पुस्तक समीक्षा : कविता मल्होत्रा
ये गर्म चाय की प्याली नहीं बल्कि जीवन को सार्थक दृष्टिकोण देती वो खुशहाली है, जिसके अमृत पान से समूचे ब्रह्मांड में जागृति रूपांतरित हो सकती है।
समीक्षा तो नहीं हो पाएगी मुझसे इस अनाहद नाद की कोशिश ज़रूर रहेगी,जागृति संग रहे आपके हर अल्फ़ाज़ की
कई दिन से इस अनूठे आध्यात्मिक सफ़र का आनंद ले रही थी, जैसे-जैसे सफ़र आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे मस्तक इस क़लम के सजदे में झुकता गया।निशब्द हूँ कि इस अनमोल ख़ज़ाने की क्या व्याख्या करूँ क्यूँकि ये तो वो नूरानी अहसास हैं जिन्हें केवल रूह से महसूस ही किया जा सकता है।उत्कृष्ट सृजन का रूहानी सफ़रनामा नख से शिख तक संवेदनाओं को जागृत करने में तो सक्षम ही साथ ही जो भाव इस कृति को सर्वोच्च श्रेणी में लाता है वो है जागरूकता का भाव, जो जीवन के हर पड़ाव पर पाठक को एक जागृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।लेखक की सफलता अपनी भावनाएँ उड़ेलने में नहीं अपितु हर दृष्टि में सृष्टि की शाश्वतता का प्रत्यक्ष रूपाँतरण करने में है, जो यश जी की लेखनी की सफलता का साक्षात उदाहरण है।आदरणीय यश जी आपकी हर कृति में जीवन के लक्ष्य की नूरानी आवाज़ रहे रहती दुनिया तक ज़हन को स्पर्श करताआपकी लेखनी का रूहानी अंदाज़ रहे
साधुवाद हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
सर्वप्रथम उस ज़हन को नमन जिसकी क़लम का स्पर्श चाय की प्याली के रास्ते मानव जीवन की ख़ुशहाली को छूकर संत चित्त आनंद का नक़्शा बनाने में सक्षम रहा है – “ सतत जागरण नहीं रहा तो अंत समय न जाय संभाली “
उस क़लम की दिव्य स्याही को नमन जिसने जीवन की हर दशा को चुनौती जानकर लिखा -“ चापुओं पर तय दिशा किसने लिखी है “
उस गरिमामयी शब्दकोश को नमन जिसने “ मृदु संपर्कों का संभाषण” सहजता से लिख डाला।
उस आध्यात्मिकता को नमन जिसने सच्चाई उजागर करने का निर्णय लिया- “कपड़ों का रंग बदलने से,भीतर में संत नहीं होतापुतले कितने भी करें दहन,रावण का अंत नहीं होता”
उस अवलोकन को नमन जिसने सच की रोशनी का साथ देने का संदेश प्रेषित किया – “व्यक्तिगत जब मान ना अपमान होगा, लौटना वापस बहुत आसान होगा”
उस दृष्टिकोण को नमन जिसने समूची मानव जाति की पहचान पर करारा प्रहार किया है- “कोई भगवान बना दे हमें,ये है मुमकिननज़र अपनी में हों इंसान,ज़रा मुश्किल है”
उस भागीरथ मन को नमन जिसने अर्पित किए माँ के श्री चरणों में श्रद्धा सुमन- “काँटों की बगिया में तू एक चमेली थी,माँ तू अकेली थी”
उस अध्ययन को नमन जिसने हर साँस चिंतन को समर्पित की है – “हो भले कोई हमारी कामनाहै मगर सबकी अलग संभावनाऔर सफलता का यही बस अर्थ हैजो हमारी आपकी सामर्थ्य हैक्या वहाँ उत्कर्ष अर्जित कर चलेहम सकल जीवन समर्पित कर चले”
उस संवेदन को नमन जिसने कूकती कोयल के स्वर को निर्भया की चीख के स्वर के समकक्ष रखा- “कूकती कोयल दिलों को भा रही है,कौन जाने रो रही या गा रही है”
उस सृजन को नमन जिसने मानव मन की मानसिकता पर चोट की है – खाट से खुद को कभी खींचा नहीं है जो समय पर बाग को सींचा नहीं है……ये व्यवस्था की ही सारी ख़ामियाँ हैं”
उस मनन को नमन जिसने जीवन की सहजताएँ मुखरित कर दीं – “जीवन को पकड़े रहने की गहरी क्यूँ अभिलाषा है”
उस क़लम के संतुलन को नमन जो जीवन के खेल को जीत और हार के मध्य सँतुलित सत्य की राह पर लाने का प्रयास करता है – “संतुलन के रास्ते का सत्य क्या है,डोलती इसमें हमारी चेतना है”
उस जागरूकता को नमन जिसने अपनी रिक्तता को अभिव्यक्त करते हुए एक पिता के अनासक्त किरदार को साकार किया – “जीत तेरी हो अड़ा हूँहारने में संग खड़ा हूँहारता न जीतता हूँ मैं पिता हूँ”
उस क़लम की जागृति को नमन जो परिवर्तन को सहज स्वीकृति प्रदान करने की प्रेरणा देती है – “आते-जाते परिदृश्यों में परिवर्तन स्वीकार मुझेमेरी नज़रें नित नूतन साँचे में ढलती रहतीं हैं”
उस क़लम की क्षमताओं नमन जो सरहदों के पार भी स्पष्टता देख लेतीं हैं – “अपनी रफ़्तार से बढ़ने दे उसे,रास्ता छोड़ उम्र कानज़र खाती नहीं वैसा धोखाफ़ायदा जोड़ उम्र का”
उस क़लम की अंतर्दृष्टि को नमन जो एक हाऊस वाइफ़ की मानसिक स्थिति को देखने का प्रयास करती है – “मैं नहीं जानता कि मेरी आत्म केंद्रित सी जीवन यात्रा में तुम मेरे साथ बही थी या उस बहाव में तुम कहीं निरंतर अपना अस्तित्व तलाश रही थी”
उस क़लम की शिल्पकला को नमन जो नारी जगत को सम्मानित दिशा दिखाने में सक्षम रही है- “कृत्य ही पहचान होगा,हर तरफ़ सम्मान होगा,शक्तियों पर ध्यान दो कुछ,स्वँय को सम्मान दो कुछ”
उस क़लम को नमन जो सरहद पर वर्दी में लड़ते देश के सिपाही की व्यथा सहजता से बयान करती है – “नेक नीयत से मेरा मुल्क चलाना होगा” “नौजवानों मुल्क की तक़दीर है तुमसे, ये विरासत मैं तुम्हारे नाम करता हूँ”“चलो उठाएँ आज तिरँगा जन-जन के सम्मान में”
उस क़लम की संवेदनशील अभिव्यक्ति को नमन – “कुछ अर्जित करने में जो श्रम आता है,वो महत्व, संयम, समभाव सिखाता है”
कृष्ण से मनुहार करती क़लम के चिंतन को नमन – “बचपन की क्रीड़ाएँ छूटीमोबाइल पर बृजलाल देख”
उस क़लम के आध्यात्मिक दृष्टिकोण को नमन – “जो बाँट दें दिलों को नफ़रतों को हवा देहो फिर वो अयोध्या या मदीना नहीं क़बूल”
“इसी कलयुग की शायद तुम बात कह कर गए थेकाग की चोंच में मोती की माला देखता हूँ”
“झेलते आए हैं पतझड़ आँधियों कोइसलिए सीधे खड़े औ तने हैं”
“घायल किया विकास ने पर्यावरण बहुतअब ध्यान आदमी का उधर जाए तो अच्छा”
“आपसी संघर्ष का पाया मुझे ये ही इलाजगल्तियों को ढूँढ अपनी आप समझाता रहा”
“मैं करूँ आराधना गर तू मुझे जन्नत दिला देये इब़ादत है अगर तो फिर भला व्यापार क्या है”
“आप सारी मुश्किलें मत छीनियेवर्ना ये बच्चा बड़ा होगा नहीं”
“हमसे अधिक उसे रही बाज़ार की समझजो वोट माँगता गुनाहगार के लिए”
“और पैमाने सभी के व्यक्तिगत हैंदूसरों की नाप से आगे बढ़ो तुम”
“देखते हैं आप जिनमें जाति गौरवमैं समझता बेड़ियाँ हैं,हथकड़ी हैं”
“अलगाववाद की भाषा ये,लगती है हमको ग़ैर बड़ी,है शब्दकोश निर्मित अपना तुलसी, रसखान, कबीरों से”
“मनुज,मनुज में फ़र्क़ करोगेअपना जीवन नर्क करोगे”
“कुछ बुजुर्गों का करो घर में ख़्यालआपका बेटा बड़ा होगा ज़रूर”
“गिर गया था जो मकाँ अपनी गली मेंपंछियों का आशियाना हो गया है”
“सूरतें बेशक बदलतीं हर घड़ी होंदोस्तों हम इक सनातन आत्मा हैं” “हो हमें दो वक्त की रोटी नसीब,आपके घर रोज़ दावत हो तो हो”
