भ्रामक विज्ञापन के सिलसिला में माननीय सुप्रीम कोर्ट बाबा राम देव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के प्रति कई बार नाराजगी प्रकट कर चुका है। 22 अप्रैल की सुनवाई में उसने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए को भी आड़े हाथों लिया उसने पूछा गया कि आखिर एलोपैथ चिकित्सक गैर जरूरी एवं महंगी दवाइयां लिखने के साथ कुछ खास दवाओं की पैरवी क्यों करते हैं ? यह सर्वविदित है कि एलोपैथी चिकित्सा क्षेत्र में भी सब कुछ ठीक नहीं। यह बात माननीय सुप्रीम कोर्ट बखूबी जानता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां भ्रामक विज्ञापनों के जरिये ऐसे उत्पादों का प्रचार करती हैं, जो शिशुओं और स्कूली बच्चों के साथ बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई का विवरण मांग कर बिल्कुल सही किया, क्योंकि अनेक कंपनियां भ्रामक विज्ञापन देने के मामले में बेलगाम दिखती हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले कुछ समय से ऐसे विज्ञापनों की बाढ़-सी आई हुई है, जो मिलते-जुलते नाम वाले उत्पाद के सहारे ऐसे उत्पादों का प्रचार करते हैं, जो सेहत के लिए बेहद हानिकारक हैं।
बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण की कंपनी का नाम पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड है। उनकी कंपनी का नाम प्राचीन भारत में एक प्रसिद्ध मुनि थे-पतंजलि, उनके नाम पर है, जिन्होंने संस्कृत के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की थी। इनमें से योगसूत्र उनकी महानतम रचना है जो योग दर्शन का मूल ग्रन्थ है। भारतीय साहित्य में पतंजलि द्वारा रचित तीन मुख्य ग्रंथ मिलते हैं। योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रंथ हैं । कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे, अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियाँ हैं। पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी जिसे महाभाष्य का नाम दिया {महा +भाष्य (समीक्षा, टिप्पणी, विवेचना, आलोचना)} ।
पतंजलि महान चिकित्सक थे और इन्हें ही ‘चरक संहिता’ का प्रणेता माना जाता है। ‘योगसूत्र’ पतंजलि का महान अवदान है और इस योगसूत्र में उन्होंने चार पादों का वर्णन किया है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे अभ्रक विंदास, अनेक धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत पुष्यमित्र शुंग (195 -142 ई.पू.) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि॥
(अर्थात् चित्त-शुद्धि के लिए योग (योगसूत्र), वाणी-शुद्धि के लिए व्याकरण (महाभाष्य) और शरीर-शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र (चरकसंहिता) देनेवाले मुनिश्रेष्ठ पतञ्जलि को प्रणाम।)
हालाँकि, प्राचीन संत मुनि सभी की साझी विरासत है, वे जितने बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण के हैं, उतने ही देश के प्रत्येक नागरिक के, उनके नाम का उपयोग केवल और केवल धनार्जन के लिए किया जाना उचित नहीं है। गलती बाबा रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण ने की और बीच में घसीटा जा रहा है महान ऋषि पतंजलि को, जिससे आम जन की भावनाएं भी आहत होती है। माननीय सुप्रीम कोर्ट को लगे हाथ किसी भी कंपनी के नाम के रजिस्ट्रेशन पर भी संज्ञान लेना चाहिए। यदि कोई किसी प्राचीन ऋषि, मुनि अथवा महापुरुष के नाम का सहारा अपने व्यवसाय अथवा अन्य हित के लिए करता है तो वह उनके जीवन मूल्यों के अनुरूप कार्य करने और उनके जीवन से मेल खाते नैतिक मूल्यों की अनुपालना की घोषण करे और यदि वह अपने नामकरण के प्रतिकूल कार्य करता है तो तत्काल प्रभाव से उसका नामकरण अवैध घोषित किया जाना चाहिए और इस प्रकार प्राचीन ऋषि, मुनियों अथवा महापुरुषों की विरासत को संजोया जा सकता है और उनका नाम कुलषित होने से भी बचाया जा सकता है। सभी चिकित्सा पद्धतियों की अपनी सीमाएं हैं, बस उनका उपयोग जनहित में हो और घोर धनार्जन की होड़ में ना हो। और हाँ, अपनी कंपनी के नाम के अनुकूल कार्य हो, कंपनी के मालिक के जहन में महान ऋषि, मुनियों अथवा महापुरुषों की गरिमा का ख्याल सदैव रहना चाहिए। उनके नाम से आपकी कंपनी चल रही है, उनकी गरिमा का ख्याल रखना अपनी नैतिक जिम्मेदारी भी है और जवाबदेही भी। यदि आप वैसा नहीं करा सकते तो आपको कोई हक़ नहीं है उनके नाम का इस्तेमाल करने का। बाबा रामदेव और बालकृष्ण का 22 अप्रैल को छापा गया माफी नाम बेहद छोटा था जो माननीय सुप्रीम कोर्ट को नागवार गुजरा था। 23 अप्रैल के माफीनामा फिर भी पेज का एक चौथाई है।
– डॉ. मनोज कुमार
लेखक – सार्वजनिक उपक्रम में राजभाषा एवं जनसंपर्क अधिकारी हैं।