राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
भाजपा के ही नेता अब गुजरात माडल से भयभीत हैं । गुजरात माडल का रंग रूप् बदल चुका है । पहले गुजरात माडल को विकास के माडल के रूप् में परोसा जाता था, इस माडल से भाजपा के नेता प्रसन्न होते थे और शेष बचे बाकी नेता भयभीत होते थे । अब गुजरात माडल का नया वर्जन सामने आ गया है । इस बले हुए रूप् से भाजपा के नेता ही भयभीत हैं और शेष नेता प्रसन्न । दरअसल अभी हाल ही में सम्पन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने ही मौजूदा विधायकों के टिकिट पूरी क्रूरता के साथ काट दिए और नए नेताओं को चुनाव लड़ाया । नए नेताओं ने नए होने के बाबजूद भी जीत हासिल कर ली । जीत भी ऐसी कि कई ऐसी विधानसभाओं में भी भाजपा इन नए नवेले नेताओं की बदौलत जीत गई जहां इसके पहले वह कभी नहीं जीत पाई थी । अब भाजपा को लग रहा है कि उसने जिस तरह पुराने घिसेपिटे नेताओं को टिकिट नहीं दी इसलिए वे जीत गए । इसे नया गुजरात माॅडल मान लिया गया है । वैसे यह भाजपा में ही संभव है कि बड़े-बड़े नेता जिनके नाम से ही क्षेत्र पहचाना जाता है को एक ही छटके में हटा दिया गया और उन्होने चूं तक नहीं की । ऐसा ही भाजपा ने मंत्रिमंडल के गठन में भी किया । कही यह और किसी राजनीतिक पार्टी में होता तो हायतौबा मच जाता । भाजपा अपने नेताओं से भय नहीं खाती बल्कि नेता भाजपा के शीर्ष नेताओं से भय खाते हैं । यदि अमितशाह जी ने किसी नेता की ओर देखा तक नहीं तो वह नेता घबराहट में गश्त खाकर गिर सकता है । भाजपा के कार्यकर्ता से लेकर नेता तक जानते हैं कि भाजपा में जो कुछ भी हो रहा है वह केवल न दो चेहरों की वजह से ही हो रहा है, इसमें उनका योगदान केवल गिनती के काम ही आ रहा है । दूसरी पार्टी के नेताओं को तो यह सुविधा रहती है कि वे अपनी पार्टी से नाराज होकर भाजपा का झंडा अपने हाथों में थाम लेते हैं पर भाजपा के नेता ऐसा भी नहीं कर सकते, वे बेचारो नाराज होकर भी अपने ही घर के किसी कोपभवन में बैठ जाते हैं फिर धीरे-धीरे खुद ही अपनी नाराजी दूर कर धुले-धुलाए कपड़े पहनकर शीर्ष नेताओं के स्वागत वाली लाइन में खड़े दिखाई देने लगते हैं । भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी ऐसे ही नहीं बनी है । उन्होने कमांड करने की ट्रेनिंग ली है और यह जताने की रिहर्सल की है कि उन्हें किसी की परवाह नहीं है । इसी दबंगता के कारण भाजपा के बड़े-बड़े नेता बगैर चं किए परदे के पीछे जा चुके हैं और जो वर्तमान में हें उनका भी कोई भरोसा नहीं है कि उनका वर्तमान कब तक रहता है । उनका भविष्य दो हाथों में कैद है । इस गुजरात माॅडल ने अब कई नेताओं की नींद उड़ा र,ाी है खासकर वे प्रदेश जहां वर्ष 2023 में चुनाव होना है । पुराने नेताओं कां ठंड के मौसम में पसीना आ रहा है । कहीं गुजरात माडल उनके प्रदेश में न लागू कर दिया जाए वरना उनकी तो राजनीति ही खत्म हो जायेगी । कोई भी नेता कभी राजनीति से रिटायर्ड नहीं होना चाहता ‘‘मैं तो अभी जवां हूॅ’’ के भावों के साथ वह च्यवनप्रास का सेवन करते हुए अपने गालों की लालिमा में डूबा रहता है । एक बार टिकिट कट जाने का मतलब है राजनीतिक रिटायर्ट मेन्ट हो जाना । राजनीतिक श्रिटयट्रमेन्ट का मतलब है कि उनका असामान्य व्यक्ति से सामान्य व्यक्ति के में बदल जाना, सत्ता सुख से बिछुड़ जाना । किसी भी नेता की इससे बड़ी कोई सजा होती ही नहीं है । बेचारे ढेर सारे कुरता-पायजामा सिलवा कर रखे हैं उनका क्या होगा । और कोई पार्टी होती तो वे दूसरे कुरता पायजामा पहन दूसरी डिजाइन का गमछा गले में डालकर दूसरी पार्टी में चले जाते, कपिल सिब्बल की तरह, किसी भी हालत में उन्हें सत्ता सुख चाहिए तो गले में डले गमछे को बदल लेने में क्या गुरेज है । पर उनकी किस्मत देखो कि वे बेचारे उस पार्टी में है जहां आंखों के ईशारों से अच्छे-अच्छे गुमनाम हो जाते हैं । नेता भयभीत हैं । उक तो वैसे भी चुनाव के नाम से वे भयभीत हो जाते है और अब गुजरात माॅडल के नाम से भयभीत हैं । मध्यप्रदेश में भी चुनाव होना है, गुजरात माॅडल की चर्चा यहां भी है जाने कितने वजनदार नेता इस माॅडल की चपेट में आने वाले हैं । मुख्यमंत्री तो सरप्राइज हवाई दौरा करने में लगे हैं । वे रोज सुबह नहाघोकर निकल जाते हैं पर उनके भय के कारण अधिकारी नहा-धो तक नहीं पा रहे हैं । वे कहीं भी पहुंच जाते हैं । और किसी को भी निपटा देते हैं । जो काम उनके अधीनस्थ अधिकारियों को करना चाहिए वह काम मुख्यमंत्री कर रहे हैं । हाथों में माइक लेकर मंच से ही ‘‘फलां अधिकाी आप निलम्बित किए जाते हैं’’ कहकर वे अपने उड़नखटोले में बैठकर उड़ जाते हैं और बेचारा अधिकारी ‘‘आज किसका मुंह देखा था’’ सोचते सोचते अपने घर लौट आता है । जाने कितने कर्मचारी अब तक ऐसे ही निपट चुके हैं । मुख्यमंत्री जी जानते तो होगें कि वे यदि लापरवाही के नाम पर कर्मचााी और अधिकारियों को निपटाने बैठ जाऐं तो एक भी कर्मचारी या अधिकारी प्रदेश में नहीं बचेगा । सारे के सारे केवल दिन काटते हैं और आम व्यक्ति अपने हाथों में कागज लिए घूमता रहता है । मुख्यमंत्री जी की भी मजबूरी है, चुनाव जो आने वाले हैं और वो भी गुजरात माॅडल की तर्ज पर । उनकी तो वैसे भी नींद हराम हो चुकी है । नहींद के चक्कर में राहुल गांाी नहीं पड़ रहे हैं, वे सब कुछ त्याग कर सारे लोभ-प्रलोभन से परे रहकर पैदल यात्रा कर रहे हैं । उन्हें अब इस यत्रा में मजा आने लगा है । हर दिन नए लोग, नया शहर, नई तस्वीर और जयकारे के ताजे नारे । किसी का हाथ पकड़ा किसी के कांधे पर अपना हाथ रखा और दाढ़ी बढ़े चेहरे पर मुसकान बिखेर कर अपनी यात्रा को जारी रखा । राहुल गांधी की पदयात्रा कदम दर कदम आगे बढ़ती जा रही है । वे प्रसन्न हैं कांग्रसी भी प्रसन्न हैं कुछ तो नया हो रहा है उनकी पार्टी में । कांग्रेस में इस साल कुछ कुछ नया होता जा रहा है, नया अध्यक्ष मिल गया है, हिमाचल में नई सरकार बन गई है, वहां भी वे प्रतिभा सिंह की धमकी से भयभीत हुए बगैर नया मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहे हैं । दिल्ली के एमसीडी चुनाव में भी वे शून्य से आगे बढ़ गये हैं । कांग्रसियों को तो खुश होना ही चाहिए । अब उन्हें लगने लगा है कि वे भविष्य से कुछ उम्मीद लगा सकते हैं । वैसे एक बात तो साफ है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भले ही चड़गे जी को यह सोचकर बना दिया गया हो कि अब कांग्रेस गांधी परिवार से मुक्त हो गई है पर ऐसा संभव नहीं है । खड़गे जी जानते हैं कि अंतिम मुहर तो गांधी परिवार से ही लगनी है । पर कुछ भी हो कंग्रेस ने अपनी पार्टी को नयापन तो दे ही दिया । ऐसा नयापन अखिलेश यादव भी महसूस कर रहे हैं । वे अंततः मुलायम सिंह की लोकसभा सीट को बचा लेने में सफल रहे हैं । उनकी पत्नी डिंपल यादव ने बहुत मार्जन से इस सीट को जीत लिया है । योगी जी के राज में कोइ्र भी चुनाव कोई जीत जाए यह बड़ी उपलब्धी ही मानी जा सकती है । आजमांखां जैसे नेता अपनी सीट को नहीं बचा पाए । भाजपा के पास चुनाव जीतने का सिद्ध मंत्र है सो वे जीत जाते हैं बाकी नेताओं के पास ऐसा मंत्र है नहीं तो वे हार जाते हैं । वैसे इस बार चुनावों में यह अच्छी बात रही कि किसी भी पार्टी के किसी भी नेता ने ई.व्हीएम पर दोष नहीं मढ़ा है, पर वे सोच अवश्य रहे होगें । ई.व्ही.एम भी जादू का पिटारा बन चुकी है इस पिटारे से कुछ भी निकल सकता है । इस बार गुजरात में भाजपा की जीत निकली तो हिमचाल प्रदेश में कांग्रेस की जीत निकल गई । अब कौन कुछ भी कहे । इतना जरूर आश्चर्य के साथ सामने आ रहा है कि गुजरात के कई बूथों पर एक घंटे के अंदर ही हजारों की संख्या में मतदान हुआ है, अब इस बात की सत्यता की परख निर्वाचन आयोग ही करेगा पर यदि ऐसा हुआ है तो वाकई आश्चर्य की बात तो है ही क्यों कि एक घंटे में इतनी वोअिंग हो ही नहीं सकती । केजरीवाल भी खामोश हें क्योंकि उन्हें भी एमसीडी के चुनाव में सफलता मिल गई है । वे भले ही गुजरात में सफल न हुए हो पर दिल्ली में तो उनका सिक्का चल ही रहा है । चुनाव के चक्क्र में कितने सारे आरोप उन पर लगाए गए पर आखिर वे जीत गए । अरविन्द केजरीवाल के चुहरे की मुस्कान बढ़ गई । गुजरात चुनाव में वे भले ही ज्यादा सफल नहीं हो पाए हों पर इतना तो जरूर हुआ है कि वहां मिले वोट प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने में तो सफल रहे ही हैं । अभी तो और राज्यों में चुनाव होला है । अरविन्द केजरीवाल भविष्य की उम्मीदों के साथ और वोट प्रतिशत बढ़ जाने की लालसा में इन चुनावों में भी मेहनत करेगें । वैसे भी वे और करें भी क्या ।अब वे अंक्षारी तो खेल नहीं सकते तो वे चुनाव-चुनाव खेल लेते हैं । वैसे मध्यप्रदेश में आप पार्टी का एक मेयर है भी उन्होने कुछ क्षत्रों में नगरपालिका और पंचायतों के चुनाव भी लड़ा है जाहिर है कि उनके पास कुछ तो वोट हैं ही । मध्यप्रदेश में वे सफल भले ही न हों पाएं पर वे अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने तो लेगें ही ।