राम नाम सबसे ही प्यारा, कहते सारे ज्ञानी हैं।
जो भूला मूरख कहलाया, वही बड़ा अज्ञानी है।
राम नाम की डोरी पकड़ो, मिलता सहज सहारा है।
हाथ पकड़ कर जो भी रखते,भव से पार उतारा है।
माया की नगरी यह दुनिया, लालच ने भरमाया है।
चार दिनों का जीवन पाया, नहीं समझ क्यों पाया है।
रघुपति राघव रटते रटते, जीव सफल हो जाता है।
दुनिया बस दो दिन का मेला, बस इतना सा नाता है।।
क्या लाया क्या ले जायेगा, कहां साथ कुछ जाना है।
सफल हुआ उसका ही जीवन,जिसने इसको माना है।।
मन वश में करता जो मानव, कभी विकार न लाता है।
मोह पाश को काटा जिसने, वही राम को पाता है।।
सीतापति उसके हो जाते, जिसने राम पुकारा है।
कृपा सिंधु कहलाते प्रभुवर,उनका नाम सहारा है।।
हनुमत प्रिय रघुपति के देखो, उनसे गहरा नाता है।
रघुवर संग हनुमत मिल जाते, सबको यही सुहाता है।।
आ जाओ अब तो रघुराई, धरती आकुल रोती है।
मानवता लगती घबराई, अपना सबकुछ खोती है।
दानव हर दिन बढ़ते जाते, जीवन जटिल बना सारा।
देर नहीं अब जरा लगाओ, मृदु कर दो जो है खारा।।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली