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कहानी :   सुनहरा मौका – डोली शाह

        

     दफ्तर जाने वाली लंबी कतारों में लगी गाड़ियों के बीच हम भी अपनी चार पहिया लेकर सपरिवार निकल चले एक लम्बे अरसे से बुलाते मित्र के पास । चलते- चलते हसीन वादियों के बीच मानो रास्ता खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। प्रकृति की सुंदर छटा, ठंडी हवाएं,  कभी बालू के महीन कण , तो कभी प्रकृति की सादगी आंखों को आकर्षित कर रही थी।

हम सुन्दर रास्ते से गुजरते हुए पहुंचे अपने मित्र के गृह नगर! इनो रूंग रियांग  के आवास । छोटा कद ,गेहूंआ बदन, चेहरे पर लालिमा लेकिन सुंदरता कुछ खास ना थी। वहां पहुंचते ही लगा मानो खुशियो में पूरा  आंगन  गोता लगा रहा हो।

चाय – पानी की केतली और प्यालियां  समझते हुए इच्छा अनुसार लेने की बात सुन कुछ अटपटा लगा। फिर भी यह सुकून था कि चलो नुकसान तो नहीं होगा। चाय खत्म होते ही हम  सब निकल गये घूमने- घुमाने प्रकृति का आनंद लेने।

कुछ समय बाद ही हम पहुंचे घुंघरू जैसे घने वृक्षों के बीच अंगड़ाइयां लेती हुई लंबी-लंबी लताएं! मुख शुद्धि के पत्ते मानो दिल तक को पवित्र कर रहे थे । पूरे वातावरण को निर्मल चादर से ढक रखा था।  कुछ दूरी पर स्थित विशाल बराक नदी की उफनती तरंगे , हंसों का मेला तो दूसरी ओर हिलती- डोलती पगडंडियों पर मोटे-मोटे थैले लिए लोगों का आना – जाना। वहीं ऊंचे -ऊंचे चबूतरों पर बैठकर नवयुवकों का केमरे में कैद करने की लालसा …। नीचे पानी, ऊपर खुला आकाश और बीच में इक्के- दुक्के लोगों का आना-जाना देखते ही बनता था। वहीं किनारे पर लोगों का स्नानागार जैसा आनंद उठाना । दृश्यों का  मजा ही कुछ अद्भुत था। 

आग का गोला दुपहरिया के सर पर चढ़ा ही था कि थके हारे हम पुनः पहुंचे अपने मित्र ईनो के गृहवास । पहुंचते ही शुद्ध जल ने सांसों तक को तृप्त कर दिया। सबके मुंह पर एक ही शब्द था सचमुच कितना मजा है इनका ! हसीन वादियो के बीच , ताज़ी हवाऐ, सब कुछ ताजा, खुला – खुला वातावरण, रंग-बिरंगे मछलियों से भरा तालाब ,जब  जिसकी इच्छा.. ना कोई प्रदूषण की चिंता , न बीमारियों का खतरा ….लंबी सांस लेते हुए… गायत्री सब कुछ सुनती रही।

इतने में मेरी नजर चारपाई के नीचे बैठे बच्चे पर पड़ी । जोर से रोते बिलखते बच्चों को वहां से निकाला!

मगर वह वहां क्यों थे?

 असल में आप जैसे लंबे चौड़े दाढ़ी वाले लोगों को  यह कभी नहीं देखे ।  हमारे समाज में लोग इतने लंबे नहीं होते  , मानो प्रकृति ने हमें यह  श्राप  दे रखा है कि हमारा कद इससे लंबा नहीं होगा !

गायत्री ने झट  से कहा — अरे नहीं ,ऐसा मत सोचो ! लेकिन उसके बोलने के पीछे का दर्द बहुत कुछ कह रहा था । बातों में छिपे दर्द को देख वो दुखी मन  से वहां से खिसक कर रसोई घर की तरफ बढ़ गई।

वहां पहुंचते ही देखा तो अवाक। आंखें बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। धुंआ से भरा घर, बच्चे को पीठ में लिए आंखों में मोती -से भरे अश्रु कण देख  कर  मेरे मुख से  निकला –“यह क्या ,आप रो क्यों रही है”?

 “अरे नहीं, वह धुंआ आंखों में लग रहा है इसलिए बस…!”

 “अरे बहन जी, इससे तो आपकी आंखों पर बहुत खराब असर पड़ेगा और आपके साथ एक नन्हा को भी…”

” दीदी मजबूरी है।”

” आप लोगों को तो रसोई बनाने के लिए कम से कम सिलेंडर तो मंगवाना चाहिए।”

“आप  लोगों  के लिए ही तो उज्ज्वला जैसी व्यवस्था की गई है। उसके अनुसार तो काफी कम मूल्य में ही आप लोगों को सिलेंडर उपलब्ध  हो जाएगा।आप ईनो रियांग  को कहती क्यों नहीं ?”

