घर के बाहर बारिश की झड़ी लगी हुई थी और अन्दर सीमा और रमेश चाय के साथ पकौड़े खाने का आनंद ले रहे थे । बारिश में
ज्यादातर लोग चाय पकौड़े का आनंद लेते हैं।
बातें करते करते सीमा को अपना बचपन याद
आने लगा । कैसे वह बारिश में बाहर भाग जाती थी और देर तक भीगती रहती थी। और घर वापस आने पर भाभी खूब डांट लगाया करती थी,”आने दे तेरे भैया को तेरी शिकायत
करूंगी ।” सीमा हंसते हुए भाभी से लिपट जाती थी। भाभी में उसे मां की सूरत ही नजर
आती थी । आखिर उसने मां का प्यार देखा ही
कहां था ।उसे मां की याद भी नहीं थी ,वह बहुत
छोटी थी तभी मां उसे छोड़कर देवलोक चली
गयी थीं। भाभी ने ही उसे पाला था । कहने को
तो वह भाभी थीं पर उन्होंने उसे कभी भी मां की कमी महसूस तक नहीं होने दी थी।
धीरे धीरे सीमा बड़ी होने लगी ।वह इण्टर
की पढ़ाई कर रही थी तभी एक बहुत ही अच्छा
रिश्ता आया।भाई ने रिश्ता तय कर दिया तो भाभी ने रोका भी,”अभी तो सीमा कितनी छोटी है और आप उसका विवाह करने की सोच रहे हैं।” “तो क्या हुआ ,कितनी छोटी है सत्रह की होने जा रही है। और दूसरी बात इतना अच्छा
रिश्ता रोज रोज थोड़े ही मिलता है।”और भी
बहुत कुछ समझा कर उन्होंने भाभी को मना
लिया।
सीमा की शादी हो गई । बहुत अमीर घर था।चार पांच नौकर हमेशा घर में लगे रहते थे।
पति बिजनेस के सिलसिले में ज्यादातर बाहर
ही रहते थे। देखते-देखते उसकी शादी को भी
दस साल बीत गये । उसका बेटा भी नौ साल का हो गया। घर में सबकुछ था पर सीमा को
हमेशा कुछ कमी सी महसूस हुआ करती थी।
एक दिन अचानक फेसबुक पर रमेश
नाम के व्यक्ति पर उसकी निगाहें टिक गई। प्रोफाइल पर जाकर देखा तो उसकी धड़कनें
बढ़ गई।यह तो वही रमेश लग रहा है जो पड़ोस
में रहता था।रमेश उसके बचपन का मित्र था ,वह डाक्टर बनकर उसी के शहर में आ गया था। उन दोनों के बीच कोई खास दोस्ती भी
नहीं थी ,पर आज उसे फेसबुक पर देखकर उसे
बहुत अच्छा लगा। सत्ताईस साल की उम्र में वह
मानों फिर से सोलहवें साल में पहुंच गई थी।वह चैटिंग से फोन तक पहुंच चुकी थी।
“अरे रमेश तुम्हारी भी शादी हो गई होगी?” सीमा ने पूछा।
“नहीं अभी नहीं और शायद कभी नहीं होगी।”
“ऐसा क्यों कह रहे हो ?”
“जिसको चाहता था वह मिली नहीं और उसके जैसी और दूसरी मिलेगी भी नहीं।”
“कौन थी वह मुझे बताओ मैं ढ़ूंढ़ूगी वैसी ही।”
“छोड़ो क्या करोगी जानकर?”
सीमा के पति जब भी घर आते तो केवल
दो चार दिन ही ठहरते और फिर चले जाते । जब भी सीमा कुछ कहने का प्रयास करती या
कहीं घूमने का आग्रह करती वे तुरंत उसे डांट
देते, “क्या कमी है घर में नौकर चाकर है, ड्राइवर है जहां घूमने का मन हो उसके साथ जा
सकती हो। अब बिजनेस छोड़कर मैं घर में तो
नहीं बैठ सकता हूं।”
“पर हरीश को तो पिता की जरूरत है न,वह
हमेशा आपके लिए परेशान रहता है।”
“मैं जो कुछ कर रहा हूं उसके लिए ही तो कर
रहा हूं।उसको भी यह समझ है।”
धीरे धीरे सीमा का मन घर से ही हटने लगा, वह बच्चे को भी छोटी-छोटी चीजें बनाना
सिखाने लगी। नौकरों को बच्चे के हर एक
पसन्द, नापसंद से अवगत कराने लगी।
“मैडम आप कहीं जा रहीं हैं।?”एक नौकर पूछ ही बैठा।
“नहीं कहां जाऊंगी, पर अगर जाना भी पड़े
तो तुम लोगों को समझा रहीं हूं।”
अचानक एक दिन उसे रमेश रास्ते में मिल
गया । उसनेे सीमा को बताया की वह वहीं रहता है। सीमा जबरन उसके घर गई तो देखा
पूरा घर अस्त-व्यस्त हो रहा था। वह कुछ देर
ठहरकर उसके घर को ठीक करती है और फिर
वापस आ जाती है। रमेश उसे छोड़ने के लिए
नीचे आया तो उसकी आंखें भीगी हुई थी। सीमा के मन में भी उसके प्रति लगाव जाग रहा
था ।अब वह अपनी बातें भी रमेश को बताने लगी थी। रमेश भी उसके घर आने जाने लगा था।
इसी बीच पता लगा की उसके पति केवल
बिजनेस के सिलसिले में ही बाहर नहीं होते बल्कि बकायदा एक महिला के साथ रहते हैं। उनके दो बच्चे भी हैं।वहां पर भी एक बड़ा मकान है। सीमा क्रोध से आग बबूला हो उठी।
उसने सारी बातें रमेश को ज्यों का त्यों बता दिया।
“फिर तुम उसे डिवोर्स क्यों नहीं दे देती?”
“क्या करूं अब इस उम्र में कहां जाऊंगी?”
मेरे पास आ जाओ , मैं तुमसे शादी करूंगा। तुम ही वह लड़की हो जिसे मैं बचपन से चाहता था। पर तुम्हारी शादी हो गई तो मैंने कुछ भी
नहीं बताया।”
सीमा ने अपने मक्कार पति को डिवोर्स दे
दिया। म्युचुअल डिवोर्स होते ही सीमा ने रमेश से विवाह कर लिया। उनके पास उतना धन-दौलत तो नहीं था पर सुख और शांति
अथाह थी।
*डॉ सरला सिंह ‘स्निग्धा’*
*दिल्ली*