डॉक्टर मनोज कुमार
(10 अगस्त 1894 से 23 जून 1980)
प्रारंभिक जीवन :-
वराह गिरि वेंकट गिरि (वी. वी. गिरि) का जन्म 10 अगस्त, 1894 को ओडिशा के बेहरामपुर में एक तेलुगू भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वी. वी. गिरि का विवाह अल्पायु में ही सरस्वती बाई से करा दिया गया था। उनके पिता वराह गिरि वेंकट जोगैया पांटुलु एक प्रतिष्ठित और समृद्ध वकील थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गृहनगर में पूरी की। अपनी कानून की शिक्षा के लिए उन्होंने सन् 1913 में डबलिन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। उसी वर्ष उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई, वी. वी. गिरि उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए और उन्हें यह एहसास हुआ कि कानून की शिक्षा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है देश की आजादी की लड़ाई। सन् 1916 में उन्होंने आयरलैंड के ‘सिन्न फ़ाईन आंदोलन’ में सक्रिय रूप से भाग लिया। परिणामतः वे अपनी कानून की शिक्षा पूरी करने में असमर्थ हो गए और उन्हें कॉलेज से निष्काषित कर दिया गया। यह आयरलैंड की आजादी और श्रमिकों का आंदोलन था, जिसके पीछे वहां के कुछ क्रांतिकारी विचारधारा वाले लोगों जैसे – डी. वालेरा, कोलिन्स, पेअरी, डेसमंड फिजराल्ड़, मेकनेल और कोनोली का हाथ था। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से उनसे मुलाकात की। इस आन्दोलन से प्रभावित होकर वे ऐसे आंदोलनों की आवश्यकता भारत में भी महसूस करने लगे। इसके बाद वी. वी. गिरि भारत लौट आए और सक्रिय रूप से श्रमिक आंदोलनों में भाग लेना शुरू किए, बाद में वे श्रमिक संगठन के महासचिव नियुक्त किये गए। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
श्रम आंदोलन के नेता एवं भारत के चौथे राष्ट्रपति :-
भारतीय उद्योगों और अन्य क्षेत्रों में आज श्रमिकों के अधिकारों की जो बढ़ी हुई ताकत दिखाई देती है उसका श्रेय करिश्माई कार्यकर्ता और सामाज सुधारक वी. वी. गिरि को जाता है। हमें उनको धन्यवाद देना चाहिए कि उनके संघर्ष और नेतृत्व में श्रम-शक्ति ने एक नई दिशा और ताकत पायी, जिसके परिणाम स्वरूप श्रमिकों के अधिकारों को आज कुचला नहीं जा सकता है। ब्रिटिश काल में सामाजिक पतन कमजोर वर्गों के लिए चिंता का विषय था, परन्तु वी. वी. गिरि को यह विश्वास था कि सभी समस्याओं का व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण से समाधान किया जा सकता है। उनका सपना था कि वे कानून के विशेषज्ञ बनें, परन्तु जब उन्हें आयरिश (आयरलैंड) राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आने और गांधी के संपर्क में आने का मौका मिला, तो उन्होंने अपने देश के लिए काम करने का फैसला किया। उन्होंने महसूस किया कि अगर भारत की श्रम-शक्ति को संगठित किया जाय तो न केवल उनके हालत में सुधार किया जा सकता है, बल्कि वे ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के संघर्ष में एक शक्तिशाली ताकत के रूप में काम आ सकते हैं।
स्वतंत्रता से वी. वी. गिरि की गतिविधियां :-
सन् 1922 तक वी. वी. गिरि श्रमिकों के हित में काम करने वाले एन. एम. जोशी के एक विश्वसनीय सहयोगी बन गए थे और अपने गुरु (जोशी) के समर्थन से उन्होंने मजदूर वर्ग की भलाई के लिए कार्य कर रहे संगठनों के साथ खुद को जोड़ा। ट्रेड यूनियन आंदोलन के लिए अपनी प्रतिबद्धता और मेहनत के कारण वे ‘आल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन’ के अध्यक्ष निर्वाचित किये गए। उन्होंने दो बार क्रमशः सन् 1926 और सन् 1942 में ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने राष्ट्रवादी आंदोलन की दिशा में विभिन्न ट्रेड यूनियनों में अपनी पहुंच के कारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सन् 1931-1932 में एक प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने लंदन में आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। वे सन् 1934 में ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली’ के सदस्य के रूप में चुने गए। वे कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में सन् 1936 के आम चुनाव (ब्रिटिश कालीन) में खड़े हुए और इसके साथ ही राजनीति से उनका वास्ता शुरू हुआ। उन्होंने चुनाव जीता और अगले वर्ष मद्रास प्रेसीडेंसी में उन्हें श्रम और उद्योग मंत्री बना दिया। जब ब्रिटिश शासन में कांग्रेस सरकार ने सन् 1942 में इस्तीफा दे दिया, तो वी. वी. गिरि ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के लिए श्रमिक आंदोलन में लौट आए। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इसके बाद सन् 1946 के आम चुनाव के बाद वे श्रम मंत्री बनाए गए।
