हिन्दी दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष चौदह सितम्बर को मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और अपने आप में एक समर्थ भाषा है। विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा भी है, अतः इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करने के लिए हिन्दी दिवस का आयोजन किया जाता है। चौदह सितंबर नजदीक आते ही हर साल सरकारी दफ्तरों में, स्वायत्त संस्थाओं में हिन्दी को लेकर कुछ सभाएं हो जाती हैं। हिन्दी दिवस,सप्ताह,पखवाड़ों के
आयोजन होने लगते हैं। हिन्दी की समस्याओं पर चिंता कर ली जाती है। सितंबर बीतते-बीतते हम फिर वहीं आ जाते हैं,जहां से शुरू हुए थे। यानी फिर अंग्रेजी-अंग्रेजी करने लगते हैं। हिन्दी तकनीकी तौर पर भारत की एक भाषा है और राजभाषा होने के कारण उसे सरकार का एक हद तक समर्थन प्राप्त है। दफ्तरों में ‘हिन्दी राष्ट्रभाषा है’, ‘हिन्दी में कामकाज करना चाहिए’ ऐसे बोर्ड भी लगे होते हैं। कही-कहीं महात्मा गांधी का या अन्य किसी महापुरुष का हिन्दी को लेकर दिया गया वक्तव्य भी लिखा होता है। हर हिन्दी दिवस पर हर कहीं हिन्दी के बिगड़ते रूप पर विद्वान चिंता करते हैं। भारत में भले ही कुछ लोगों द्वारा अंग्रेज़ी बोलना सम्मान की बात मानी जाती हो, पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेज़ी का इतना महत्त्व नहीं है। हिन्दी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेज़ी माध्यम का चयन किया जाना है। आज भी भारत में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला ऐसे स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जो अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मातृभाषा को ही ग्रहण करता है और इसी भाषा में किसी भी बात को भली-भाँति समझ सकता है। अंग्रेज़ी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है। अत: भारत में बच्चों की शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हिन्दी ही है। मातृभाषा में शिक्षा, मातृभाषा में काम और मातृभाषा का व्यवहार संपूर्ण साक्षरता की दिशा में भी कारगर सिद्ध हो सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा व्यवस्था में बहुभाषा और मातृभाषा पर केंद्रित है। यह जहां एक ओर भारत केंद्रित है, वहीं दूसरी ओर बालक केंद्रित भी है। यदि आप यह सोचते हैं कि अंग्रेजी ही संपर्क भाषा और ज्ञान की एकमात्र ‘खिडक़ी’ है तो इतना जान लिजिए कि विश्वभर में 45 देश ही अंग्रेजी को जानते हैं,प्रयोग में लाते हैं, जबकि विश्व के 160 देश अंग्रेजी नहीं जानते, उसे प्रयोग में नहीं लाते। करीब सात हजार विभिन्न तरह की भाषाएं इस धरती पर बोली जाती हैं। इन 7000 भाषाओं में 23 भाषा ही ऐसी है जिन्हें आधा विश्व बोलता है और प्रयोग में लाता है। जिस अंग्रेजी के वैश्विक संपर्क भाषा होने का जो गुणगान हम आए दिन करते हैं उसकी स्थिति इतनी अच्छी भी नहीं है। गुलाम मानसिकता के चलते हिंदी के प्रचार -प्रसार और विकास के लिए इमानदारी से प्रयास नहीं हुए है। हमारे बच्चे हिन्दी को पसंद नहीं कर पा रहे हैं। हिन्दी वाले अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं, और हिन्दी की चिंता करते हैं। यह चिंता झूठी है,इत्यादि। ऐसी चिंताओं को हर कहीं सुना जा सकता है। हिन्दी को खतरा पैदा हो रहा है। यह ‘थीम’ शाश्वत सी बन चली है। लेकिन तथ्य एकदम अलग बात कहते हैं। भाषा के मामले में थोडा सकारात्मक और व्यावहारिक होकर बात करें तो यह माना जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों मे हिन्दी का प्रचार-प्रसार बढा है। और यह आम बोलचाल की भाषा के रूप में देश में सबसे बड़ी भाषा के रूप में उभरी है,इसके साथ ही हिन्दी लगातार बढ़ रही है, फैल रही है और वह विश्वभाषा बन चली है। भारतवंशी हिन्दी मूल के लोग दुनिया के हर देश में रहते हैं और उनकी हिन्दी इस हिन्दी जैसी ही है। कहीं-कहीं उसकी लिपि रोमन है लेकिन हिन्दी सर्वत्र नजर आती है। एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। हिन्दी की व्याप्ति कितनी है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि आप दक्षिणी प्रदेशों में जैसे केरल में हिन्दी को दूसरी भाषा की तरह बरता जाता देखते हैं। आंध्र, कर्नाटक में कन्नड़ के साथ हिन्दी मौजूद है। तमिलनाडु तक में अब हिन्दी का वैसा विरोध नहीं है जैसा कि सातवें दशक में हुआ था। मीडिया की मुख्य भाषा हिन्दी है। हिन्दी मीडिया अंग्रेजी मीडिया से कहीं आगे है। नए राष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण में पहले पांच सबसे ज्यादा बिकने वाले अखबार हिन्दी के हैं। एक अंग्रेजी का है, एक मलयालम का है, एक मराठी का और एक तेलुगु का है। एक बांग्ला का भी है। हिन्दी के सकल मीडिया की ‘रीच’ इन तमाम भाषाई मीडिया से कई गुनी ज्यादा है। हिन्दी की स्वीकृति अब सर्वत्र है। ऐसा हिन्दी दिवसों के जरिए नहीं हुआ, न हिन्दी को राजभाषा घोषित करने से हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ है कि हिन्दी जनता और मीडिया का नया रिश्ता बना है।
मीडिया की हिन्दी संचार की जबर्दस्त हिन्दी है। इतिहास में इतने विकट, व्यापक एवं विविध स्तर के संचार की हिन्दी कभी नहीं रही। वह साहित्यिक हिन्दी रहकर संदेश, उपदेश और सुधार की भाषा भर बनी रही। प्रिंट मीडिया ने उसे एक विस्तार दिया, लेकिन साक्षरों के बीच ही। फिल्मों और टीवी ने उसे वहां पहुंचाया जहां हिन्दी का निरक्षर समाज रहता है, उसे एक नई भाषा दी है जो म्युजिकल है। जिसमें एक से एक हिट गाने आते हैं जिन्हें सुनकर पैर थिरकने लगते हैं। हिन्दी टीवी के समाचारों से लेकर मनोरंजन की सबसे बड़ी भाषा है। वह इंटरनेट, मोबाइली चैट में आकर गिटपिट की भाषा बनी है। भले ही उसकी वर्तनी रोमन हो चली हो। वहां हिन्दी-अंग्रेजी का नया निराला मिक्स मिलता है।अब वह तेज गति से दौड़ती हुई फर्राटेदार मनोरंजक भाषा है जिसमें चुटकुले मजाक, गंभीर बातें और संगीत बजता है। अब तो चिकित्सा शिक्षा भी हिन्दी भाषा में पढाने की शुरुआत हो रही है। इतनी बोली जाने वाली भाषा दूसरी नहीं है। इसका कारण हिन्दी का अपना लचीला स्वभाव है, उसमें दूसरी भाषाओं को समा लेने की अद्भुत क्षमता है। साहित्यकार किस्म के लोग इस हिन्दी का खाते हैं लेकिन इसको दूषित बताते हैं। कारण है उनका सोच अभी तक हिन्दी को किताबी और साहित्यिक मानता है जबकि कोई भी भाषा जनसंचार की भाषा बने बिना आगे नहीं बढ़ती। वह जितना विविध संचार करने में क्षमतावान होगी उतनी ही बढ़ेगी। उसमें तमाम लोग संवाद करें ऐसी भाषा आगे ही बढ़ेगी। हिन्दी इसीलिए आगे बढ़ी है और बढ़ रही है। इसके पीछे हिन्दी भाषी जनता की जरूरतों का बल है। हिन्दी जनता सबसे बड़ी उपभोक्ता जमात है। उसे संबोधित करने के लिए कॉर्पोरेट दुनिया विज्ञापन हिन्दी में पहले बनवाती है। यही हिन्दी की गुरुत्वाकर्षकता है।बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिन्दी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिन्दी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। अतैव इस सन्दर्भ में यह कहना सार्थक ही है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और एक भारतीय होने के नाते हमें अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए और इसे सम्मान देना चाहिए। हिन्दी हमारी धरोहर है, जिसे हमें सुरक्षित रखते हुए अपनी आने वाली पीढियों तक पहुंचाना है।
डॉ.पवन शर्मा