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खाली ‘संदेश’ से बात नहीं बनेगी : मनमोहन शरण ‘शरण’

फरवरी माह जाते–जाते फाल्गुन माह में प्रवेश करा गया और ठंड कम होने लगी और गर्मी प्रारम्भ होने का संकेत देने लगी । आसमान से /धुंध हटी और मौसम साफ होने लगा । मौसम विभाग तो दिल्ली का मौसम फरवरी माह में पिछले 8–9 वर्षों से बेहतर है–साफ है – प्रदूषण के दृष्टिकोण से । भारत की राजनीति की ओर दृष्टिगत होते हैं तो प्रभु से बार–बार यही प्रार्र्थना निकलती है कि ज्यों आसमान साफ हुआ – धुंध घटी वैसे ही मन–मस्तिष्क पर लालच और अधिक पाने की लालसा जहाँ दूसरे से छीना झपटी भी करने में हिचकते नहीं, ऐसे मानसिक प्रदूषण से देश की राजनीति करने वाले सामान्यजन एवं पुरोधाओं को भी मुक्ति दिलाएँ तब कहीं हम वैश्विक स्तर पर नम्बरों की रेस में भले ही अभी पाँच पर आ गए और लक्ष्य तीन बना लिया । किन्तु हमें राष्ट्रीय मूल्य–जीवन मूल्य एवं मानवीय मूल्यों में किस स्थान पर खिसक गए इस पर भी नजर बना कर रखनी चाहिए ।
इन दिनों पश्चिम बंगाल का ‘संदेशखाली’ बहुत चर्चा में है क्योंकि एक बाहुबली नेता शाहजहां शेख जो टीएमसी पार्टी के नेता है, जिनपर लोगों की जमीन हड़पना तथा वहां की महिलाओं के उत्पीड़न पर भी बवाल मचा हुआ है । आखिर गिरफ्तारी हुई और टीएमसी से 6 साल के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । मणिपुर में भी हो–हल्ला अभी पूरी तरह थमा नहीं है । मतलब साफ ‘खाली संदेश’ से बात नहीं बनेगी वरना संदेशखाली सरीखे अन्य उदाहरण भी सामने आते रहेंगे – संदेश चाहे कितने भी देते रहें — महिला सर्वोपरि , पूजनीय आदि आदि….किसी का हक मारना–लूटना अपने में पाप माना जाता है जो कि बड़ा सार्थक संदेश है । मुद्दा अमल करने का समाज सेवी विचारक जन उठाते रहते हैं किन्तु जो मन में ठान लिया करना वही है, चाहे जो हो ।
राजनीति की बात चली तो अभी राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग नेताओं का पार्टी के विरुद्ध जाकर वोटिंग करना खूब धड़ल्ले से देखा गया जिससे कितनों के गणित बने और बहुतों के बिगड़े । पर बात वही, कि हमें जो मिलता है उससे सन्तुष्ट न होकर, वैसे होना भी नहीं चाहिए क्योंकि सफलता मिले तो लक्ष्य बड़ा बनाना ही चाहिए किन्तु दूसरों का हक मारकर नहीं, खरीदफरोख्त करके नहीं । यहाँ विचारणीय है कि मजबूत वृक्ष की शाखाएं भी अपने में मजबूती से जुड़ी होती है किन्तु शाखा में मूल्यों का खोखला पन आ जाए तो आसानी से टूट जाती है अथवा खुद भी टूट कर गिर पड़ती है ।
तत्काल लाभ देखकर (किसी भी मार्ग से क्यों न आया हो) अपना भविष्य दाँव पर लगा देते हैं । जहाँ गए (जिस भी पार्टी में) या जिसके लिए यह सब किया वह आपसे सदैव चौकन्ना–सतर्क रहेगा या रहता ही है और फिर इन जैसों की स्थिति ‘न घर का न घाट का’ वाली हो जाती है, जिसको तत्काल लाभ के सामने यह सोचने–समझने की क्षमता नहीं रहती ।
सभी ने लोकसभा चुनावों के लिए अपनी–अपनी कमर कस ली है भाजपा अपनी नई नई रणनीतियों का परिचय कराती है और इंडिया गठबंधन ना–नुकर करते करते कुछ सहमति बनाकर सीटों का बंटवारा करना शुरू कर दिया है जिसकी शुरुवात दिल्ली में 3,4 के फार्मूले से कर दी गई कांग्रेस अपनी प्रत्याशी 3 सीटों पर तथा आम आदमी पार्टी 4 सीटों पर प्रत्याशी उतारने जा रही है । इसी प्रकार की स्थिति अन्य राज्यों में भी बनाई जा रही है जिससे निश्चित ही वोट कटने में कमी आएगी और जनता अपनी पसंद का प्रत्याशी चुन सकेगी ।

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