” लगेगी आग तो आएंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है “
आज में जिस विषय पर लिख रहा हूँ उस विषय पर बशीर बद्र साहब की यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती नजर आती हैं
माफ करना आज में जो लिख रहा हूँ वो शायद आपको बुरा लग सकता है? लेक़िन जो भी लिख रहा हूँ वो आज हमारे शहर का कड़वा सच है ऐसा सच जिससे हम सभी बड़े अच्छे तरीके से वाकिफ हैं ….
अपनी बात शुरू करने से पहले में पूछना चाहता हूँ कि क्या वास्तव में हमारा शहर ऐसा ही था ? जैसी आज उसकी छवि पूरे प्रदेश में बन चुकी है ….. आप बोलेंगे नहीं हमारा बासौदा तो वो शहर था जिसे आस्था की नगरी कहा जाता था , नगर के समाजसेवियों की दुहाई पूरे भारत वर्ष में दी जाती थी लेकिन क्या वास्तव में आज भी हमारे नगर की वो ही छवि बची है ?
आज बासौदा को पूरे देश प्रदेश में हर कोई जानता तो है लेकिन जो प्रसिद्धि हमारे शहर ने पाई है कोई भी शहर उस प्रसिद्धि का तमगा अपने नगर पर तो कभी नहीं लगाना चाहेगा ।
क्योंकि आज भामाशाह की नगरी कहा जाने वाला बासौदा जाने वाला नशे की मंडी के रूप में पूरे प्रदेश में जाने जाना लगा है ……
वास्तव में कब हमारा शहर आस्था नगरी से नशे के कारोबारियों की मंडी बन गया हमें खुद इस बात का पता नहीं चला और यही होता है जब किसी नगर शहर या मोहल्ले के लोग अपने शहर से नाता तोड़ लेते हैं शहर में चल रही छोटी-छोटी गतिविधियों से अपरिचित रहते हैं लेकिन यही गतिविधियां कब हमारे लिए व्यक्तिगत तौर से घातक सिद्ध हो जाती है यह हमें भी पता नहीं चलता हम तो तब जागते हैं जब कुछ बड़ा हो जाता है कुछ ऐसा हो जाता है जिससे पूरे शहर को बदनाम होना पड़ता है
पिछले एक दशक से मैंने तो ऐसी एक भी बात या कहानी नहीं सुनी जिससे हमारे शहर की सकारात्मक छवि बनी हो, आज बासौदा में गोली चलना आम बात हो गई है। गली-गली में आपको आसानी से नशीले पदार्थों के आदी हो चुके छोटे-छोटे बच्चे मिल जाएंगे। हर 6 महीने में शहर में कोई एक ऐसी घटना जरूर हो जाती है जो अखबारों के मुख्य पृष्ठ की सुर्खियों में रहती हैं।
दुःख होता है जब किसी अन्य शहर के लोग कहते हैं क्या बात है यार बहुत दिनों से तुम्हारे बासौदा से किसी अपराध की खबर नहीं आई ! दुख होता है जब कोई कहता है कि अच्छा तुम उसी बासौदा के हो जहां ब्राउन शुगर ड्रग्स और सभी नशीले पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं जाते हैं ……..
आप कहां से हो जब हम बताते है कि हम बासौदा से हैं तो लोग ऐसे मुँह सिकोड़ लेते हैं जैसे हमने इराक , ईरान बोल दिया हो
क्योंकि कहीं ना कहीं हम एक ऐसे शहर के रूप में प्रसिद्ध हो चुके हैं जहां के लोगों से हर कोई दूर रहना चाहता है ।
आज वास्तव में जब हम किसी अन्य शहर में जाते हैं और बताते हैं कि हम बासौदा से तो वह लोग भी सीधे हम पर विश्वास करने से पहले कई बार संकोच करते हैं ….. अब यहाँ सवाल उठता है कि हमारे शहर की इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है ?
और वास्तब में इस दुर्दशा का जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि हम खुद है …. हमारी सोई हुई नैतिकता और जागरूकता इसके लिए जिम्मेदार है । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आज हम अपने बच्चों पर उनकी गतिविधियों पर भी ध्यान नहीं दे पा रहे आज शहर का हर दूसरा बच्चा किसी न किसी बुरी आदत का आदी हो चुका है। आए दिन अखबारों में खबर छपती है इतने लाख की ब्राउन शुगर के साथ आरोपी को पकड़ा , “कट्टे के साथ दो आरोपी पकड़ाए ” ,
“गंज बासौदा के फला चौराहे पर गोली चली ”
क्या वास्तव में यही हमारी पहचान थी ? नहीं ना !
मेरा शहर के उन सभी तमाम बुद्धिजीवियों से प्रशासनिक व्यक्तियों से जनप्रतिनिधियों , और हर एक जागरूक इंसान यही अपील है कि शहर आपसे ज्यादा कुछ नहीं मांगता ।
बस कोई चीज मांगता है तो वह है बासौदा की पुरानी पहचान। क्या आप हमें फिर से हमारे शहर की वही पुरानी पहचान दिला सकते हैं दिला सकते हैं ??
लेकिन क्या सिर्फ इन चंद लोगों पर ही शहर की जिम्मेदारी है नहीं यह भी कुछ नहीं कर सकते जब तक हम हमारे शहर की इस धूमिल हो चुकी छवि को सुधारने में आगे नहीं आएंगे। आज शहर के हर एक व्यक्ति को आगे आकर इन बुराइयों से लड़ने के लिए खड़ा होना पड़ेगा अगर हम आज भी शहर की इस दुर्दशा पर जागरूक नहीं हुए तो यकीन मानिए वो दिन दूर नहीं जब बासौदा का एक एक व्यक्ति खुद को बासौदा वाला कहने से बचता घूमेगा।
मेरा बासौदा के हर एक उस जागरूक व्यक्ति से यही विनम्र निवेदन है उठो जागो और हमारे बासौदा को वही शांति का टापू कहा जाने वाला बासौदा बनाने में सहयोग करो …..
– अंकित शर्मा