राखी नाम की एक दुबली-पतली बीमार -सी ,साँवले रंग की एक लड़की,उम्र यही तेरह- चौदह की साल रही होगी । वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी । राखी कक्षा में बिलकुल पीछे बैठती थी। वह हमेशा चुपचाप बैठी रहती शायद इसी लिए उसकी कोई सहेली भी नहीं बनी थी । हाँ अगर शिक्षिका कक्षा में कुछ काम करातीं तो वह चुपचाप कर लेती नहीं तो बस अपने में ही खोयी रहती थी । उसे कभी किसी भी लड़की से न तो बात करने का मन होता था और न ही किसी खेल आदि में ही भाग लेती थी ।
जानकी मैम हमेशा उसके बारे में ही सोचा
करतीं की आखिर यह किस तरह की लड़की है
इसे भी आखिर दूसरे बच्चों की तरह बात करने
खेलने और शरारतें करने का मन क्यों नहींहोता
कहीं ऐसा तो नहीं की इसके माता-पिता नहीं हों कक्षाध्यापिका से पता करने पर पता चला की
उसके माता -पिता भाई बहन सभी हैं । वह एक
मध्यमवर्गीय परिवार से थी ।उसके घर में ईश्वर
की दया से कोई भी कमी नहीं थी ।आखिर क्या बात हो सकती है ,इस लड़की के उदासीनता के पीछे ,कुछ न कुछ तो कारण अवश्य ही है।
राखी पढ़ने में भी साधारण से ऊपर ही थी यानी कमजोर नहीं थी । इसका मयलब तो यही हुआ की वह मानसिक रूप से कमजोर भी नहीं थी। जानकी मैडम ने कई बार उससे बात
करने की कोशिश भी की पर वे सफल नहीं हो सकीं ।
एक दिन जानकी मैडम ने पूरी ही कक्षा को माता-पिता पर निबन्ध लिखने के लिए कहा । सभी बच्चों ने अपने अपने माता-पिता की
अपनी अपनी तरह से वर्णन किया । राखी की
कॉपी जब जानकी जी के सामने आयी तो उसे
पढ़कर वे चौंक पड़ी । क्या सगे माता -पिता भी
इतने कठोर होते हैं ।राखी ने अपने माँ के बारे
में लिखा था , ” मेरी माँ मुझसे ही घर का सारा काम करवाती हैं । वे कभी भी हँसकर बात नहीं
करती तथा हमेशा अपशगुनी कहकर बुलाती हैं।”
पिता के बारे में उसने लिखा था ,”मेरे पिता सभी भाई बहनों से तो अच्छे से बात करते हैं
पर पता नहीं क्यों मुझसे ही नफरत करते हैं ।
वे सबको चीजें लाकर देते हैं पर मुझे भगा देते
हैं । वे भी मुझे अपशगुनी कहते हैं । “
जानकी जी ने उसका निबन्ध चुपचाप अपने
बैग में रख लिया और घर आकर फिर से उसे पढ़ा।उनका मन परेशान सा हो गया था । उस
बच्ची द्वारा लिखा हुआ अपशगुनी शब्द उनके
दिमाग में घूम रहा था ।उनके पति से उनकी
चिन्ता छिपी न रह सकी।उन्होंने पूछ ही लिया।
“क्या बात है ,क्यों इतना परेशान हो ?”
“कुछ नहीं ,बस स्कूल का एक बच्चा…….।”
जानकी जी ने राखी की पूरी कहानी अपने पति
को सुना दी ।
“है तो बहुत ही सोचनीय घटना । ऐसे भी माता
पिता होते है ,उस बच्चे पर क्या गुजरती होगी ?
जानकी जी ने पहले राखी की माँ को दूसरे बच्चे से विद्यालय में बुलवाया ।
थोड़ी सी इधर उधर की बातें करने के बाद जानकी जी ने पूछा, “आप बीमार हैं क्या ?”
“अरे नहीं मैडम, मैं तो बिलकुल ठीकठाक हूँ ।”
“फिर तो घर के सारे काम आप ही करती होंगी?”
“हाँ करती तो हूँ पर यह है ना अपश…. उनके
मुँह से अपशगुनी निकलते निकलते रह गया।
अरे राखी ,यह भी कुछ काम करवा लेती है।
लड़की है मैडम ,पराये घर जाना है ,सो थोड़ा
काम-वाम भी तो आना ही चाहिए।
“आपने पहले क्या कहा था “अपशगुनी ” ,यह
क्यों ?
“अरे मैडम कुछ नहीं ,बस यूँ ही ।”
“यूँ ही कैसे ,आपको आपकी माँ अपशगुनी कहती थीं क्या ?”
जानकी जी अन्दर ही अन्दर क्रोध से उबल
रहीं थी पर प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी गलत कहने
से बच रहीं थी ।उन्हें राखी अपनी ही बेटी नजर
आ रही थी ।
“ऐसा है ना मैडम जी ,अब आपसे क्या छिपाऊँ जिस दिन इसका जन्म हुआ था ,उसी दिन इसकी दादी खत्म हो गयीं थी तभी से सभी इसे अपशगुनी-अपशगुनी कहते है ।”
“और आप भी ,आप तो इसकी माँ है ना ?”
गोमती जी यह तो जीवन है आना और जाना तो लगा ही रहता है। किसी बच्चे के जन्म से उसका क्या लेना देना होता है ?
अब राखी की माँ का सिर नीचे था और उनकी आँखों से झर झर आँसू बहे जा रहे थे ।
“मैडम इसके पापा तो इससे कायदे से बात तक नहीं करते। उनका मानना है की इसी के कारण उनकी माँ की मृत्यु हुई । वे तो कई बार मुझे भी कोसते हैं । उनके डर से भी मैं इससे ठीक से बात नहीं करती मैम । आखिर क्या करूँ मैं ?” गोमती देवी रोती हुई कहती जा रही थी ,उनका दर्द बाँध तोड़कर बहने को आतुर हो उठा था ।
“रोइए नहीं ,पर आप तय कर लीजिए की अब से आप कभी भी राखी को अपशगुनी नहीं कहेंगी ।”
“जी मैडम जी कभी नहीं , क्या राखी ने कुछ
कहा है ।”
“नहीं ,वह तो वैसे ही कुछ नहीं बोलती । मैंने
तो उसके रिजल्ट पर बात करने के लिए बुलाया
था । “
थोड़ा बहुत राखी की पढ़ाई के बारे में बात करने के बाद जानकी जी ने उनको विदा किया ।
गोमती देवी घर जाने के लिए उठीं तो उनके चेहरे पर पश्चाताप के भाव स्पष्ट दिख रहे थे ।
इसके पापा को भी भेज दीजिएगा ,उनसे भी इसके रिजल्ट के बारे में बात करनी है ।
करीब दो माह बाद जानकी जी ने देखा की
राखी अब धीरे धीरे हंसने बोलने लगी है । यही नहीं वह खेल में भी भाग लेने लगी है। उसकी
खिलखिलाहट में जानकी जी को आत्मसंतुष्टि
नजर आती है । वे अपने लक्ष्य में सफल रहीं
इसकी तुष्टि उन्हें एक विजयबोध करा जाती है।
डॉ.सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली