कतर में इस समय फुटबाल के विश्व कप फीफा 2022 का आयोजन हो रहा जिसके लिए बायकॉट फीफा की आवाज तेज हो रही जिससे फीफा का संगठन बेहद चिंतित है क्युकी मैचों को अपेक्षित दर्शक नही मिल रहे । आपको याद होगा ये वही कतर है जो नुपुर शर्मा मामले में घिघिया रहा था और नाके रगड़ रगड़ कर जुबैर का समर्थन मांग रहा था । विश्व फुटबॉल संगठन के अध्यक्ष ज्यानि इन्फेंटिनो ने प्रतियोगिता की शुरुआत की पूर्वसंध्या पर जो कहा वह संदेहास्पद है।पहली बार दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन एक कट्टर और बिगड़ैल देश में हो रहा है और वह देश भी है छोटा सा अरब मुस्लिम देश – क़तर जिसमे ना तहजीब है ना तमीज । बस इतना ही काफ़ी है पश्चिमी देशों में इसकी महिमा बताने को । नफरत का सौदागर कहे जाना वाला और भाव पैदा करने के लिए कतर नाम ही काफी है । सदियों से दुनिया में अपने आप को सबसे अधिक सभ्य घोषित करने वाले इस देशों के लोगों में जबरदस्त दोगलापन है। जर्मनी ने इसे ‘ नस्लवादी श्रेष्ठता ‘ की दुर्भावना कहा है। अब तो तरह तरह के इल्ज़ाम लगे हैं कतर में होने वाले वर्ल्ड कप पर। यहां पर विश्व कप संबंधित निर्माण कार्य में संलग्न प्रवासी मजदूरों के मानवाधिकारों को लेकर बार-बार सवाल खड़े किए गए जो कि सही है और सूत्रों के मुताबिक 375 जिंदगिया निगल ली गई जो बेहद दुखद है ।क़तर के कानून में समलैंगिक संबंधों को गैरकानूनी होने पर सवाल खड़े किए गए। और अब जब दुनिया भर की फुटबॉल टीम में क़तर पहुंची तो उनके चाहने वालों के उत्साह को धता बताकर नकली और पैसों से खरीदा भीड़ दिखा कर वातावरण सही करने का प्रयास हुआ है। इन्फेंटिनो ने अपने बयान में कहा कि अरब के लोग दोहरे मानदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि अरब के लोगों ने दुनिया के दूसरे महाद्वीपों के लोगों पिछले तीन हज़ार सालों में जो अत्याचार किए हैं उसके लिए फीफा का बहिष्कार गलत है । आने वाले तीन हज़ार सालों तक उसे उन देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए जिन्हे इस्लाम पसंद नहीं ।यह अलग बात है कि जिन हालातों में यूरोप के लोगों ने अफ्रीका , एशिया और अमेरिका के मूल निवासियों से काम कराया वह क़तर में प्रवासी मजदूरों के हालात से ज़्यादा खराब नही थे। आगे झूठ बोलते हुए कहा गया कि जितना शोषण यूरोप के लोगों ने दुनिया भर के मजदूरों का किया निश्चित रूप से इतना शोषण क़तर में प्रवासी मजदूरों का नहीं हुआ। इन्फैंटिनो ने तो झूठ की मर्यादा लांघ दी। याद कराया कि यूरोप ने काम की तलाश में आए प्रवासियों के लिये तो अपनी सीमाएं ही निर्ममता से बन्द कर दी थीं । क़तर एक मुस्लिम देश है और वहां के कानून यूरोप के कानून के मुकाबले अलग हैं। इन्फेंटिइनो ने कहा कि इन देशों को कुछ समय देने की आवश्यकता है। कुछ दशक पहले यूरोप में भी समलैंगिक संबंधों को लेकर इसी प्रकार की असहिष्णुता थी। मुस्लिम देश क़तर ने स्टेडियम के आसपास बियर पीने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस बात को लेकर यूरोपियन खिलाड़ी और पत्रकार बहुत नाराज़ हैं। इन्फेंटिनो ने याद कराया कि कई यूरोपीय देशों में भी इस प्रकार के प्रतिबंध हैं। यूरोप के लोगों को इस बात का स्मरण कराना ज़रूरी है कि अमेरिका , अफ्रीका और एशिया को लूटने से पहले यूरोप एक बहुत निर्धन महाद्वीप था। उसकी सारी संपन्नता इसी लूट पर खड़ी हुई है। आज जब दुनिया के और देश धीरे-धीरे संपन्न हो रहे हैं तो यूरोप को