशाली और मजबूत बनाने के लिए एक क्रांतिकारी विचार है, जिसमें देश की अखंडता और एकता भविष्य में महान सिद्ध होगी।

          ___ पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।

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