स्वतंत्रता के बाद वी. वी. गिरि की गतिविधियां :-
भारत की स्वतंत्रता के बाद वी. वी. गिरि को उच्चायुक्त के रूप में सीलोन (श्रीलंका) भेजा गया था। वहाँ से अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद वे भारत लौट आए और पहली लोकसभा के लिए सन् 1952 में चुने गए तथा सन् 1957 तक कार्य किया। इस दौरान गिरि को केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया गया और वे भारत के श्रम मंत्री बने। वे इस मंत्रालय में सन् 1952 से 1954 तक बने रहे। लोकसभा में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्हें प्रतिष्ठित शिक्षाविदों के समूह का नेतृत्व करने, श्रम एवं औद्योगों से संबंधित मामलों के अध्ययन और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने का कार्य सौंपा गया। उनके प्रयासों के फलस्वरूप सन् 1957 में ‘द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स’ की स्थापना की गयी। भारतीय राजनीति में सक्रियता के बाद उन्होंने सन् 1957-1960 तक उत्तर प्रदेश, फिर 1960-1965 तक केरल और अंत में 1965-1967 तक मैसूर के राज्यपाल के रूप कार्य किया। सन् 1957 में जब राज्यपाल बने, उसके बाद भी वे ‘इंडियन कांफ्रेंस ऑफ़ सोशल वर्क’ के अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे। उन्हें सन् 1967 में भारत के उप-राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया।
राष्ट्रपति के रूप में वी. वी. गिरि का योगदान :-
सन् 1969 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का निधन हो गया, तो उसके उपरांत वी. वी. गिरि को भारत का कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। उसके बाद वे अपनी पार्टी के सदस्यों के मामूली विरोध के बाद भारत के चौथे राष्ट्रपति बने और वर्ष 1974 तक देश की सेवा की। जीवन पर्यंत वे अपने भाषण कौशल के लिए विख्यात रहे। वे एक निपुण लेखक भी थे, उन्होंने ‘इंडस्ट्रियल रिलेशन’ और ‘लेबर प्रॉब्लम इन इंडियन इंडस्ट्री’ नामक पुस्तकें भी लिखी।
सम्मान और विरासत
भारत सरकार ने उनके योगदान और उपलब्धियों के मद्दे नजर उन्हें सन् 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ देकर सम्मानित किया। सन् 1974 में भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने ‘श्रम से संबंधित मुद्दों पर शोध, प्रशिक्षण, शिक्षा, प्रकाशन और परामर्श’ के लिए एक स्वायत्त संस्था की स्थापना की। इस संस्था का नाम सन् 1995 में उनके सम्मान में ‘वी. वी. गिरि नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट’ रखा गया। उन्हें श्रमिकों के उत्थान और उनके अधिकारों के संरक्षण की दिशा में काम करने लिए एक मुखर कार्यकर्ता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। 85 वर्ष की अवस्था में 23 जून, 1980 को चेन्नई में उनका निधन हो गया।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम :-
1894 : 10 अगस्त, बहरामपुर में जन्म।
1913 : डबलिन यूनिवर्सिटी में दाखिला।
1916 : आयरलैंड के ‘सिन्न फ़ाईन आंदोलन’ में सक्रिय भाग लिया।
1922 : श्रमिकों के हित में काम करने वाले एन. एम. जोशी के विश्वसनीय सहयोगी बने।
1926 और 1942 : ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ के अध्यक्ष बने।
1952-1954 : केन्द्रीय श्रम मंत्री रहे।
1957 :‘द इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स’ की स्थापना।
1967 : भारत के उप-राष्ट्रपति निर्वाचित।
1969 : तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
1975 : भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ मिला।
1980 : 23 जून, मद्रास, तमिलनाडु में निधन हो गया।