साहित्य
बदलना है तो खुद को बदलो
हमारे आस पास कुछ न कुछ ऐसा घटता ही रहता है जो हमें पसंद नहीं आता है। ऐसे लोगों से मुलाकात होती ही रहती है जिनकी हरकतें हमें विचलित कर देती हैं। ऐसे लोगों की वाणी, विचार और कर्म केवल दुख ही देते हैं। तब अनायास ही मन में यह विचार आता है कि कितना…
मदर टेरेसा : ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’
जिंदगी उसी की जिसकी मौत पर जमाना अफसोस करे।यूं तो हर शख्स आता है दुनिया में मरने के लिए।। हां वैसे तो बहुत सारे लोग आते हैं और चले जाते हैं पर याद वहीं रहते हैं जिन्होंने इस देश को अपनी एक अलग छवि दी है, अपना एक अलग रूप दिया है, अपनी एक अलग…
अ.भा. सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति, न. दि. के तत्त्वावधान में ‘स्व. श्री अरुण वर्धन स्मृति संध्या’ का आयोजन
हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार अमरकांत के सुपुत्र और हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार और कहानीकार थे अरुण वर्धन कोरोना से लगभग डेढ़ महीने के संघर्ष के बाद 12 मई, 2021 को वे ब्रह्मलीन हुए ‘पत्रकारों में अरुण वर्धन विरले थे’ : रामबहादुर राय रविवार, 6 जून, 2021 अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति, नई दिल्ली के तत्त्वावधान में आज…
राष्ट्रीय कवि संगम के तत्वाधान में ऑनलाइन अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन आयोजित
पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय कवि संगम हापुड पिलखुवा इकाई के तत्वावधान में एक अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन ऑनलाइन आयोजित हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रांतीय मुख्य संयोजक वरिष्ठ कवि अशोक गोयल ने की। *कार्यक्रम मे मुख्य अतिथि प्रांतीय प्रभारी शील वर्धन रहे व सानिध्य वरिष्ठ कवि एवं सहित्यकार प्रेम निर्मल का रहा।कार्यक्रम का…
जाना कहाँ है जब हर तीर्थ यहाँ है
कविता मल्होत्रा (संरक्षक, स्तंभकार – उत्कर्ष मेल) मौसम ख़ुश्क,हर सू धुँआ-धुँआ है असामयिक विदाइयाँ,सदी का बयाँ है क्रंदन मुखरित,आज ख़ामोश हर ज़ुबाँ है मानव गंतव्य भ्रमित,नकारात्मकता जवाँ है चंद धड़कनों की तलब में,प्यासा हर रोआँ है ✍️ आज हर तरफ, हर दिल की अशाँति के मुखरित पन्नों पर ओम शाँति के हस्ताक्षर दर्ज़ हो रहे…
अक्षय तृतीया (आखा तीज)
मंजुलता वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ‘अक्षय तृतीया’ या ‘आखातीज’ कहते हैं। ‘अक्षय’ का शाब्दिक अर्थ है- जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर की तिथि है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई…
तेरी रचना का ही अंत हो न
(कविता मल्होत्रा) कैसी विडँबना है, हर कोई अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धि की चाहत लिए अपना स्वतंत्र आकाश चाहता था और आज अधिकांश लोगों को दो गज ज़मीन भी नसीब नहीं हो रही। अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले देश में तमाम सीमाएँ लाँघने वाली समूची अवाम का अपनी भाषा पर ही अधिकार नहीं रहा, जो निशब्द होकर कोष्ठकों…
भारत – हमारा गर्व : सीमा तंवर
भारत एक शानदार देश रहा है जिस पर हमे सदा गर्व रहेगा दुनिया ने इस बहुमूल्य हीरे को कई बार परखा भी और हर बार जी भर कर इसके खजाने से अपनी झोली भर ली . बड़े ही दुःख की बात है की एक आम भारतीय ही कुछ ज़हरीले लोगो की साजिश के कारन अपने …
खिल उठे मानवता
श्रीमती कविता मल्होत्रा वसुदेव कुटुंब आज अपनी ही नाफ़रमानियों के कारण ख़तरे में है।कितनी अज़ीज़ रही होगी परम पिता को उसके अँश की हर एक प्रजाति जिसे उन्होंने एक उद्देश्य पूर्ण यात्रा के लिए धरती पर भेजा। प्रकृति समूची मानव जाति को निस्वार्थ सेवा का संदेश देती है लेकिन मानव औद्योगिक शिक्षा प्राप्त करके प्राकृतिक…
कोरोना को हल्के में लेना, कितना भारी पड़ रहा है
मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (प्रधान संपादक) कोरोना को हल्के में लेना हम सबको कितना भारी पड़ रहा है । हमने भी, सरकारी तंत्र् ने भी, स्वयंसेवी संस्थाएं भी बार–बार निवेदन करती रहीं कि 2 गज की दूरी मास्क है जरूरी, कम से कम तब तक तो अवश्य ही जब तक कोरोना भारत से पूरी तरह से…