कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
आदि पुरूष बहुत मंहगी फिल्म बनाई गई है । वैसे भी अब फिल्मों को अनावश्यक मंहगा करना फैशन जैसा बन गया है, ताकि कहने में अच्छा लगा कि हम कोई ऐसे वैसे फिल्म मेकर नहीं हैं कि सस्ती सी फिल्म बना दें । आदि पुरूष भी महंगी बना दी गई । जब इतनी मंहगी फिल्म बनाई गई तो ढंग का पअकथा लिखने वाला भी रख लेते, थोड़े बहुत ज्यादा पैसे लेता पर कम से कम फिल्म की दुर्गित तो नहीं होती । सस्ते लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए सस्ते संवाद लिखते हैं बगैर अघ्ययन किए । रामानंद सागर जी ने जब सीरियल बनाया था तो उसकी पटकथा लिखने के पहले सेंकड़ों रामायण से जुड़ी पुस्तकों का अध्ययन किया था, ताकि कोई विसंगति न रह जाये । फिल्म हो या टीवी सीरियल वे आम आदमी की मानसिकता पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं । वैसे भी रामायाण तो आम भारतीयों के दिलों दिमाग पर अंकित है ही उसने भले ही रामायण पर बने सीरियल या फिल्में न देखी हों पर उसने अपने गांव में, शहर में होने वाली रामलीला के मंचन को तो अवश्य ही देखा होता है और कुछ नहीं तो अखंड रामायण पाठ तो नवजात शिशु भी सुनता है । जाहिर है कि रामायण के बारे में वो इतना तो जानता ही है जो आदि पुरूष के पटकथा लेखक नहीं जानते । न संवाद ढंग है और न ही दृश्य ढंग के हैं, वेशभूषा तो ऐसी है कि उसे समझने में ही वक्त निकल जाता है कि यह पात्र वाकई है कौन । पिछले कुछ दिनों से एक नई फैशन सामने आ गई है, वो है कंाग्रेस को कोसो तो भाजपा के आखां के तारे बन जाओ और भाजपा की आंखों के तारे बनने के बाद आप कवच ग्रहण कर लो । मनोज शुक्ला जी ने अपने आपको प्रसिद्ध करने के लिए इसी संकरी गलि का मसर्ग चुना, देखते ही दे,ाते वे भाजपा के लाड़ले हो गए और देश के ख्यातिलब्ध साहित्यकार बन गए । अब इस ख्याति को पचाना भी था तो आदि पुरूष के संवदा लेखक बन गए और ऐसे संवाद लिख दिए कि छोटे-छोटे बच्चे भी शर्मिदा हो जायें । उन्हें लग रहा था कि कांग्रेस को कोस कर उन्होने जो सुरक्षा कवच हासिल कर लिया है उससे उन्हें कोई बुरा-भला तक नहीं कह पायेगा और कहेगा तो कह दिया जायेगा कि दूषित मानसिकता से प्रेरित हैं । वैसे हुआ तो लगभग ऐसा ही । जो लोग जरा-जरा सी बातों में विद्रोह के लिए खड़े हो जाते थे, वे मौन ही रहे, वे साधु संत जो अपनी पूजा-आराधना छोड़कर चेतावनी देने लगते थे, वे भी लगभग मौन ही बने रहे । कुछ लोगों ने विरोध का जिम्मा अपने कांधों पर लिया पर वो मनोज शुक्ला के सुरक्षा कवच को उतना नुकसान नहीं पहुंचा पाया जिसकी जरूरत उन्हें थी । जिस फिल्म को तत्काल ही नेपाल जैसा प्रतिबंधिसत कर दिया जाना चाहिए था वह आज भी सिनेमाहालों में चल रही है बगैर किसी टेंशन के । हमने तो जाने कितनी फिल्मों के विरोध के लिए सिनेमाघरों में तोड़फोड़ होते देखा है, हमने तो जाने कितनी फिल्मों के विरोध के लिए तनाव पैदा होते देखा है, पर इस फिल्म के साथ ऐसा हुआ कहां । लोग आपत्ति करते रहे, सिनेमा देखकर सिनेमाहाल से निकलने वाले दर्शक धारा प्रवाह फिल्म बनाने वाले को कोसते रहे पर फिल्म अभी भी चल रही है, कोई कुछ नही बिगाड़ पाया न तो फिल्म मेकर का न संवाद लेखक का ठीक वैसे ही जैसे पहलवान ब्रजभूषण का कुछ नहीं बिगाड़ पाए । ब्रजभूषण के खिलाफ इतना लम्बा आंदोलन चला, धरने में बैठी महिला पहलवानों के साथ बदसलूकी की गई और सारे देश में वातावरण बन गया तो लगा कि इस बार न्याय मिलेगा ही पर नहीं मिल पाया अब ो चार्जषीट दाखिल हो चुकी है और प्रकरण न्यायालय में पहुंच गया है, जो होनो है वहीं होगा । ब्रजभूषण सिंह जी तो अब भी दहाड़ रहे हैं और अपने सुरक्षा कवच को दिख-दिखा कर बता रहे हें कि कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता, इस कोई में वे लोग शामिल नहीं हैं जिन्होने उसे सुरक्षा कवच दिया हुआ है । वो तो आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया है बगैर कि फिक्र के । आम आदमी होता तो जरा सी रिपोर्ट में ही जेल की अंदर ठूंस दिया गया होता जहां उसे छैः महिने तक तो जमानत ही नहीं मिलती । मनोज शुक्ला से लेकर ब्रजभूषण तक एक सी कहानी है और कहान का सार है सुरक्षा कवच । खैर जिसकी लाठी और उस की ही भैंस । एक भैंस नहीं भैंसा कुर्बानी के लिए लाखों रूप्ए में खरीद कर लाया गया और आते ही उसने तहलका मचा दिया । ऐसा बिफरा की दो चार लोगों को रौंद दिया वे बेचारो तो अकारण ही अस्पताल पहुंच गए । भैसा किसी का, पर अस्पताल पहुंचने वाले तो केवल दर्शक ही थे । इसलिए ही तो कहा जाता है कि अनावश्यक कहीं भी खड़े होकर अपना टाइमपास नहीं किया करो । इसी टाइमपास के चक्कर में वे हाथ-पांव तुड़वा बैठे थे । एक बकरा ने मुबंई की एक सोसायटी में तहलका मचा दिया । अब लोग विरोध के सुरों को मुखर करना सीख चुके हैं । विरोध करते हैं और अनावश्यक भार से मुक्त रहते हैं । धर्म की आजादी है यह सच है पर धर्म की आजदी में किसी और की भावनाओं का अनादर नहीं किया जा सकता । बहुसंख्यक लोग वैसे भी बेजुबानों के कत्ल से दुखी महसूस करते हैं पर यदि उनका धर्म ऐसा करना चाहता है तो उन सभी से दूर अपना धर्म मनाया जा सकता है जो दुखी होते हैं । उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी जीे ने तो कड़े निर्देश दिए भी और उनका पालन भी कराया । ऐसा हर जगह होना चाहिए ।मोदी जीे वाकई विश्व के सबसे अधिक सम्मानीय नेता की श्रेणी में आ चुके हैं और इससे हर एक भारतीय को गर्व महसूस होना चाहिए । राजनीति अपनी जगह है पर विश्व के पटल पर मिलने वाला सम्मान हर एक भारतीय के लिए गौरव का विषय है । अमेरिका में जिस तरह उनका स्वागत किया गया वह अविस्मरणीय है । यह सच है कि इसके पहले पं. जवाहरलाल नेहरू को भी ऐसा ही सम्मान मिला पर सच यह भी है कि आज जो भारती की विदेश नीति है उसके चलते विश्व के लगभग हर एक देश में भारत का डंका बज रहा है । रूस के प्रिय मित्र होने के बाद भी अमेंरिका के साथ वाली मित्रता अप्रभावी रही, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ । मित्रता रूस के साथ रही इसके कारण ही अमंरिका के साथ उतने बेहतर रिश्ते नहीं रह पाए, जो अब हैं । मिसेज बाइडन जिस तरह से मोदी का हाथ अनौपचारिक ढंग से अपने हाथों में लेकर उन्हें व्हाइट हाउस घुमा रही थीं वह दृश्य हर भारतवासी के दिल में छा जाने वाला दृश्य है । योग दिवपस पर जिस तरह विश्व के कई देशों के प्रतिनिधियों के साथ मोदी जी ने योग कर गिनीज बुक रिकार्ड बनाया वो भी ऐतिहासिक रहा । मिस्त्र ने उन्हें अपना सर्वोच्च सम्मान दिया । यह सारी बातें विश्व समुदाय ने देखी और भारत की ताकत को महसूस भी किया । समान नागरिक संहिता की सुगबुगाहट तेज हो गई है । एक देश, एक कानून अब केन्द्र सरकार इस पर काम प्रारंभ कर रही है । हमारा देश तो विवधिता को लेकर आगे बढ़ रहा है । पर हर एक विवधता के साथ यह भी तो आवश्यक है कि हम एक कानून के नीचे रहे हैं । मोदी जी की यी बात तो सच है कि एक घर में दो कानून कैसे चल सकते हैं , एक के लिए कुछ और दूसरे के लिए कुछ और । वैसे अभी इस पर बहुत काम होना है पर इतने से ही कई बातें सामने आने लगी हैं…अच्छा है सभी के अपने-अपने तर्क हैं और तर्को के निचोड़ से कुछ अच्छा ही होगा । विपक्ष के बहुत सारे नेता एक मीटिंग के लिए बिहार में इकट्ठा हो गए, नीतिश जी बहुत दिनों से इसके लिए प्रयास कर रहे थे । वे जानते हैं कि विपक्ष एक साथ आयेगा तब ही मोदी जी को सत्ता से दूर किया जा सकेगा । मीटिंग में ये लोग इकट्ठा हो जायेगें यह संभव नहीं लग रहा था पर संभव हो गया । वे भले ही एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों पर वे एक साथ बैठक मे दिखाई तो दिए । वे बैठे और बातें कीं । फोटो उतरी और अखबारों में छप गई । महत्वूपर्ण यह ही था कि सारे विपक्ष के नेता एक मंच पर आ गए । अब एक मंच है तो धीरे-धीरे गिले शिकवे भी दूर हो जायेगें । यदि ऐसा हो पाया तो यह भाजपा के लिए कठिनाई पैदा कर देगा पर ऐसा हो ऐसा अभी तो नहीं दिख रहा है । विपक्ष में ज्यादातर क्षेत्रीय दल हैं और क्षेत्रीय दलों की अपनी-अपनी सीमायें होती हैं, वे उसके हिसाब से ही बात करते हैं । खैर इसका अंत कहां होगा कहा नहीं जा सकता पर इतना तो अवश्य है कि यह शुरूआत बहुत अच्छी है । दूसरी मीटिंग और होगी तब और बातं समझ में आयेगी । बरसात आ गई और ऐसी आई कि उसने आते ही सारे देश में उधम मचा दिया । पहली ही बारिश ने बाड़ ला दी और लोगों ने अपने घरों में बरसात के पानी को घुसते महसूस कर लिया । बरसात पूरे देश में एक साथ ही आई और हर जगह तहलका मचा गई ।