एक 51 साल का व्यक्ति था, जो एक ग्रामीण विकास के मिशन में 9-10 सालों से
राज्य स्तर की नौकरी कर रहा था। अपने प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में समर्पित भाव से
काम कर रहा था। वह कम वेतन में भी बहुत ज्यादा काम करता था। सभी से व्यवहार भी
ठीक था। इसलिए मिशन को उससे कोई शिकायत नहीं थी। सब कुछ ठीक चल रहा था।
सभी कर्मचारी देर रात तक वरिष्ठ अधिकारियों के नाक के नीचे काम कर रहे थे। इसके
बावजूद अधिकारियों द्वारा बोला जाता था कि तुम कुछ नहीं करते हो। तुमको निकाल कर
बाहर करेंगे। इससे क्षुब्ध होकर वह स्वाभिमानी बुजुर्ग बिना कोई शिकायत किये त्यागपत्र
देकर नोटिस पीरियड पर चला गया। उसके साथ मिशन का इस तरह का व्यवहार अन्य
कर्मचारियों को बुरा लगा। सभी में चर्चा शुरू हुई, जिसमें लोगों ने कहा, ‘जो मिशन इतने
निष्ठावान व्यक्ति को बिना किसी वजह के जॉब से निकालने की योजना बना सकती है, तो
वह हमें कभी भी निकाल सकती है। मिशन के अधिकारियों के सीने में दिल है ही नहीं। उन्हें
केवल अपना फायदा दिखता है। बेहतर होगा कि हम भी बस वेतन जितना काम करें। बेवजह
अतिरिक्त मेहनत न करें। मिशन अगर प्रोफेशनल है, तो हम भी अब मिशन से कोई
इमोशनल अटैचमेंट नहीं रखेंगे। कुछ साथियों ने यहां तक कह दिया कि हम तो अब दूसरी
नौकरी तलाशना शुरू करेंगे। ऐसी मिशन में रहने का क्या फायदा, जहां कर्मचारियों की
भावनाओं का ख्याल नहीं रखा जाता हो। इस चर्चा के बाद से ही लोगों के कामों में अंतर
नजर आने लगा। जो लोग मिशन के लिए ओवर टाइम करते थे, उन्होंने वह बंद कर दिया।
जो कर्मचारी मुसीबत आने पर अपनी छुट्टी कैंसल करते थे, उन्होंने छुट्टी लेना शुरू कर
दिया। कार्यालय का माहौल खराब होता गया। मिशन की प्रगति पर भी असर पड़ा। एक के
बाद एक दर्जनों प्रोफेशनल जॉब छोड़ कर चले गये। क्योंकि वह व्यक्ति कई युवाओं के लिए
आदर्श था। मिशन के मजबूत आधार स्तंभों में से था।
जो लोग बड़े पदों पर हैं, वे इस घटना से सीख ले सकते हैं। अधिकारियों का सबसे
पहला कर्तव्य है कि मिशन के कर्मचारियों के साथ किसी तरह की नाइंसाफी होने न दें।
उनके साथ धोखा न करें। जब कंपनी किसी अच्छे, कर्मठ कर्मचारी के साथ गलत व्यवहार
करती है, गलत व्यक्ति को आगे बढ़ाती है, तो कर्मचारियों का विश्वास टूट जाता है। मैनेजमेंट
को यह समझना होगा कि कर्मचारियों से वे तभी बेहतरीन आउटपुट निकाल सकते हैं, जब वे
उन्हें मिशन से भावनात्मक रूप से जोड़ने में सफल होते हैं। यह तभी मुमकिन होता है, जब
मिशन उनके साथ कोई नाइंसाफी न करे। एक कुशल प्रबंधक वह है, जो अपने अधीनस्थों की
संघर्ष के बिंदु को पहचानता है और उसकी त्वरित निदान करता है।
डॉ नन्दकिशोर साह