कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
दिल्ली की नगर निगम का दंगल सभी की निगाहों से होकर गुजरा ‘‘ओह अच्छा ! तो हमें पार्षद बनकर ऐसे दंगल करना पड़ता है’’ । वैसे तो अब उम्मीद नहीं हैं कि किसी को ज्यादा आश्चर्य हुआ होगा, क्योंकि पिछले कुछ दशकों संे हम ऐसा होता हुआ विधानसभा से लेकर कुछ-कुछ संसद में देखते आ रहे है । आठवीं पढ़ने वाला बच्चा अपनी पुस्तक खोले बैठा ऐसी कार्यवाही को देखता है और फिर पढ़ता है ‘‘जनता के लिए, जनता के द्वारा…….’’ । वह अभी छोटा है इसलिए उसके मन में कई जिज्ञासा जन्म लेती है ‘‘पापा जनप्रतिनिधि बनने की शर्त क्या होती है?’’ । उत्तर कोई नहीं दे सकता, पर वह टी.व्ही. पर ऐसी कार्यावहियों को देखते हुए खुद ही उत्तर खोज लेता है । वह जानने और समझने लगता है कि उसके पिता कभी जनप्रतिनिधि नहीं बन सकते क्योंकि वो ऐसा कुछ कर ही नहीं पाते । सारा देश दिल्ली की हर घटना को उत्सुकता के साथ देखता है, दिल्ली हमारे देश की राजधानी जो है, वह ससंद में जया बच्चन को राज्यसभा के सभापति की ओर उंगली उठाते भी है और नगरनिगम की बैठक में पार्षदों को एक दूसरे के ऊपर पानी की बोतलों को फेंकते हुए देखता है । केवल सत्ता के लिए संघर्ष, केवल प्रभुता के लिए संघर्ष, इस सब में वो आम व्यक्ति जिसने अपना वोट देकर चुना है वह गायब है, उसकी हित की बातें गायब हो जाती हैं, उसके भविष्य की योजनाओं की बातें गुम हो जाती हैं । राजनीति ‘समाजसेवा’ के लिए होती है ऐसी उद्घोषणायें अब मजाक लगने लगती हैं । देश ने बहुत कुछ देखा है, उसने दलबदलते जनप्रतिनिधियों को दे,ाा है, उसने रातो-रात सत्ता परिवर्तन को देखा है, यही कारण है कि अब उसने लोकतंत्र की अपनी परिभाषा बना ली है । दिल्ली के एक ओर मंत्री को सलाखों के पीछे जाते हुए भी वह देख रहा है । मनीष सिसोदिया अब जेल की सैर पर हैं, पर वे जेल में रहते हुए भी मंत्री ही बने रहेगें, सत्येन्द्र जैन की तरह और महाराष्ट्र के तात्कालीन मंत्री नबासब मलिक की तरह । अभी वे आरोपी हैं, अभी वे मुजरिम नहीं हैं, ऐसे तर्क देकर अपनी पीठ पर अपने ही हाथों से शाबासी देने वाली राजनीति नई है । हो सकता है कि विपछ के नेताओं को जबरन जानबूझकर जेल में डाला जा रहा हो, पर बगैर आरोपों के न्यायालय उन्हें जेल में रखेगी कैसे ? कुछ तो किया होगा, कुछ तो अनियमितता हुई होगी, कुछ तो वो हुआ होगा जो उचित नहीं है ? चिन्तन अब राजनीतिक दलों को करना चाहिए । वे विपक्ष में हैं, इसलिए उनके ऊपर नजरें गढ़ी होती हैं, एक जरा सी भूल भी आपको जेल की ओर ले जाती है, शुचिता की राजनीति केवल शाब्दिक है, ईमानदारी राजनीति कल्पनातीत है, आपर पर नजरें हैं तो आपको सावधानी से कार्य करना होगा, दौर ही ऐसा है कि हर कोई, हर कोई को बेनकाब करने की मंशा रखने लगा है, आप की नजरें भी तो कमियां ढूंढ़ती है, जब कमियां मिल जायेगीं तो आप भी वह सब कुछ करेगें जो अभी हो रहा है । मनीष सिसोदिया