श्रीमती कविता मल्होत्रा (संरक्षक – उत्कर्ष मेल)
Your mercy is my social status
-Guru Nanak
परिचय इतना इतिहास यही
जो तेरी रज़ा है मेरी भी वही
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निर्बाध गति से तो केवल प्रकृति का दरिया बहता है, मानव जाति तो मात्र उस गति की ताल से अपनी ताल मिलाने का प्रयास किया करती है।जीवन का परम उद्देश्य तो प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हुए मानव उत्थान की दिशा में कदम बढ़ाना है।एक कहावत है Charity begins at home जिसका सीधा सा अर्थ है कि किसी भी तरह का दान स्वँय से शुरू किया जाए।इसलिए समाज का उत्थान तभी संभव है जब हर व्यक्ति पहले अपनी मानसिकता को रब की रज़ा को सहज स्वीकृति देते हुए अपनी सोच को रूपांतरित करे।
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जिस सोच में झलके रब की रज़ा
फिर कब लगता है जीवन ये सज़ा
सबमें रब, करें सेवा लें भरपूर मज़ा
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बस इसी एक सोच की पतवार लेकर अपनी नौका को जीवन सागर में तैराते जाएँ और अगर कभी किसी कार्मिक भँवर के चक्रव्यूह से टकराएँ तो उस परम सत्ता पर भरोसा रखकर उस इम्तिहान की घड़ी को सहज स्वीकृति के भाव से लाँघ जाएँ।केवल उस परम पिता के पथ प्रदर्शन का अनुसरण करते हुए जीवन नौका को वक्त के बहाव संग बहने का अवसर दें और रब की रज़ा के नज़ारों का आनंद लें, यही तो जीवन का सार है।
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विरासत में काग़ज़ के टुकड़े
कब बनाते हैं किसी को साक्षर
रक्त मांस के तप से जप कर सेवा
बन सकते हैं सभी रब का हस्ताक्षर
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गुरू नानक साहिब जी की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में जाना और मनाया जाता है।ईंट गारे के मकानों को नश्वर रोशनी की लड़ियों से प्रकाशित करना एक परंपरा ज़रूर है लेकिन सार नहीं।सार तो देह के परिधान में ढकी हुई रूह को प्रकाशित करना है।जो गुरू नानक साहिब जी के एकमात्र सँदेश का अनुसरण करके ही प्रकाशित की जा सकती है।
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एक नूर से सब जग उपजा
न कोई बैरी न ही हो बेगाना
उसके सेवकों के सेवक बन
लूटें उसकी कृपा का ख़ज़ाना
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अहम के वहम पाल कर कितना भी टकरा लें एक दूसरे से लेकिन ये तो तय है कि एक दूसरे के प्रति कार्मिक ऋणों का भुगतान किए बग़ैर मुक्ति संभव नहीं है। इसलिए जो हो रहा है वो भी उसकी रज़ा है, जो होगा वो भी उसकी रज़ा से ही होगा, इस बात को सहज स्वीकार करें और परस्पर प्रेम के निःस्वार्थ दीप जला कर प्रकाश पर्व पर अपनी रूह को प्रकाशित करें।
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तेरी रहमतों का एक कण मिले
तेरी इब़ादतों का हर क्षण मिले
सृष्टि की सेवाओं का प्रण मिले
हर जन्म सेवादार सा जीवन मिले
प्रकाशित रहे रूह,तेरी शरण मिले
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जो तेरी रज़ा हो मेरी भी वही, कितनी शांति है इस एक सोच में, तो क्यूँ न आपसी बैर भाव त्याग कर उसकी रज़ा का मज़ा लिया जाए, और अपने सान्निध्य में आने वाली हर एक रूह को अपने दीप आप बन कर प्रकाशित होने का संदेश दिया जाए।
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जो तेरी रज़ा रहे मेरी भी वही
तेरी नज़र में रह सकूँ सदा सही
भले जग लिखता रहे खाते और बही
रहूँ स्वाति बूँद तेरे नूर के सागर में रही
तू जग का मैं तेरी,मानी मैंने जो तूने कही