Latest Updates

दोहरा चरित्र

कामवाली सुगना की लड़की का ब्याह था। उसने साहब जी के घर पर सबको आने का न्योता दिया। बड़ी मालकिन ने मदद के नाम पर कुछ नगदी और कुछ पुराने संदूक में रखे हुए आउट फैशन साड़ी, कपड़े, जेंट्स जोड़े और कुछ बर्तन सुगना को दे दिए। अहसान जताया अलग। शादी में कोई नहीं गया क्योंकि बड़ी मालकिन की सोच थी कि छोटे लोगों के कौन खाने जाए।

ब्याह का काम सही से निपट गया। ब्याह बाद सुगना चार लड्डू बड़ी खुशी के साथ लेकर आई। सबका मुंह मीठा कराने को।

छोटी मालकिन शोभिता ने लड्डू उठाकर रख दिए। शोभिता का बेटा माधव लड्डू खाने की जिद करने लगा तो दादी उसे चिल्लाते हुए बोली,”यह खाने के लड्डू नहीं है। सब घर का नहीं खाते। कुछ उच्च नीच भी तो देखनी पड़ती है।”

माधव खिसियाकर अपने कमरे में चला गया।

लड्डू एक हफ्ते तक लुढ़कते रहे पर किसी ने नहीं खाए। सुगना को ही वह लड्डू गैया को डालने पड़े। सुगना‌ मन-मसोस के रह गई। उसने सब सहन कर लिया। आखिरकार उसे तो नौकरी करनी थी।

दो-तीन महीने पश्चात डेंगू का प्रकोप फैल गया। सुगना जहां काम करती थी, वहां पर कई लोग इसकी चपेट में आ गए।

छोटे बच्चे माधव की तबीयत ज्यादा बिगड़ रही थी। उसका ब्लड ग्रुप किसी से मैच नहीं कर रहा था।  सब जगह पूछताछ कर ली, कोई फायदा ना हुआ। हालात जब ज्यादा खराब हो गई  तो घर के सभी नौकर चाकरो के भी ब्लड सैंपल लिए जाने लगे। सुगना का खून माधव से मैच कर गया।

अब बड़ी मालकिन सुगना के आगे अपने पोते को बचाने के लिए खून देने के लिए गिड़गड़ाने लगी। वह सुगना से कहने लगी है तू चाहे कुछ भी ले ले लेकिन अपना आप खून देकर मेरे पोते को बचा ले।

सुगना गहरी सांस लेते हुए बोली,”मांजी खून तो मैं दे ही दूंगी। आखिर नमक खाया है आपका। पर मेरा खून आपके पोते को देने लायक है भी या नहीं। क्योंकि हम तो छोटे लोग हैं। हमारे घर का तो खाने से भी आपको पाप लगता है। फिर खून तो बहुत बड़ी बात है।”

बड़ी मालकिन बहुत जलील होते हुए बोली,”तुझे जो सुनाना है सुना लेना। अब तू वक्त मत बर्बाद कर। ऐसा कहकर मालकिन जल्दी से सुगना को खून देने के लिए अंदर ले गई।

ऊंच नीचे का यह भेदभाव इंसान ने स्वयं बनाया है। दोगला चरित्र समय आने पर कब परिवर्तित हो जाए कहा नहीं जा सकता।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *