समावेशी नेतृत्व का अर्थ बड़ा ही व्यापक और संधर्ष करने वाला होता है, जो संयम, धैर्य सहनशीलता के साथ सबको समान भावना के साथ समावेश कर आगे बढ़ने को प्रेरित करे।जो खुद की नहीं अपितु अपने संगठन अपने लोगो के आगे बढाने की सोच रखे वही नेतृत्व कहलाता है।
सभी को समान अवसर मिले, सभी को सम्मान मिले, सभी खुशहाल हो और सभी को न्याय मिले यही भावना समावेशी नेतृत्व कहलाती है।समावेशी नेतृत्व से ही समावेशी विकास, समावेशी आधार, समावेशी सामाजिक समरसता, समावेशी वैभव, समावेशी लोकप्रियता,समावेशी पहचान, समावेशी संस्कृति और समावेशी निपुणता संभव है।जैसा नेतृत्व होंगे वैसे ही सब कुछ होगे।
परिवार से समाज, समाज से प्रखण्ड, पखण्ड से जिला, जिला से राज्य,मौङसराज्य से देश, देश से विश्व भी समावेशी नेतृत्व से ही चल रही है और आगे भी चलेगी। इसलिए किसी भी व्यक्ति को नेतृत्व की बागडोर देने से पहले संस्थाएँ कई गहन चिंतन प्रक्रिया से गुजराती है।
आज हमारा देश एक मजबूत नेतृत्व की छत्र-छाया में विश्व को आईने दिखा रही है।दुनिया में आज हमारी शक्ति को एहसास किया है।बड़े से बड़ा और ताकतवर मुल्क आज भारत को आशा भरी नजरों से देखते हैं चाहे वह व्यापार का मसला हो, आतंकवाद का या फिर सुरक्षा का भारत सभी मसलों पर खुलकर बात कर रहा है।
भारत के पड़ोसी देश शूरू से ही आतंकवाद के जरिए भारत को कमजोर करने की कोशिश करती रही है।हमने चार चार युद्ध भी लड़े और फिर भी एक विकसित अर्थव्यवस्था देने में सफल हुए ये सभी मजबूत नेतृत्व से ही संभव हुआ है।
भारत एक विविधता से भरा हुआ अनेक संस्कारो संस्कृति वाला देश रहा है।यहाँ हरेक जगह आस्था और विश्वास का अनूठा संगम है।कई ताकतें हमें डिगाने की कोशिश भी की लेकिन हम अपने पथ पर अडिग है। यही कारण है कि आज चीन जैसा घाघ मुल्क भी पीछे हटने को विवश हुआ है।चाहे वह डोकलाम हो, लद्दाख हो या फिंगर फोर।
जम्मू कश्मीर में जड़ मूल से खत्म हो रहे आतंकी भी आज मजबूत नेतृत्व की बदौलत संभव हुआ है।जहाँ हमेशा आतंक ने खुला तांडव किया करता था आज शांति और भाईचारे की फिजा बह रही है और आतंक दम तोड़ता नजर आ रहा है।ये सभी कार्य मजबूत नेतृत्व और दृढ संकल्पित हमारी नेतृत्व क्षमता और कठोर निर्णय के परिणाम को प्रदर्शित करती है, जो मानवता के लिए एक अच्छी शूरूआत है और आतंक के लिए काल।
अपराध और अपराधी की खात्मा के लिए यूपी माॅडल की आज पूरे देश में लागू करने की जरूरत है।जहाँ धरने-प्रदर्शन में सरकारी सामान की क्षति पर अविलंब वसूली हो रही, अपराधीयों के घर बुलडोजर, और जान के बदले जान शायद देश और राज्य की ग्रसित विक्षिप्त मानसिकता के लिए कठोरता जरूरी है। बस इसी तरह का कोई सख्त कानून देश के बिगड़े नेताओं बाहुबलियों और दलबदल नेताओं पर भी लागू करने की जरूरत है।साथ ही मंत्री एवं सांसदों की योग्यता निर्धारण का भी एक कानून हमारे संसद को बनाना ही होगा
ताकि जनमत का अनादर कोई कर न सके। हमारे देश में अबतक न जाने कितने संविधान संशोधन हुए जब जब जिस पार्टी को जरूरत महसूस हुई अपने फायदे के हिसाब से कानून बना फिर आज तक यह कानून क्यों नही बना कि एक आईएएस को हुक्म देने वाला अनपढ और बाहुबलि हो ऐसा कबतक और क्यूं चलता रहेगा ?आज हम 22 वी शताब्दी में है चांद पर जाने की बात करते हैं और व्यवस्था वही 15वी शताब्दी वाला। हमारा देश भीआईपी कल्चर का बोझ कब तक झेलेगा? क्या अब जरूरत इस बात की है कि एक फोरमेट तय किये जाएं जिसमें आम और खास दोनो समान हो ये क्या बात हुई कि नेताओ को आजीवन आवास, पेंशन भत्ता मंहगाई भत्ता एलौन्सेज न जाने क्या क्या और एक कर्मचारी को सिर्फ वेतन यह किस संविधान और कैसे संशोधन है यह बाते आज तक देश नही समझ पाया आखिर क्यों? जबकि संविधान सब के लिए बराबर है और कई ऐसे समय समय पर संशोधन के जरिये बदलाव होते रहे हैं आमजन तो अब सिर्फ और सिर्फ नाम के हैं?
दरअसल कुछ विचार धारा और लालच ने ऐसे लोगों को प्रसय दे रखा है जो लोगों को मानवता से दूर ले जाते हैं ।उन्हें न तो कानून का डर रहता है और न ही समाज का तो आए दिन उपद्रव देखने को मिलते है। लेकिन आज परिस्थितियाँ बदल रहे है और ये सब मजबूत नेतृत्व की ही देन है।
आशुतोष
पटना बिहार