” दीदी क्या बोलूं ,यहां  सड़क मार्ग की वजह से प्रति सिलेंडर ₹2000   पड़ जाता है । आखिर कहां से आएंगे इतने पैसे …”

” बहन लेकिन पैसे से जरूरी तुम्हारी आंखें हैं, भगवान ना करें यदि तुम्हारी आंखों को कोई दिक्कत हो गई तो इससे कहीं ज्यादा पैसे लग जाएंगे । आप लोगों का सादगी भरा जीवन सचमुच देखने योग्य है।”

टीना की एक-एक बात मेरे दिल को छू रही थी। मेरे अंदर जानने की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी। “सुनने में आता है आप लोग हर चीज को उबालकर ही खाना ज्यादा पसंद करते हैं?”

टीना मुस्कुरा कर चुप रह गई!

“वाह! यह  सेहत के लिए तो  बहुत ही अच्छा है ।” टीना की चुप्पी देख उससे रहा ना गया। “बताओ ना , क्या घर पर मसालेदार खाना  किसी को पसंद नहीं!”गायत्री ने पूछा ।

 “दीदी …

 “अरे ! टीना शायद नहीं बताओ तो।  क्या  यहां किसी को मसालेदार खाना पसंद नहीं?”

“दीदी कभी खाया ही नहीं”।

गायत्री अवाक हो बोली -“घर पर भी नहीं बाहर भी नहीं, रेस्टोरेंट इत्यादि में भी नहीं!”

” दीदी बचपन से ही हम इन वादियों के बीच रहे कभी बाहर की दुनिया देखने का मौका ही नहीं मिला।”

” क्यों तुम्हारी शादी ..”

“हमारे रिवाज के अनुसार लड़के अपना विवाह कर कन्या के घर  आते हैं जिससे मैं तो …..”

” अरे वाह, यह तो बहुत अच्छा है , कम से कम आप लोगों को तो  दूध का कर्ज चुकाने का मौका  मिल जाता है और सबसे बड़ी खुशकिस्मती की बात है कि आपका अधिपत्य  कायम रहता है।”दीदी लेकिन क्या आधिपत्य ! हमें  अपनी एक  जरूरत को पूरा करने के लिए कई घंटे पैदल सफर करना पड़ता है जिससे इच्छा होते हुए भी, डर अपना आधिपत्य जमा लेता है और हम अपनी जरूरत को समेट लेते हैं।  हम तो बस इन जंगलों में रहकर  जंगली बनकर ही रह गए हैं । यहां 60 किलोमीटर तक न तो कोई  विद्यालय की सुविधा है, सड़क,  बिजली  तक की भी यहां कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।”

 सुन कर बड़ा ही अजीब लगा। गायत्री ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि आप गलत सोच रही हैं ।मानव समाज की यह प्रवृत्ति है कि कोई अपने जीवन से खुश नहीं है ,उसे सामने वाले की जिंदगी आसान लगती है ।आप तो बहुत खुशकिस्मत है कि आपको शुद्ध वायु, प्रकृति से निकला पवित्र जल और  ताजी कंदमूल सब्जियां उपलब्ध है। मगर शहरों में तो प्रदूषित वायु से रोज कितने ही लोगों की जानें जा रही हैं ।

“दीदी वर्षा के दिनों में तो हमें भोजन भी बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाता है ।एक साथ लंबे वक्त का खर्चा पानी न लाओ । यहां से निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।”

” हां, ऊंची- ऊंची ढलानों को देख यूं ही  दिल दहल जाता है तो वर्षा के बाद तो….”

 टीना कुछ कहने ही वाली थी कि राजेश जी ने पुकारा-” चलो गायत्री ,सूरज की लालिमा जाने ही वाली है, सफर तय करते-करते स्ट्रीट लाइटें भी जल जाएगी। निकल ही रहे थे कि राजेश जी इनो सहित पूरे परिवार का हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए बोले । -“सचमुच ,आप लोगों की जिंदगी का जवाब नहीं! यह सादगी अपनेपन के तोहफे  को हम सलाम करते हैं । मगर उबले हुए भोजन ने तो सचमुच हमारा दिल जीत लिया ।”

टीना ने चेहरा  उठाकर मेरी तरफ ज्यों ही नजर दौड़ाई, उसकी आंखों में सौ सपने कुछ कह रहे हों, हमें भी चकाचौंध पसंद है मगर ….

 मेरे मन में टीना की बातें घर कर गई। निकलते हुए   मैंने राजेश जी को कहा– “दो मिनट मैं अभी आई ।”

मैंने टीना को बुलाते हुए कहा -“चार महीने बाद इस जिले में मतदान है। यहां लोग वोट मांगने तो जरूर आते होंगे!

” हां ,बस वही तीन-चार महीने, लोगों का आना-जाना लगा रहता है, फिर तो सब गायब….”

