सुधांशु बहुत खुश था , बिज़नेस में फायदा हुआ था , और अपनी शादी की तीसवीं वर्षगांठ पर, पत्नी आभा को बढ़िया सा उपहार देना चाहता था, उसने ऑफिस से फ़ोन किया ,
“ सुनो आज शाम को खाना बाहर खाएंगे। ”
“ क्यों ? “
“ क्यों क्या , बहुत दिन हो गए हैं बाहर नहीं गए इसलिए। ”
“ अरे , अभी परसों तो तुम बाहर गए थे। ”
“ पर तुम्हारे साथ तो नहीं गया था , वो बोरिंग बिज़नेस मीटिंग थी , आज हम दोनों रिलैक्स करेंगे। ”
“ रिलैक्स घर में करेंगे , दाल रोटी खाएंगे , लम्बी सैर पर जायेंगे , फिर बिस्तर में रूमी पढ़ेंगे। ”
“ ठीक है दाल के साथ आलू की सब्जी बना देना मेरे लिए। ”
” बन जायगी। ”
” और पापड़ भी। ”
” ठीक है। ”
” सुनो ”
” हाँ ।”
“ सहगल वाले कॉन्ट्रैक्ट में मुझे पूरा पचास लाख का फायदा हुआ है। “
“ वाह। ”
“ तो मैं सोच रहा हूँ , इस बार मैरिज एनिवर्सरी पे तुम्हें तीन कैरेट के सोलिटेयर खरीद दूँ। ”
“ क्यों
“ पहनना , और किसलिए ? “
आभा हस दी , “ तो अब मैं तुम्हारी फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट बनी घूमूंगी। ”
यह सुनकर सुधांशु को हसी आ गई। आभा भी हस दी और दोनों ने फ़ोन नीचे रख दिया।
रात को रूमी पढ़ते हुए आभा ने कहा, “ मैरिज एनिवर्सरी पर मेरे लिए एक कविता क्यों नहीं लिखते। ”
सुधांशु इस ख्याल से ही डर गया। ”
“ नहीं, अब यह सब मुझसे नहीं होगा। ”
“ अच्छा ठीक है , एक चिठ्ठी ही लिख दो। ”
“ ठीक है ईमेल भेज दूंगा। ” उसने मुहं बनाते हुए कहा।
“ अच्छा , इतना कष्ट मत उठाओ , ऐसा करो , बोल दो , में रिकॉर्ड कर लूँगी ।”
“ ठीक है, तुम मेरे लिए ग्रीन टी बना के लाओ , तब तक मैं रिकॉर्ड करता हूँ। ”
आभा जैसे ही वापिस आई सुधांशु ने उसे फ़ोन पकड़ा दिया , ” लो सुन लो। ”
आभा ने बिस्तर पर बैठते हुए ख़ुशी से बटन दबाया ,
” प्रिय आभा ,
मैं तुम्हें उतना प्यार करता हूँ, जैसे कोई मरने वाला जिंदगी से करता है, अब सुनकर हसना मत, उस कवि के विचार मेरे विचार से मेल खाते हैं, इसमें मेरी कोई गलती नहीं। ”
आभा यह सुनकर मुस्करा दी। ”
” अब आगे सुन, ओन ए सीरियस नोट, तुमने मेरे लिए बहुत सेक्रीफाइसिस किये , अपनाा कैरियर छोड़ा , मेरे माँ बाप की सेवा की, मुझे बिज़नेस में सपोर्ट किया, बच्चों के भविष्य का निर्माण किया. । ”
अभी वह कह ही रहा था कि आभा ने फ़ोन बन्द कर दिया।
” क्यों अच्छा नहीं लगा ? “सुधांशु ने कहा।
“ ये प्रेमपत्र है या सब्जीवाले का हिसाब ?”
“ मुझे तो बस इतना ही आता है। ” यह कहकर सुधांशु चद्दर तान कर सो गया और थोड़ी देर में खुर्राटे भी भरने लगा।
आभा को बहुत गुस्सा आया , उसे लगने लगा उसका जीवन कितना अकेला है , बच्चे बड़े हो गए हैं , सास ससुर रहे नहीं , और सुधांशु को बिज़नेस के आलावा कुछ नहीं आता। वह धीरे धीरे उदास मन लिए सो गई।
सुबह उठी तो उसकी नाराजगी जारी थी। सुधांशु नहा धोकर तैयार होकर ऑफिस चला गया , जैसे वो आभा को जानता ही नहीं। अब तो आभा ने तय कर लिया कि शाम को जब सुधांशु लौटेगा , उससे पहले कामवाली को चाबी देकर वह घूमने चली जायगी।
इसी गुस्से में तमतमाए वह सोफे पर बैठ गई , अचानक उसकी नजर मेज पर पड़े लिफाफे पर पड़ी , जिस पर एक गुलाब रखा था।
उसने मुस्कराकर उसे खोला तो उसमें एक कविता थी,
तुमसे जीवन के सारे अर्थ मिले
चाँद सूरज सबके स्पर्श मिले।
पढ़कर आभा का मन खिल उठा। इतने में फ़ोन बजा ,
“ अच्छा लगा ?”
“ हाँ , बहुत। ” और आभा हस दी।
“ अब इससे ज्यादा मैं नहीं लिख सकता। ”
“ इतना काफी है। “ आभा की मुस्कराहट से घर दमक उठा , और ऑफिस जा रहे सुधांशु का मन खिल उठा।
—-शशि महाजन