अक्टूबर से संशकित थे, वे जबरन अपने चेहरे पर मुसकान लाकर बता रहे थे कि वे भी जेल जायेगें । अब वे चले गए । नम्बर लगे हुए हैं, मालूम नहीं और किन-किन की किस्मत में जेल योग है । ऊपरी आवरण से अब जनता बहलती नहीं है । मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार ने यह सोचकर विकास यात्रा निकाली कि इस बहाने आम जनता से जनप्रतिनिधियों का सीधा संवाद हो जायेगा । पर उनकी सह सोच उल्टी जाती दिखाई देने लगी । लोग विकास की परिभाषा तो कब से पूछ हे हेंै, ऐसे प्रश्नों के बीच विकास यात्रा के नाम पर गांव-गांव पहुंचे जनप्रतिनिधियों को विरोध का सामना करना पड़ा । आमजन की अपनी विकास की परिभाषा होती है । जो उसकी परिभाषा में उतर जाता है वह उसे अपने सिर-आंखों पर बिठा लेती है, पर मध्यप्रदेश में ऐसा हो नहीं पाया । आमजनता विकास यात्रा के नाम पर उनके गांव आने वाले जनप्रतिनिधियों से खफा नजर आई । मध्यप्रदेश में इस साल चुनाव होने हैं ऐसे में गांवों वालों का यह विरोध मायने रखता है । वैसे तो अभी समय है तो कुछ किया जा सकता है ताकि विरोध कम हो और विकास की परिभाषा को परिभाषित किया जा सके । वैसे भपी अब बड़-बड़े चुनावों में भी बड़े-बड़े नता विकास की बात करने से संभवतः इसी कारण से ही हिचकने लगे हैं । कौन समझाता घूमे कि हमने यह किया, या वह किया और जो किया उसे ही विकास कहा जाता है । वे तो पूरा चुनाव विकास की बात किए बगैर ही लड़ लेते हैं । कांग्रेस का महाअधिवेशन रायपुर मे हुआ । राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कुछ सक्रिय दिखाई देने वाली कांग्रेस ने इस अधिवेशन के नाम पर अपने कार्यकर्ताओं को लाग्रत करने की कोशिश की । किसी को भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के इस तरह सफल हो जाने की उम्म्ीद नहीं थी संभवज‘ खुद राहुल गांधी को भी ऐसा नहीं लग रहा होगा, पर वह सफल हो गई, सफल हुई तो कांग्रेस में छाई र्मुदेनी साफ हुई । कांग्रेस के महा अधिवेशन में कांग्रेसियां का उत्साह भी साफ दिखाई दिया । लोकसभा के चुनाव अगले साल होने हैं तो चुनाव की तैयारी तो कही जानी है, अधिवेशन के बहाने इस तैयारी पर भी जोर दिया गया । राहुल गांधी ने अपने भाषण में अपनी यात्रा के संस्मरण सुनाए । उन्होने किसी पर कोई आरोप नहीं लगाए यह अच्छी बात है । उन्होने इस यात्रा के जारी रहने की बात भी की यह भी अच्छी बात है क्योंकि उनकी यात्रा लोकसभा चुनाव की तैयारी में अहम भूमिका निभा सकती है । ‘‘मेरे पास तो घर भी नहीं है’’ कहने वाले राहुल गांधी की बातों को कांग्रेसियों ने भावुकता के साथ सुना और देश की जनता ने भी सुना । भाषण मार्मिक था तो लोगों ने पसंद भी किया । हमारी संस्कृति में दूसरे की लाइन छोटी कर अपनी लाइन बड़ी करने वाली क्रिया को कभी स्वीकार नहीं किया गया है । हम अपनी लाइन को ही बड़ा करें तो दूसरों की लाइन अपने आप छोटी हो जायेगी, राहुल गांधी ने इस बार यह ही करने का