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तूफान में धराशायी विपक्ष

राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

एक बहुत बड़ मंत्र मिल गया है राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने के लिए ‘‘लाड़ली बहिना’’  । पिछले साल मध्यप्रदेश के चुनावों में इस मंत्र को सिद्ध किया गया, परिणाम बेहतर आए तो अब हर एक चुनावी राज्यों में इस का प्रयोग किया जाने लगा ‘‘आओ बहिना तुम हमे वोट दो हम तुम्हें घर बैठे पैसे देंगें’’ । बहिना खुश हुई और इतने सारे वोट दे दिये की ईव्हीएम मशीन चिल्लाने लगी कि कुछ कम कर लो सारे वोट एक ही जगह दे दोगे क्या’’ । चलो टीक है तो कुछ वोटें उन्हें भी मिल गई जोअपना अस्तित्व बचाना चाह रहे थे । मंत्र सटीक है और जब भी प्रयोग किया जाता है सफलता के साथ ही रिकार्ड भी बना देता है । मध्यप्रदेश में तो इसने तात्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की डूबती नैया को पार लगाया और ऐसा पार लगाया कि उनकी पार्टी खुद आश्चर्य में पड़ गई दो तिहाई सीटें अरे…….पर मिल गई तो जश्न मनाया गया पर इसमें एक ही नुकसान होता है कि जो इस मंत्र को फूंकता है उसे बाहर हो जाना पड़ता है तो शिवराज सिंह जी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से बाहर हो गए, ये अलग बात है कि बाद में वे केन्द्र में और बड़े मंत्री बन गए । यह मंत्र हरियाणा में फूंका गया तो वहां भी दो तिहाई सीटें मिल गई पर मंत्र फूंकने वाले मनोहरलाल जी खट्टर मुख्यमंत्री नहीं रहे वे भी केन्द्र में ही आ गए । अब बारी थी महाराष्ट्र की तो इस आजमाए हुए मंत्र को महाराष्ट्र मेंं भी फूंक दिया गया । परिणाम यहां भी अनापेक्षित ढंग से दो तिहाई बहुमत मिल गया जब कि कोई इसकी कल्पना भी नही कर पा रहा था न तो राजनेता, न तो राजनीतिक दल और न ही चुनाव सवे करने वाली बड़ी-बड़ी एजेंसियां । सारे लोग दांतों के नीचे उंगली रखकर परिणाम देखते रहे और सच्ची के ही परिणाम है इस पर चिन्तन करते रहे । गजब हो गया महाराष्ट्र की राजनीति में तो बड़े-बड़े धुरंधर खिलाड़ी हैं जिनके नाम से ही वहां की राजनीति चलती रही है पर सारे के सारे एक कोने में सिमटे दिखाई दिए । किसी को कुछ नहीं मिला जिनकों मिला वो तो इतनी बड़ी झोली फैलाए हुए ही नहीं थे । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने तो एक कदम आगे बढ़कर न केवल लाड़ली बहिनों को पैसे देने की घोषणा कि बल्कि उन्होने तो आगामी तीन महिनों के पैसे भी डाल दिए ‘‘आओ बहिनों लूट लो….सारा कुछ आपका ही है’’ बिनें खुश हो गई फिर उन्होने लाइन लगाकर वोटें डाल दीं । आप विकास….विकास चिल्लाते रहो…..आप भविष्य की योजना दिखाकर वोट मांगते रहो उन्हें इससे कोई मतलब नहीं जिन्होने दिया…..वोट उन्हीं को । तो मिल गई वोट और आजतक के सबसे अच्छे परिणामों का सेहरा बांधकर नेता नाचते गाते दिखाई देने लगे । अब तो चुनावी सभा, पांच साल का विकासख् भविष्य की योजना सारा कुछ बेईमानी लगने लगा है…एक ही रामबाण है पैसे दो और देते रहने का वायदा करो । झारखंड में यह मत्र हेमंत सोरेन ने फूंका तो उन्हें भी सफलता मिल गई, वे भी कुर्सी पर बैठ गए । चुनाव जीतने की कुंजी जिसको मिल जाती है वह कुर्सी पर बैठ जाता है । पर विडम्बना की बात तो यह है कि मध्यप्रदेश में इस योजना के बारे में योजना कांग्रेस ने बनाई थी । चुनाव के छैः महिना पहिले उन्हेने वकायदा लाड़ली बहिना योजना के लिए आवेदन भरवाए थे इसके लिए अपने कार्यकर्ताओं को लगाया था जो गली-गली जाकर योजना के बारे में बताते थे और फार्म भरवाते थे । पर जैसे ही योजना की खबर भाजपा को लगी तो उन्होने इस योजना को अपने हाथों में ले लिया, वे सत्ता में थे तो दमदार ढंग इसे प्रस्तुत कर दिया और बहिनों ने भी उन पर ही विश्वास किया । जो कांग्रेस इस योजना को लेकर आई वह फेल हो गई और मध्यप्रदेश सहित डत्तीगढ़ में भाजपा ने इसका फायदा ले लिया । महाराष्ट्र में भी कांग्रेस और उनके संगठन महाविकास अघाड़ी ने बहिनों को पैसे देने का वायदा किया पर सत्तारूढ़ दल ने न केवल वायदा किया बल्कि पैसे ही दे दिये अब कुर्सी उनके हाथ है और विपक्ष अभी तक सदमे में है याने मंत्र किसी का और फायदा किसी का ।   महाराष्ट्र में कहां तो विपक्ष को लग रहा था कि वे बस अब सत्ता पर आ ही गए हैं, मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश होने लगी थी, नए कुर्ता-पायजामा का आर्डर दे दिया गया होगा, सर्वे वालों ने भी हवा भरी, वैसे इस बार एक्जिट पोल वाले बहुत सतर्कता के साथ काम कर रहे थे, बेचारों के एक्जिटपोल हरियाणा और इसके पहले मध्यप्रदेश के चुनावों में  फेल हो चुके हें तो वे सतर्क थे तब भी उन्होने जो बताया वह नहीं हुआ । सारी भविष्यवाणियां फेल हो गई. ज्योतिषाचार्य माथे पर हाथ रखकार सोच रहे होगें कि यह कैसे हो गया, उनकी भविष्यवाणियां विदेशों की सत्ता बताने में सफल हो जाती है पर भारत में नहीं । हर कोई हैरान, मुश्किल यह की वे ईव्हीएम का रोना भी नहीं रो सकते, क्योंकि उनको झारखंड में सत्ता मिल गई है, यदि पहले पूछ लिया जाता कि हम एक राज्य की आपको सौंप देगें तो वे झारखंड को दांव पर लगा देते और कहते कि भैया हमें तो महाराष्ट्र की कुर्सी पर बिठा दो पर ऐसा नहीं हुआ । उनके हाथों में झारखंड आ गया और महायुति के पास महाराष्ट्र, यह वही महाराष्ट्र है जिसमें लोकसभा चुनावों में  महायुति को उतनी सफलता नहीं मिल पाई थी, विपक्ष उन पुराने आंकड़ों के भरोसे ही महाराष्ट्र की कुर्सी पर बैठने के सपने संजोए था । सब कुछ उलट-पुलट हो गया, ऐसा तो दिल्ली में होता है, वहां लोकसभा चुनावों में आप पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलती पर विधानसभा चुनावों में दो तिहाई से ज्यादा सीटें मिल जाती हैं । महाराष्ट्र में ऐसा पहलीबार हुआ है इस कारण से विपक्ष बुलंद आवाज में बातें  कर रहा था पर सब कुछ धरा का धरा रह गया । कुछ राजनीतिक दलो की तो दुकानदारी ही बंद होने की कगार पर आ गई है । उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरदपवार की पार्टी को अब अंधेरा ही दिखाई दे रहा होगा । एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना वास्तविक शिवसेना के रूप् में जम चुकी है । चुनाव आयोग ने जब उसे वास्तविक शिवसेना की मान्यता दी थी तब उद्धव ठाकरे को लग रहा था कि उनके साथ अन्याय हुआ है, ऐसा ही शरदपवार को लग रहा था पर अब इन चुनावों ने साफ कर दिया है कि सही कौन गलत कौन, कैसे भी किया गया हो कैसे भी हुआ हो पर जो हुआ रिकार्ड तो वह ही है । वैसे भी उद्धव ठाकरे के पास मात्र 20 विधायक ही हैं, वे भी कितने दिन साथ रहेगें कहा नहीं जा सकता, यही स्थिति शरद पावर वाली पार्टी की है, उनके विधायक उनके साथ कितने दिन रहेगें कोई नहीं जानता । वे भी ऐसे डूबते हुए जहाज में रहकर अपना समय बरबाद क्यों करेगें तो उनका जाना तो लगभग तय है फिर इन पार्टियों का भविष्य भी खत्म माना जा सकता है । चमत्कार तो उत्तर प्रदेश में भी हुआ । वहां दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए और भाजपा ने सात सीटों पर कब्जा कर लिया इनमें वो सीट भी शामिल है जहां मुसिलम मतदाता सार्वधिक हें, याने यह माना जाता था कि मुस्लिम मतदाता भाजपा को वोट नहीं देता यह भ्रम भी टूट गया है । समाजवादी पार्टी क्र पुमुख अखिलेश यादव लोकसभा चुनावों में मिली सफलता से दम भर रहे थे कि इन दस सीटों पर वे अपने प्रत्याशी जिता लायेगें पर ऐसा नहीं हुआ  ‘‘तेरा क्या होगा कालिया’ वाली स्टाइल में सब कुछ खामोश हो चुका है, केवल ममता बनर्जी अपने उम्मीदवारों को विजयी बनाने में सफल रहीं । भाजपा ने वहां बहुत मेहनत की पर वो सफल नहीं हो पा रही है । भाजपा के लिए केरल और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां वे मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं हो पा रहे हैं । पश्चिम बंगाल में तो उनकी मेहनत जरूरत से ज्यादा ही हो रही हे पर हर बार असफलता ही हाथ लगती है ।  इस कारण से भी ममता बनर्जी का कद बढ़ रहा है ।  उनके एक सांसद ने तो सार्वजनिक रूप से कह भी दिया कि इंडिया गठबंधन की कमान अब ममता बनर्जी को दे दी जाए । कांग्रेस मेहनत करने के बाद भी सफल नहीं हो पा रही है । हरियाणा में उनकी सरकार बनते बनते रह गई तब संजय राउत ने भी कांग्रेस को भलाबुरा कहा था, अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को रणनीति न बना पाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था, पर अब जब महाराष्ट्र में भी वैसे ही रिजल्ट आए तो सारे मौन हैं । किसी से कुछ बोलते नहीं बन रहा है न संजय राउत से और न ही अखिलेश यादव से । कांग्रेस तो खैर इतनी बार पराजित हो चुकी है कि उसे पराजित होने में बुरा नहीं लगता, वे इन सब के बीच प्रसन्न होने के लिए  कोई नया  बहाना खोज ही लेते हैं, इस बार उन्होने पियंका गांधी के वायनाड से रिकार्ड मतों से जीतने का जश्न मना लिया । वायनाड की सीट राहुल गाधी ने खाली की थी जो रायबरली से लोकसभा का चुनाव जीत चुके थे । वायनाड ने राहुल गांधी को दो बार विजयी बनाया इसलिए ही प्रियंका गांधी ने भी दांव खेल लिया वरना वे अभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़तीं । जीत पक्की थी तो उन्होने हाथ आजमा लिए । अब वे लोकसभा सांसद बन कर अपने भाई राहुल गांधी के साथ संसद में बैठी दिखाई देगीं । सोनिया गांधी तो इस बार राज्यसभा में हैं पर यह भाई बहिनों की जोड़ी संसद में दिखाई देने वाली है । चुनावों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है । अब दिल्ली की बारी है । दिल्ली में इस बार आप पार्टी की स्थिति उतनी मजबूत दिखाई नहीं दे रही है, उनके मजबूत नेता कैलाश गहलोत भाजपा में शामिल हो चुके हैं, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर केजरीवाल नहीं हैं तो आप पार्टी के लिए सारा कुछ बहुत कष्टदायी साबित होने वाला है । अंगद के पैर उखड़ सकते हैं ऐसा राजनीतिक समीक्षकों को मत है ।  भाजपा चुनाव जीतने का मंत्र पा चुकी है अब उसे पराजित करना कठिन ही है ।                       

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