” हां ,वह तो हर जगह का ही है ।मेरी बात मानो तो आप लोग इस बार किसी पार्टी का कोई भी मत मांगने आए तो उसे अपनी मांगें बताइएगा । हमारी मांगे पूरी कीजिए तभी हमसे मतदान की उम्मीद कीजिए गा  और हां उनकी हवा- हवाई बातों में ना आकर लिखित हस्ताक्षर करके उन्हें मतदान का दिलासा दीजिएगा। तभी कुछ संभव होगा। और हम एक पत्रकार के तौर पर बखूबी इस गांव के विकास का भरपूर प्रयास करूंगे।

 जैसे ही गायत्री बाहर आई ।उसकी मुख मुद्रा पर चिंता की लकीरें  देख राजेश जी पूछने लगे- “ऐसी क्या बात करनी थी टीना से जो हम सबके सामने नहीं कर पाई ।”

 गायत्री ने कुछ व्यंग भरे शब्दों में  कहा-“हर  किसी को दूसरे की जिंदगी  बड़ी ही सरल एवं मनभावन लगती है लेकिन उसके पीछे के राज को कोई नहीं समझता । आप जो उनकी सादगी भरे जीवन का गुणगान कर रहे थे ।यह सोचिए वो कितने मजबूर हैं। इतनी दूर से एक वस्तु का ले जाना, लाना कितना कठिन है। सोचिए ना एक  जरूरत की वस्तु यदि नमक ही अचानक खत्म हो जाए तो उन्हें बिना नमक के ही भोजन करना पड़ेगा… कितनी मुश्किलों में हैं यह लोग …उनका जीवन कितना कठिन है।आप जो उबले हुए भोजन की बात कर रहे हैं वह उनका शौक नहीं, मजबूरी है .।”

“हां गायत्री, बात तो सही कह रही हैं आप, यह तो मैं ने भी महसूस किया ….।”

“सब इंसानों की तरह इन्हें भी चकाचौंध भरी दुनिया पसंद है लेकिन… क्यों ना हम दोनों एक पत्रकार होने के नाते इस गांव की मजबूरी की ओर  आम जनता के साथ, पार्टी दलों का भी ध्यानाकर्षित करें। “

“तुम सही कह रही हो ,अभी मतदान का समय है । उनके लिए यह एक सुनहरा मौका है ।अपनी समस्याओं को उजागर करने का और यदि हम उनकी थोड़ी मदद कर दें तो शायद हमारा आना उनके लिए एक गोल्डन ऑपच्यरुनिटी बनकर उभरे।”

” हां, हमारी मदद से यदि उन्हें थोड़ी सुविधा मिल जाए तो सचमुच हमारा आना सार्थक हो जाए ।”

“अरे जी!  ज्यादा नहीं कम से कम इन्हें अच्छी सड़क  और विद्यालय की सुविधा तो मिले “जिससे  उनकी जिंदगी कुछ तो सुधरेगी । कितने मेहनती हैं  यह लोग …

 “हां गायत्री ,शहरों से दूर रहकर गांव  के लोगों को उनकी परिस्थितियां उन्हें मेहनती बना देता है ।”

दोनों अच्छे पत्रकार का फर्ज निभाते हुए अपने-अपने  अखबारों में हैडलाइन के रूप में   -“एक नजर संघर्षों की ओर”

लिखा।

जिससे आम  लोगों के साथ पार्टी दलों का भी ध्यान आकर्षित हुआ और देखते- देखते मतदान से पहले ही सड़क निर्माण का कार्य भी प्रारंभ हो गया। यह देख टीना को गायत्री की कही  हर बात सही लगने लगी। तभी एक दिन गायत्री को अपनी खुशी व्यक्त करते हुए फोन कर बोली-“दीदी हमारे गांव में भी अब पक्की सड़कों के निर्माण का कार्य प्रारंभ हो गया है , लेकिन सब कुछ हुआ सिर्फ आप लोगों के कारण… आप लोगों का हमारे गांव में आना ही हमारे लिए एक गोल्डन ऑपरच्योनिटी बनकर सामने आया..। सचमुच गांववासियों के लिए आप लोग फरिश्ते से काम नहीं ….”

“अरे टीना , हम भी आप लोग जैसे ही सरल इंसान है। हम  एक पत्रकार हैं और पत्रकारिता का सही फर्ज निभाना हमारा कर्तव्य  हैं । जब पूरी सड़क बन जाए तब बताना  हम सब फिर मिलने आएंगे ।”

यह सुन जहां एक तरफ टीना के चेहरे पर खुशी  के भाव जगे  वही राजेश जी और गायत्री भी बड़े ही खुश हुए…।

       डोली शाह

निकट- प एच ई

पोस्ट- सुल्तानी छोरा

जिला- हैलाकंदी

असम-788161

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