आत्मा का परमात्मा से जुड़ाव
ज़िंदगी का सबसे ख़ूबसूरत पड़ाव
पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जहाँ आजकल हर तरफ़ असहिष्णुता और हिंसा का शोरगुल है।जिसके परिणामस्वरूप हरि जनों की मानसिक स्थिति कंपित हो रही है।
गोलियों से भूना किसी ने और
किसी ने बोलियों से धुन डाला
कैसे हज़म करेगी मानव जाति
अतृप्त रूहों के मुँह का निवाला
एक तरफ़ कोविड की विषमताएँ अपने साथ इंटरनेट की तरंगों का वेग लेकर बिना दस्तक हर उम्र की पीढ़ी की दिनचर्या में प्रवेश कर गईं और मानवीय जीवनशैली का अहम हिस्सा बन गईं। दूसरी तरफ़ चारदीवारी में क़ैद मानव जाति के हाथों से रोज़गार फिसलते गए,जिसके फलस्वरूप शोषक वर्ग ने शारीरिक मेहनत करने वालों के मेहनतानों पर कुठाराघात किए, मानसिक मेहनत करने वाले कंधों पर पर समूचे परिवार के पालन की ज़िम्मेदारियों के साथ वर्क फ़्रॉम होम की कड़ी मेहनत का बोझा भी रहा।भ्रष्टाचारियों ने जम कर इस स्थिति का फ़ायदा उठाया और मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार करते हुए मानव मूल्यों पर कुठाराघात किया।बच्चों से तो उनका बचपन छिना ही, यौवन भी आज़ादी के लिए फड़फड़ाया और मासूमियत दाँव पर लग गई।सबसे भयानक स्थिति तो पारस्परिक संबंधों को झेलनी पड़ी,जिन का एक छत के नीचे गुज़ारा ही मुश्किल हो गया।बिखराव केवल एक स्तर पर होता तो सिमट भी जाता, लेकिन प्रगति के नाम पर अपनी आज़ादी का जश्न मनाती आधुनिकता ने तो भारतीय संस्कृति के परखच्चे ही उड़ा दिए।अपनी ख़ुशी पाने की लालसा ने मानव जीवन के लक्ष्य ही भुला दिए।
चाँद पर पहुँचा मानव लेकिन
खुद से खुद तक पहुँच न पाया
मनी पावर फ़ेम की कलुषता ने
चीरहरण मानवता का करवाया
समूचा विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के भव्य आयोजनों की तैयारियों में जुटा है, जिस पर बहुत सारा राजकोष लुटाया जाएगा। जिन निवालों पर आम आदमी का अधिकार हो उन निवालों को हज़म करने के लिए बहुत शक्तिशाली पाचनतंत्र की ज़रूरत पड़ेगी।यदि इस बार के योग दिवस पर मानवता के उत्थान पर कुछ प्रयास किए जाएँ शायद तभी मानव सभ्यता का सर्वांगीण विकास संभव है।
भक्ति,प्रेम,ज्ञान और कर्म भाव का परस्पर संयोग हो जाए
मानव जीवन सार्थक हो आत्मा का परमात्मा से योग हो जाए
योग का अर्थ है जुड़ना। ये जुड़ाव दैहिक स्तर से बहुत ऊपर का भाव है जिसका दैहिक जुड़ाव से कोई लेना देना नहीं है। आत्मा का परमात्मा के साथ जुड़ाव का ये आध्यात्मिक रास्ता है जिसमें तन मन और आत्मा को एक ही स्तर पर लाने का प्रयास कर के मानव जीवन यौगिक अवस्था में आता है। ये संसार एक व्यायामशाला है जहाँ तन की कसरत शरीर को स्वस्थ रखती है वहीं मन का संयम और अनुशासन आत्मा का संतुलन क़ायम रखने में अपना योगदान देता है।जब तन मन और आत्मा के योग से मानव जीवन संचालित होता है तभी मानव जाति का विकास होता है।जब मनुष्य खुद को जानने की कोशिश करता है तभी उसे मानव जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति होती है और वह अपने भले के साथ-साथ समाज के लिए भी उपयोगी सिद्ध होता है।जागृति ही सकारात्मक कार्यों में सक्रियता लाकर मानव जीवन में उत्थान के द्वार खोलती है।चिंतामुक्त मानवीय जीवनशैली में क्रांतिकारी परिवर्तन उभर कर आता है और
एक नवीन चिंतक धारा का उदय होता है।चिंतन ही समस्त मानसिक मनोविकारों का समाधान लाता है।सब में रब को देखें और ईश्वर की ओर मुड़ें।मानव जीवन का उद्देश्य यही है कि हर जीवात्मा से अनासक्त आत्मिकता से जुड़ें।मानवता की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
केवल रामायण के पन्ने पलटने भर से ही रामकथा कभी भी संपन्न नहीं होती है
योग का उस आत्मा में पदार्पण होता है जो शबरी भाव से राम चरण धोती है
कविता मल्होत्रा (संरक्षक, स्थायी स्तंभकार-उत्कर्ष मेल )