नवम माह नवीन सृजन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है,तो क्यूँ न इस वर्ष के नौंवे महीने में अपने अँदर के शैशव की मासूमियत को जागृत कर के निस्वार्थता को सृजित किया जाए,और एक मज़बूत राष्ट्र के निर्माण में अपना सहयोग देने के लिए सबसे पहले अपने ही अहम को दफ़ना कर खुद को एक एैसी शिक्षा प्रणाली के अँतर्गत एक एैसा पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, जो बिना किसी भेदभाव के एकता का सबक़ सिखाए और समूचे जगत पर वैश्विक बँधुत्व का परचम लहराने के लिए अपने देश में एैसे कुशल नागरिक निर्मित करे जो जन कल्याण की आयतें समूचे विश्व के मानसपटल पर गढ़ सके।
हम लोग हर साल एक बँधे बँधाए सिलेबस के अँतर्गत अनगिनत बच्चों को शिक्षित करते हैं।और शिक्षक दिवस पर प्रतिवर्ष अपने अपने ढँग से अपने शिक्षकों को सम्मानित भी करते हैं।लेकिन यदि वास्तव में अपने शिक्षकों को सम्मान देना है तो, हर किसी को अपनी अपनी शैक्षिक सँपदा के विस्तार का दायित्व अपने कँधों पर लेना होगा, ताकि जिस जिसने भी,जो कुछ भी,समाज से शिक्षा के तौर पर ग्रहण किया है, उसे सँपूर्ण सृष्टि को वापस लौटा सके।
आज डिजिटल बचपन का सफर डिजिटल यौवन से होता हुआ डिजिटल वृद्धजन तक पहुँच चुका है। क्यूँ न अब के बरस बचपन का आनँद लेते शैशव को सृजा जाए जो वृद्धावस्था तक अपने अँदर के बचपन को जीवँत रखे।अपनी निश्छल उर्जा से स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान देते नागरिकों का सृजन ही वास्तव में शिक्षा का सही विस्तार है।समूचे समाज में परस्पर प्रेम की हरियाली हो और तीन पीढ़ियों के बीच सहयोगपूर्ण खुशहाली हो तो न कोई अलगाव रहेगा न ही मानसिक अवसाद।
डिजिटल बचपन को मानवीय सौहार्द से सराबोर तीसरी पीढ़ी का सान्निध्य तभी मिल पाएगा जब दूसरी पीढ़ी की महत्वाकाँक्षाएँ पैसा कमाने की रोबोटिक मशीनों की बजाए सँस्कारपूर्ण जीवन मूल्यों की कमाई होगी।
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सुनो वृद्धाश्रम की दीवारों से सुनाई पड़ती हैं
नितान्त अकेलेपन की सिसकिंयाँ यूँ रात भर
जैसे पालने से उठ कर बूझता एकाकी शैशव
डिजिटल उन्नति में खोए अभिभावकों के स्वर
किसी की पोशाक मेरे परिधान से उजली कैसे
मुद्रा से तोले ख़ुशियाँ नासमझ जवानी बेफिक्र
अलगाव के अँकुर कदापि ना स्वीकारें उन से
रूह पर कालिमा बिखेरना चाहते जो जादूगर
भूख प्यास ज़रूरत जिज्ञासा सब शिक्षा ही हो
लिबास की महत्ता कब जानें जिस्म के सौदागर
शिक्षित खुद को करें जीवन-मूल्यी सँस्कारों से
अग़र होना चाहें शैक्षिक प्रगति की ओर अग्रसर
कविता मल्होत्रा जी