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मै नारी ही क्यों बनी ?

अपना जीवन देकर मैं, जीवन संगिनी तुम्हारी बनी हूँ

अपना सब कुछ देकर तुम्हें, तुम्हारी अर्धांगिनी बनी हूँ

तुम सभी को जैसे हो वैसे ही अपनाकर एक स्त्री बनी हूँ

पुरे परिवार को भरपेट भोजन कराकर ही मै अन्नपूर्णा बनी हूँ

मगर क्यों मुझे लगता है कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है

मगर सच तो ये है की मै ही तुम सबका अस्तित्व बनी हूँ

ये तुमको भी पता है, मै नहीं तो घर में बस सन्नाटा ही होगा

क्युकी मै ही तो तुम्हारे इस घर की जीवनदायी रौनक बनी हूँ 

चाहत मुझे भी थी पंछी बन उड़ने की गगन की ऊंचाइयों में

मगर कही तुम सब बिखर न जाओ, इसलिए मै डोर बनी हूँ

तुम देखोगे जीवन पथ पर, एक एक करके सब दूर हो जाएंगे तुमसे

तुम कहीं निर्बल होकर टूट न जाओ, इसलिए तुम्हारा सहारा बनी हूँ

मुझे वरदान मिला है धन्वंतरि का, कि मै बीमार होकर भी सबल रहू

लेकिन तुम कही बीमार हो गिर न पड़ो, इसलिए संजीवनी बनी हूँ

न मेने अपनों को छोड़ा, न तुम्हारे अपनो को छुड़वाया 

जो सबको जोड़े के रख सके मै ऐसी ही एक डोर बनी हूँ

करने को हमेशा है बहुत कुछ मेरे लिए, अपने खुद के लिए 

लेकिन तुम सबका भाग्य न सो जाए इसलिए दिन रात जगी हूँ

इतना त्याग और बलिदान के बाद भी मै पूर्ण हूँ

क्युकी ये मै सब कर सकू, इसलिए तो नारी बनी हूँ

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