प्रयास किया । पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के बहुत सारे बड़े नेता कांग्रेस छोड़ कर जा चुके हैं, यह अलग बात है कि वे जब कांग्रेस में थे तो बड़े नेता कहलाते थे पर भाजपा में जाने क बाद वे लगभग गुमनाम जीवन ही जी रहे हैं । दल बदलने वाले इस नेताओं की स्थिति से नेताओं को सीखने की जरूरत है, ऐसा माना जा सकता है, पर कोई सीखे ऐसा लग नहीं रहा है । अभी चुनाव आयेगें तो अपने बेहतर भविष्य को तलाशने के लिए और कुछ नेता गुमनाम होने दूसरे दलों में चले जायेगें, राजनीति का यही दस्तूर बन गया है । बिहार की राजनीति भी गर्माई हुई है । उपेन्द्र कुशवाहा के पास अपना राजनीतिक दल था, जिसके बदोलत वे केन्द्र में मंत्री भी बने रहे पर फिर उन्होने भाजपा से दूरी बनाई और नीतिश कुमार के दल में अपने दल का विलय कर लिया, पर अब एक बार वे फिर नीतिश कुमार से नाराज होकर नया दल बना लिया । वे एक दल के स्वामी रहे तो उन्हें दूसरे दल की गुलामी पसंद नहीं आई तो उन्होने उस दल को छोड़ दिया । आम जनता ऐसी सारी गतिविधियों को खामोशी के साथ देखती रहती है और समय आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी देती है । वेैसे ह सच है कि आम जनता अब पहले से ज्यादा जागरूक हो चुकी है और सोशल मीछिया ने उनके सोचने और समझने की शक्ति को बढ़ा दिया है । उपेन्द्र कुशवाहा का नया राजनीतिक दल एक बार फिर चुनाव लड़ेगा, सौदेबाजी करेगा और हो सकता है कि उन्हें मंत्री पद तक पहुंचा भी दे । राजनीति में सत्ता की कुर्सी ही सब कुछ होती है । त्रिपुरा, मंघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव हो गए । ये छोटे राज्य हैं इसलिए ज्यादा हल्ला-गुल्ला सुनाई नहीं दिया । वैसे प्रधानमंत्री जी ने इन राज्यों में अपनी चुनावी सभा अवश्य की ।भाजपा हर चुनाव को गंभरीता से लेती है, उसकी यह कार्यप्रणाली ही उसे आगे बढ़ा रही है, बाकी राजनीकि दल ऐसा नहीं कर पाते तो वे पीछे रह जाते हैं । भाजपा ने दन राज्यों के चुनावों को गंभीरता के साथ लड़ा, परिणाम जब आयेगा तब उन्हें यसह समढ में आ जायेगा कि उन्हें अपनी मेहनत का कितना फल मिल रहा है । इस वर्ष मध्यप्रदेशष् छत्तीसगढ़, राजस्थान सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं । भाजपा ने इन राज्यों में अपनी तैयारी प्रारंभ भी कर दी है, समय के साथ यह तैयारी जोर पकड़ती चली जायेगी । वैसे ये बड़े राज्य हैं और इनमें से दो राज्यों में राजस्थन और छत्तीगढ़ में कसंग्रेस की सरकार है, वैसे तो कसंग्रेस की सरकार मध्यप्रदेश में भी थी पर वह दलबदलू नेताओं की अतिमहत्वाकांक्षा की शिकार हो गई और अब वहां भाजपा की सरकार है । कांग्रेस के पास पूरे देश में केवल यह दो ही राज्य बचे हैं, जाहिर है कि वह इन राज्यों में मेहनत करेगी भी पर भाजपा इन राज्यों को लक्ष्य बनाकर जीतना चाहेगी जिसके लिए वह मजबूती के साथ प्रयास करेगी और प्रयास करना प्रारंभ भी कर दिया है ।