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जुगनू इन रातों के : अनिल भारद्वाज एडवोकेट

शीतल नहीं चांदनी रातें, उमस भरा सारा दिन, जाने कहां छिपी वर्षा ऋतु,कहां खो गया सावन। फूलों के मौसम में जिसने ढेरों स्वप्न संजोए, बिना आंसुओं के वो क्यारी चुपके चुपके रोए। सूख रहे हैं पुष्प लताऐं, प्यासी है अमराई, किसी पेड़ की छाया में,जाकर लेटी पुरवाई, जाने कहां जा बसे वे दिन,रिमझिम बरसातों के,…

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बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधक है इसे रोकना जरुरी : लाल बिहारी लाल

================================================================ आज जनसंख्या रोकने के लिए सबको शिक्षा होनी चाहिये जिससे इसे कम करने में मदद मिलेगी शिक्षा के साथ-साथ जागरुकता की सख्त जरुरत है ताकि देश उनन्ति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ सके । वर्ष 2021 में असम सरकार इस ओर सख्त पहल की है और उ.प्र. सरकार भी आज जनसंख्या स्थिरिकरण…

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गीतों के होठों पर

फिर वही यादों की बारिश,वही गम का मौसम। जाने कब झूम के आएगा प्यार का मौसम। ख्वाबों के ताजमहल, रोज बना करते हैं, वादों के शीश महल, चूर हुआ करते हैं। फिर वही टूटी उम्मीदों के खंडहर सा मौसम, जाने कब झूम के आएगा प्यार का मौसम। चांदनी आती नहीं, चांद भी नहीं आता, तारों…

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लघुकथा – मैसेज (डॉ. कल्पना पांडेय ‘नवग्रह’)

बच्चे का दाखिला अच्छे कॉलेज में हो गया था। हाँ, उसकी मेहनत रंग लाई थी। उम्मीदों अरमानों के साथ हॉस्टल में व्यवस्था करा, माता-पिता।अश्रुपूरित आँखों से संबंधों-रिश्तों की मिठास भरे घर लौट आए। रीमा! कितना खाली-खाली लग रहा है। बच्चों की शरारत,उछल-कूद बड़ी याद आ रही। सच कहते हो, यहाँ उसके रहने से कुछ तो…

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प्यारी सी बिटिया

मै गीत गुन -गुनाऊ सुन प्यारी सी बिटियाँ चिड़ियों सी चहकती रहे हर आँगन की बिटियाँ हर वक्त तू खुश रहे मेरी प्यारी सी बिटियाँ। मै तुझे आवाज लगाऊ तुम दोड़ी आओं बिटियाँ बाबुल का कहा मानती हर आँगन की बिटियाँ हर वक्त तू खुश रहे मेरी प्यारी सी बिटियाँ। मै सपने देखता जाऊं मेहंदी…

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मां : राकेश कुमार (बिहार)

माँ अपनी छाया जरूर देना,  कुछ देना या ना देना माँ तू प्यार देना,  चंचल हु नादान हु गले से अपना लगा देना,  माँ मुझे किसी की नज़र ना लगने देना,  लाल हू तेरा माँ विजयी सितारा लगा देना।  प्यार भरा आशीर्वाद रहे हीरा जैसा चमका देना।  आँखों की रोशनी तू मुझे अपना बना देना।…

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फर्क

बाबूजी तो भेदभाव बहुत ही करते हैं। बेटियों के लिए मरे ही जाते हैं। यहाँ सेवा हम करें, बुराई भलाई-फोड़ते हैं बेटियों से। श्यामा प्रसाद जी की बहू का रोज ही शगल था। वह जरा ही अपनी बेटी से फोन पर बात करने क्या लगते हैं बहु को पतंगे लग जाते। पत्नी के गुजर जाने…

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आधुनिक समाज में मंचों से साहित्य थूकना सरल

   पंकज कुमार मिश्रा, व्यंग्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक जौनपुर यूपी कहते है  जिस आधुनिक  युग में तुलसी शब्द सुन कर बड़े बड़े कवियों को ‘तुलसी पान मसाला’  याद आता हो, उस युग में एक बड़े धार्मिक आयोजन के बैनर पर रजनीगंधा गुटका का विज्ञापन देखना बुरा क्यों है ? प्रायोजक चाहता है ‘सईंया’ ‘पियवा’ से…

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“एक पेड़ मां के नाम लगाएं…” : पीएम मोदी

‘मन की बात’ नई दिल्‍ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के बाद किये गए पहले ‘मन की बात’ रेडियो प्रोग्राम के 111वें एपिसोड में कहा कि मैंने कहा था, चुनाव नतीजों के बाद फिर मिलूंगा, उम्‍मीद करता हूं कि आप सब अच्‍छे होंगे. मैंने विदा लिया था, फिर मिलने के लिए. इस बीच मुझे…

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संतोष (लघुकथा)

    शाम होते-होते सूरज ढलने लगा। उम्मीदों के दीप बूझने लगे मगर सबको अपना-सा लगने वाला रमेश फिर कभी उन लोगों के बीच कभी नहीं लौटा जिनके लिए आधी रात को भी मुसीबत आए तो तैयार हो जाता था। गॉंव छोड़ शहर की नौकरी में ऐसा उलझा की घर बसाना ही भुल गया। गॉंव भी…

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