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सम्पादकीय : मानसिक व वायु प्रदूषण से मुक्ति जरूरी

मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (संपादक)

दीपावली का पंच– दिवसीय महोत्सव मनाते नवम्बर माह के दूसरे पखवाड़े में प्रवेश कर रहे हैं । धनतेरस – छोटी दीपावली – बड़ी दीपावली – गोवर्धन पूजा, भैयादूज और छठ पूजा आदि.
एक समय था जब भक्तिमय भाव प्रमुख होता था । सभी त्यौहार हो अथवा ईष्ट देव, ईश्वर की आराधना करनी हो, भक्तिमय भाव की प्रमुखता होती थी । तब कहा जाता था कि भगवान भक्तों के वश होते आए हैं । अथवा इनकी बात न सिर्फ सुनते, स्वीकारते अपितु पूर्ण करते आए हैं । युग बदला, धारणा– आस्था और विश्वास के साथ पद्ति भी बदल गई । आज कहा जाने लगा – जो दिखता है वही बिकता है । अर्थात् भीतर से चाहे कुछ हो किन्तु जो आप कर रहे हैं वह आपके कृत्य में प्रदर्शित अवश्य होना चाहिए ।
पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में हाहाकार भी दो तरह से मचने लगा -एक तो मुख्यमंत्री को ईडी का समन, दूसरा प्रदूषण बेलगाम बढ़ने लगा । अभी बात प्रदूषण की करते हैं । प्रदूषण बढ़ा तब सरकार को कहते न बने और चुप रहते भी न बने । क्योंकि पंजाब में भी ‘आप’ सरकार है इसलिए ‘पराली’ किस्सा मानों बीते दिनों की बात हो गई । लेकिन मेघ बरसे और दिल्ली का प्रदूषण खत्म होने वाली स्थिति भी बनी लेकिन दीपावली पर बम–पटाखों के नए–नए तरीके–प्रकार सामने आए और फिर वही ‘दिखता है’ वाली बात अर्थात जिसने ज्यादा बम–पटाखे चलाए और वो भी नए प्रकार के जिसमें आवाज़ भी ज्यादा और धुँआ रूपी प्रदूषण भी ज्यादा हो तभी आप ‘ए’ ग्रेड श्रेणी के माने जाएंगे – ऐसी मानसिकता । एक तरफ दीपावली पर धड-धड-धड-धड बम का शोर दूसरी ओर बीमार वृध्जनो की हाय–तौबा तथा अगले दिन अधिकाँश लोग मुँह पर मास्क लगाए दिखने लगे जो यह स्पष्ट संकेत दे रहा था — ‘जो बोएगा वही पाएगा––––’ । हमने रात को जो बोया वही हम भोग रहे हैं । अब भक्ति का अपनी खुशी को ज्यादा से ज्यादा प्रदर्शित करने का यदि यही एक मात्र् उपाय है तब सरकार को (दिल्ली सरकार तथा केंद्र सरकार) को एक टीम बनाकर एक कारगर उपाय सोचने हेतु टीम गठित करनी चाहिए । जिस प्रकार पेट्रोल से डीजल गाड़ियां और अब इलेक्ट्रिक वाहन तीव्र गति से बढ़ते जा रहे हैं और आशा की जाती है कि यह इको–फ्रेंडली हैं और प्रदूषण को कम करने में कारगर सि( होंगी । लेकिन एक मात्र् यही उपाय पर्याप्त नहीं है । टीम यह सुनिश्चित करे और अपनी देखरेख में बम–पटाखे आदि निर्माण करने हेतु योग्य कंपनियों को जिम्मेदारी प्रदान करें जो ऐसे बम–पटाखे बना सकें जिसको चलाने पर जो /वनि कम करे और आतिशबाजी के आकर्षक डिजाइन बनाएं और उनसे जो धुँआ निकले वह इको–फ्रैंडली हो अर्थात जिस प्रकार हवन–सामग्री से जो धुँआ निकलता है वह वातावरण को शुद्ध करता है । इसी प्रकार वह प्रदूषित करने के स्थान पर शुद्धता बढ़ाए । इससे वृद्ध जनों को परेशानी नहीं होगी । आजकल तो डी–जे– पर भी गाना खूब सुनाई देता है ‘हवन करेंगे–––हवन करेंगे’–––विचारणीय है––––सादर
अब बात दूसरे हाहाकार की जो सिर्फ दिल्ली में ही नहीं उन सभी राज्यों में होने लगा जहां भाजपा की सरकार नहीं है – विशेषकर जहां विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है । ऐसे होने पर सरकार द्वारा सरकारी एजेंसी के दुरुपयोग करने के तौर पर देखा जा रहा है । ऐसा इसलिए भी कि क्या पूरे देश में जहां भाजपा सरकार है – क्या वहां राम राज्य स्थापित हो गया – कोई भ्रष्टाचारी नहीं है । ये विपक्ष की सोच निकल कर आ रही है जिसे सोशल मीडिया पर देखा–सुना जा रहा है । ऐसा इसलिए भी कि इसकी टाइमिंग इसको और पुखता कर रही है ।
यहां पर मेरा ऐसा मानना है कि यदि विपक्ष का कहना सही है तो एकाध उन प्रदेशों में भी हलचल मचाई जाए जहां अपनी सरकार है । दूसरा या तो यह प्रक्रिया आचार संहिता लगने से पहले की जाती या चुनाव के बाद की जाए । क्योंकि दोषी है तो किसी भी स्थिति में सजा तो होनी चाहिए । अब कहने को दिल्ली में ‘आप’ पार्टी की सरकार है लेकिन तीन–चार प्रमुख चेहरे पहले ही सलाखों के पीछे हैं और बाकी कई निशाने पर हैं । विशेषकर जब मुखिया को ही ईडी का समन भेज दिया जाता है तो बाकी सबका क्या कहना ।
जब सत्ता हमारी है सब कुछ हमारे इशारे पर हो रहा है अथवा हो सकता है, तब भी ऐसा कोई कृत्य नहीं किया जाना चाहिए जो किसी भी प्रकार से गलत हो चाहे कानूनी रूप से अथवा मानवीयता के पैमाने पर । क्योंकि हमें यह हमेशा स्मरण रहना चाहिए कि संसार परिवर्तनशील है – कल किसी और की सरकार थी आज अपनी तो कल किसी और की भी हो सकती है । इसलिए द्वेष भावना से किया गया कार्य सामने वाले को पीड़ा पहुंचाता है और जब उसके हाथ सत्ता लगती है तो वह भी सर्वप्रथम उसी कृत्य को दोहराता है । अब इससे पीड़ा आपको होगी ।
इन सब रस्सा–कसी के बीच देश की जनता आवाक होकर देखती रह जाती है कि कौन किसके पीछे हाथ /धोकर पड़ा है । किसका उल्लू सीधा हुआ और किसका उल्टा––––

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