राजनीतिक सफरनामा
फिर रावण को मारने की तैयारी है । नवरात्रि में विराजी माॅ दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति ने सारे देश को धार्मिक कर दिया है । माॅ दुर्गा हमें शक्ति दें, माॅ दुर्गा हमारे जीवन में आए विषाद को हर लें । शक्ति की उपासना का यह महापर्व रावण के पुतले के दहन के साथ पूर्ण होता है । रावण याने हमारे अहंकार का पुतला, रावण याने हमारी बुराईयों का पुतला, रावण याने राक्षसीप्रवृति का पुतला । रावण का पुतला तो केवल प्रतीक है । भगवान श्री राम जी ने जब रावण को मारा था तब उसके अंदर की इन बुराईयों का संहार किया था । रावण तो विद्ववान था, पांडित्य था पर उसके अंदर ऐसी ढेर सारी बुराईयां थीं जिन्हें राक्षसत्व के नाम से जानते हैं । श्री राम ने मर्यादा का पालन किया इस कारण से ही तो वे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम कहलाये । रावण ने मर्यादा का उल्लंघन किया तो राम के हाथों मारा गया । हम रावण के प्रतीक में रावण का पुतला बनाकर जलाते हैं इस भावना के साथ कि इस पुतले के माध्यम से हमारी भी सारी बुराईयों का दहन हो जायेगा । हो भी रहा होगा, हमे नही मालूम पर हम बुराईयों का और राक्षसीप्रवृति का जीवतं अभिनय देखते रहते हें सालभर । इन आताताईयों का सर्वनाश होना चाहिए । गैर मयादित आचरण करने वाली प्रवृति का नाश होना चाहिए । रावण का अट्ठहास गूंज रहा है और रावण के प्रतले के माध्यम से हम उन पर विजय भी पा रहे हैं । कितनी नृसंश हत्यायें हो रहीं हैं, बेटियों के साथ दुराचार हो रहे हैं, अन्याय और अत्याचार के शोर से भयाक्रांत हो रहे हैं हम । हमें रावण का अंत करना ही होगा प्रतीक में नहंी सचमुच में । उत्तराखंड में अंकिता के साथ घटी घटना ने हमें फिर से लज्जित किया है । एक व्यक्ति इतना हैवान हो सकता है कि अपने स्वार्थ के लिए जान ले ले । समाज में मौजूद ऐसे राक्षसों के सर्वनाश की कामना तो करना ही होगी । माॅ दुर्गा इतनी शक्ति दें कि ऐसे पापियों का नाश किया जा सके । उत्तराखंड की घटना ने एक बार फिर उबाल ला दिया है । हर कोई गुस्से में है । अंकिता के परिवार के साथ खड़ा है । उत्तरप्रदेश में भी देा बेटियों के साथ भी ऐसे ही निर्मम कांड किया गया । एक अन्य बेटी को जिन्दा जला दिया गया । राजस्थान में भी ऐसी घटनायें हो रही हैं । आखिर क्यों ऐसे राक्षसी प्रवृति वालों का समूल नाश नहीं हो पा रहा है । अपराधी भले ही अरेस्ट कर लिए जाते हों, पर घटनायें रूक कहां रहीं हैं । एक सामाजिक जागरण ऐसी प्रवृति के खिलाफ भी होना चाहिए । राहुल गांधी तो भारत जोड़ो अभियान पर निकल पड़े हैं, उन्हें अपनी इस यात्रा में ऐसे मुद्दों को भी शामिल करना चाहिए । राहुल गांधी की यात्रा अनवरत चल रही है और भीड़ भी उनके साथ जुट रही है । कांग्रेस में उत्साह है । उसे इस उत्साह की आवश्यकता भी है । आगामी वर्षो में होने वाले लोकसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस को एक बार फिर संगठित और मजबूत होकर खड़े होने की जरूरत है पर ऐसा हो सके इसकी संभावना नजर नहीं आ रही है । कां्रेस एक कदम आगे चलती है और दो कदम पीछे हो जाती है । राजस्थान में जो हो रहा है वह कांग्रेस के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए । आपसी खींचतान ने ही पंजाब से कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया है अब वह ही स्थिति राजस्थान में दिखाई दे रही है । अगले साल ही तो वहां चुनाव होने हैं । कुर्सी पर कोई एक नेता ही बैठ सकता है, पर पहले जो बैठा है उसे कुर्सी से उतरना होगा । कांग्रेस अपने पैर कुल्हाड़ी मारने की विशेषज्ञ होती जा रही है । इसी विशेषज्ञता के चलते एक एक कर उनके हाथों से विभिन्न राज्यों की सत्ता भी छिनती जा रही है । हो सकता है कि कांग्रेस अपने अंदर की सारी गंदगी को साफ कर फिर नए सिरे से अपने आपको खड़ा करे । कांग्रेस का यह पराभव अन्य विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए भी चिन्ता का विषय है । विगत कुछ दशकों से भारत की राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व बढ़ा है । क्षेत्रीय पार्टियां अपने राज्य तक ही सीमित रहती हैं ऐसे में उन्हें एक बड़े राजनीतिक दल की आवश्यकता तो रहेगी ही । कांग्रेस इसकी पूर्ति कर सकती है । लालू यादव और नीतिश यादव गले में बांहें डालकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांणी से मुलाकात कर चुके हैं । अन्य क्षेत्रीय पार्टियां भी कांग्रेस को मजबूत होते देखना चाह रही हैं ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकें । भाजपा विपक्षी पार्टियों के इस बिखराव से मजे में हें । वह जानती है कि विपक्षी पार्टियां एक होने का कितना भी अभिनय कर लें पर कभी एक हो नहीं पायेगीं । उनके स्वार्थ उनकी एकता के लिए अवरोध बने रहेगें । कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के मायमण् से यह जताने का प्रयास कर रही है कि वह कितनी भी कमजोर हो जाए पर उसका अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता । संभव है कि उत्साह में कुछ लोग कांग्रेस के साथ जुड़ भी जायें और संभव यह भी है कि जो कांग्रेसी नेता पार्टी से विदा लेने जा रहे हों उनके कदम थम जायें । इस साल गुजरात में और हमाचल प्रदेश मे चुनाव होना है और अगेले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीगढ़ सहित पांच राज्यों में चुनाव होना है । कांग्रेस की कवायद इन राज्यों केचुनाव तो हैं ही साथ जी लोकसभा चुनाव भी है । संभवतः कांग्रेस जानती और समझती है कि अभी दिल्ली की गद्दी दूर है पर फिर मेहनत करते रहना चाहिए ताकि वह शून्य में खो न जाए । आप पार्टी अपने आपको मजबूत करने में लगी है । भाजपा आप पार्टी के बढ़त वर्चस्व को समझ चुकी है इसलिए अब आप पार्टी को घेरने मे लगी हुई है । वह हल्ला ज्यादा कर रही है । इस हल्ले का फायदा यह हो रहा है कि आप पार्टी की विश्वसनीयता दांव पर लगती जा रही है । भाजपा दिल्ली की सरकार के हर कामकाज को कठघरे में खड़ा कर रही है भले ही उनमें कोई अनियमितता न हुई हो । उपराज्यपाल उनके कांधे से कांध मिलाकर काम कर रहे हैं । इससे दो फायदा हैं एक तो यह कि आप पार्टी के नेता अपनी सफाई देने के काम में लग जाते हैं और दूसरे यह की आप पार्टी कठघरे मं खड़ी हो जाती है । आप पार्टी भाजपा की इस रणनीति को समझ चुकी हे पर फिलहाल उसके पास इसका कोई तोड़ नही है । अरविन्द केजरीवाल निरंतर गुजरात के दौरे पर हैं और हर गली कूचे में घूम रहे हैं । ऐसा ही उन्होने पंजाब में किया था । पंजाब में उनकी रणनीति सफल रही थी । वह गुजरात में इसे दोहारना चाहते हैं । भाजपा गुजरात मं पिछले लगभग 25 सालों से सत्ता पर काबिज । पिछले विधानसभा चुनाव मं कांग्रेस सत्ता में आते7आते रह गई थी पर इस बार कांग्रेस वहां बहुत पीछे चल रही है । आप पार्टी मुख्य टक्कर देने की स्थिति में आ चुकी है । भाजपा के लिए आप पार्टी नया सिरदर्द बन चुकी है । आप पार्टी इसके बाद अन्य राज्यों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार है । कांग्रेस के पराभव का फायदा आप पार्टी लेना चाहती है । भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस के कमजोर हो जाने के बाद वह निष्कंटक राज्य कर सकती है पर आप पार्टी ने उनकी सोच को चिन्ता में परिवर्तित कर दिया है । लोकसभा चुनाव को लेकर जो विपक्षी राजनीतिक दल एकता का राग अलाप रहे हें उनमें आप पार्टी शामिल नहीं है उसे उम्मीद है कि वह अकेले चलेगी तो ज्यादा फायदे में रहेगी ।