बर्दाश्त नहीं हो रहा है। इसकी आदत उन्हें डाल देनी चाहिए क्योंकि आने वाले समय में एशिया , अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों का प्रभुत्व दुनिया पर बढ़ेगा ही। क्या सभ्य है और क्या असभ्य है इसका निर्णय अब दुनिया के और देश भी करेंगे । दुनिया के एक छोटे से देश क़तर में दुनिया के सबसे बड़े खेल समारोह का आयोजन का मज़ाक उड़ाने वाले यह भूल रहे हैं कि दुनिया का एक छोटा सा देश इंग्लैंड कभी दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश था। अब जब दुनिया की आधी से अधिक आबादी वाले लोग संपन्न हो रहे हैं तो उनकी शक्ति को रोकना उनके बस की बात नहीं है। सच्चाई को मान लेने से तकलीफ़ कम होती है। राष्ट्रवाद के रंग और भावना कैसा है कोई इसे हनुमान की तरह सीना फाड़कर कोई नहीं दिखा सकता। राष्ट्रवादी होने का कोई गीत नहीं गाया जा सकता। राष्ट्रवाद अपने आप में एक जज्बा है, जूनून है जिसे मौक़ा मिलने पर पूरी ताक़त से दिखाया जा सकता है। जैसे की पाकिस्तान के साथ बार बार हुए युद्ध। बंगलादेश का बनना, कश्मीर पर अभी तक आंच न आने देना, भारत की सीमाओं को सिकुड़ने ना देना। राष्ट्रवाद में धर्म का कोई रंग नहीं है। धर्म से राष्ट्रवाद को कोई ताकत भी नहीं है। केवल सीमाओं को मजबूत रखने भर को ही राष्ट्रवाद से जोड़ना हमारी संकीर्णता या अल्पज्ञानता का परिचय होगा।
राष्ट्रवाद सही मायने में देश के अंदर से पैदा होता है ओर बडा होकर सीमा पर पहरा देता है। लेकिन आजकल अंदर से खोखला होता है । नकली राष्ट्रवाद धर्म के कंधों पर बैठ गया है और कट्टर देश इसी तरीके का इस्तेमाल करते है । सीमा का प्रहरी भी अंदर से सीमा पर जाता है, लेकिन जब अंदर से खोखला हो जाये तो सीमा का जवान भी कमजोर ही होता है। देश राष्ट्रवाद की ईंट है और इसमें जाति, धर्म, रंग, मजदूर, गरीब या अमीर का कोई रंग नहीं होता, बल्कि इन सबके मिलने और जुड़ने से ही राष्ट्रवाद बनता है। देश का निर्माण इसी के हाथों की ताकत है। किसी भी निर्माण के लिए धर्म का बंटवारा कर समाज को खंडित कर खडी की गई भीड़ से नहीं हो सकता। बल्कि हर हाथ की ताकत और उसकी आंखों के सपनों से देश बनता है। आजादी के ठीक बाद देश कुम्हार के घर की कच्ची ओर बिखरी मिट्टी की तरह था। आजादी से पहले की ताकत जिसमें सभी धर्म की ताकत थी ने सपने संजोए थे और उन सपनों को एक नेहरू के नाम के व्यक्ति का नैतृत्व मिला। मिट्टी को कुम्हार ने अपने शिल्पकारी हाथों से कल्पनाओं के ढांचे में ढाल कर एक आकृति दी ओर उसी को दिशा बनाकर हम आगे बढ़े। उस शिल्पकार के बाद अनेकों और शिल्पकार आये ओर निर्माण करते गये। सभी ने अपने अपने जादू से, अपनी अपनी योग्यता से देश को नये नये रास्तों पर चलाया। एक शिल्पकार 2014 से पहले ऐसे ही कतर जैसे कट्टरता दिखा कर देश को बर्बाद किया। अपनी कृत्रिम कल्पना को जादूगरी बता कर देश में आया और देश को भ्रमित कर उन मजबूत ईंटों को खंडित करने लगा जिनको पूर्व के शिल्पकारों ने संवारा था।इस जादूगर को कोई जादू नहीं आया तो धर्म के रंगों को सड़कों पर ले आया, जाति,भाषा, वस्त्र, रंग, राज्य जो मिला, जैसा समझ आया को तबाह करता ओर खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करता रहा। कुछ नहीं करने के कारण से ही नये नये आडंबर ओर ढकोसलों के सहारे खुद को मजबूत करने के षड़यंत्र रचता रहा। देश बिखरने लगाता है , ईंटे हिलने लगती है ।
____ पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर।