2 अक्टूबर, दो महान विभूतियों की जयंती, एक अहिंसा के पुजारी मोहनदास कर्मचन्द गाँधी जी जिन्हें प्यार से बापू भी कहा जाता है । दूसरी विभूति जिसने शून्य से शिखर तक की यात्र कर विपरीत परिस्थितियें में भी सत्य–साहस और पुरुषार्थ के बल पर कैसे विजय अर्थात् अपने लक्ष्य को साधा जा सकता है, ‘जय–जवान जय किसान’ का नारा देने वाले भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी को नमन, वंदन करता हूँ ।
प्रभु कृपा से दो–ढाई वर्षों के बाद भारतवासी ‘कोरोना’ को भूलने सा लगे हैं और सामान्य जन–जीवन की ओर बढ़ चले हैं । रामलीला जोर–शोर से भव्यता से मंचित हो रही है और रावण के पुतले को फिर एक बार गली–चैहारों–मैदान में खड़ा करके फूंका जाएगा । हमने हमेशा अपना पक्ष रखा है कि त्यौहार मनाएं किन्तु आवश्यकता है उसके उद्देश्य, संदेश–महत्त्व को समझकर उन्हें आत्मसात करने की, अपनाने की । बेजान पुतला फूँक कर खुश होना कि बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक दशहरा हम मना रहे हैं । किन्तु भीतर व्याप्त अवगुण रूपी रावण जिसका कद दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और वो हम पर खूब भयानक हँसी बिखेरता है–––––कितने मूर्ख हैं ये लोग, जो कागज के पुतले को जलाकर उछल रहे हैं । वास्तविक बुराईयाँ इनकी दिनोंदिन बढ़ रही हैं ।
मजबूत लोकतंत्र् के लिए मजबूत विपक्ष होना आवश्यक माना जाता है । विपक्ष में जान फूंकने के उद्देश्य से एक ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अन्य पार्टियों के प्रमुखों से मिलजुल कर संभावनाएं तलाश रहे हैं वहीं कांग्रेस ने अपनी खोई जमीन तैयार करने हेतु ‘भारत जोड़ा यात्रा’ राहुल गाँधी की अगुवाई में प्रारंभ कर दी है । प्रारंभिक दिनों में अच्छी प्रतिक्रिया–समर्थन मिला लेकिन इसी बीच राजस्थान के सियासी संकट ने कांग्रेस को 2 कदम आगे चले और 4 कदम पीछे वाली स्थिति में ला खड़ा कर दिया । यह सब क्या है, अपनी अति महत्वकांक्षाओं के चलते पार्टी से हम हैं, यह भूलकर हमसे पार्टी है यह दम भरने लगते हैं तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है । इस बार कांग्रेस ने यह भी प्रयास किया है कि पार्टी का नया अध्यक्ष गाँधी परिवार के अतिरिक्त कोई अन्य होगा । अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह में कांग्रेस पार्टी को अपना नया अध्यक्ष मिल जाएगा ।