डा.सर्वेश कुमार मिश्र
(महासचिव वैश्विक संस्कृत मंच दिल्ली प्रांत)
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खुद को महान समझते हो,
बल और बुद्धि की खान समझते हो,
पर सोचा है गर तुम कल नहीं रहे तो क्या होगा??
सोचा है कल का सूरज गर न सके देख तो क्या होगा??
सुनो शुक्कर की बाजार भी लगेगी
शनि बाजार भी लगेगी
सुनो शुक्कर की बाजार भी लगेगी
शनि बाजार भी लगेगी
इतवार सोमवार के साथ
अगले दिन मंगल बाज़ार भी लगेगी
सड़कों पे गाडियां भी चलेंगी
चौराहों पर रेड़ियां भी लगेंगी।
तुम्हारे दुश्मनों के घर पूड़ियां भी बनेंगी
पकौड़ियां छनेंगी मिठाइयां बटेंगी।
नदियां बहती ही रहेंगी
झरने कल कल करते ही रहेंगे
दुश्मन फिर भी दुश्मन ही रहेंगे,
खुद को महान समझते हो,
बल और बुद्धि की खान समझते हो,
पर सोचा है गर तुम कल नहीं रहे तो क्या होगा??
सोचा है कल का सूरज गर न सके देख तो क्या होगा??