“तीन साल की बच्ची से भी,मुर्दे से भीपुरुष जाति के गिरने की हद ढूँढ रहा हूँ” “परिवर्तन लाना कोई आसान नहींमुश्किल तो मुश्किल से ही हल होती है”
“दिलों के बीच प्यार ही न होलाख रस्मों रिवाज़ क्या करना”
“सत्यमेव जयते तो भाता है लेकिनझूठ बोलने में आसानी क्या लिक्खूं”
“बाप की छोड़कर अपने ऊँगलीफिर कभी बेफिकर नहीं होते”
“हमने पढ़ी किताब सभी देखभाल केरक्खे दिलो दिमाग़ इस तरह सँभाल के”
“सत्य में व्यवहार भी तो चाहिएव्यवस्था में प्यार भी तो चाहिए”
“आपके सब स्वप्न पूरे हों मेरी शुभकामनाकर्म के बिन सार्थक पर ज़िंदगी होगी नहीं”
“ज़िंदगी से प्यार होना चाहिएमौत का स्वीकार होना चाहिए”
“ग़ज़ब उसे लुभा रहा है चाँद ईद काहोना है जिसे ईद पर हलाल दोस्तों”
“दुर्लभ ऐसे लोग जो,जहाँ वहीं संतुष्ट,गाँव भटकता शहर में,शहर ढूँढता गाँव”
“सच सुबह का शाम तक टिकता नहींरोज़ के अख़बार सी है ज़िंदगी”
“मिलन खुद से ही न हो जाए अपनाशाम हर मयकदे जाते रहे हैं”
“आज ही से वास्ता है दोस्तों”आज” कल का रास्ता है दोस्तों”
“आसान देखना है दूसरों की गल्तियाँखुद ही को देखने को नज़र और चाहिए”
“प्रार्थना खुद आप में संपूर्णता हैप्रार्थनाएँ राम तक पहुँचें न पहुँचें”
“कुछ शब्द मिल गए मेरी खामोश ज़ुबाँ कोलोगों ने सराहा मेरे अँदाज़ ए बयाँ को”
“होय सबका कहें सभी अपनामैं वो हिंदोस्तान चाहता हूँ”
“हर किसी को महफ़िलें भातीं नहींभीड़ में इक दम अकेले सैंकड़ों”
“हारने का हुनर करें हासिलऔर खुद को अजय किया जाए”
“मेरी नाकामियों में सब क़सूर औरों काखुद को मासूम मुवक्किल बना लिया हमने”
“नहीं अकेले तुम,कोई तो साथ खड़ा हैतुमको यह विश्वास दिलाने आ जाएँगे”
“रखा ऐसे हिसाब बातों कालगे व्यापार कर रहा हूँ मैं”
“ज़िंदगी में रंग भरने की तैयारी चाहिएऔर थोड़ी बहुत मरने की तैयारी चाहिए”
“ख्वाहिशें जितनी पालते गएअपना ही दम निकालते गए”
“काम काले यहाँ अधिक जिसकेबहुत उजला लिबास है अक्सर”
“नयी पीढ़ी भी संवर जाएगीअगर अच्छी मिसाल है घर में”
“हो गए महादेव जो विष पी गएआप कहते जहर कटता ज़हर से”
“मौसमी सब्ज़ियाँ फल अब हमें अच्छे नहीं लगतेस्वाद भाता तभी जब ख़ूब ऊँचा दाम हो जाए”
“फूल देय या खार परोसेजनता है सरकार भरोसे”
“तुझे मुझसे शिकायत थी, मुझे तुझसे शिकायत थीसाथ फिर छूट जाने से,आँख में ये नमी क्यूँ है”
“जबसे पहचाना शब्दों की सीमाओं कोकोमल क्षण में अक्सर चुप रह जाता हूँ मैं”
“जो आँखों में ना दिख पाएउतनी प्रीत जताऊँ कैसे”
“कुछ हमारे कृत्य का परिणाम हैआसमाँ में जो धुआँ है आजकल”
“देते रहे मिसाल आप और की सदैवबनके तो कभी आप भी मिसाल देखिए”
“दोहावली” के क्या कहने !! “मजहब अँधे जो कहें,तुझ में मुझ में भेद बहुरंगी संसार को,करते स्याह सफ़ेद”
“सकल सृष्टि में एक का,रहे सतत आभास मिटे द्वंद्व का क्लेश सब,हो सँपूर्ण विकास” “वर्तमान में जो जिए, मिटे द्वेष अरु राग और ध्यान इस लक्ष्य में, सबसे उत्तम मार्ग”
“जितना खोजा बुद्ध ने,खोज सके न कोय, और अंततः कह गए, अप्प दीप भव तोय”
“भीतर का सब मामला, बाहर सारा ज़ोर,भीतर घटती प्रार्थना, बाहर केवल शोर”
“मतलब हर संबंध में,कर लीजे पड़तालजो भेड़ों को पालता,वही उतारे बाल”
“पानी बाहर खींचकर, बचें कुँए के प्राणधन की रक्षा के लिए,कीजे धन का दान”
“मजहब लेकर घूमते,हाथों में शमशीरकैसे अब पनपे भला, कोई संत कबीर”
शत शत नमन आपके लेखन को