राजनीतिक सफरनामा — कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
जब आंकड़ों का पौधा लहलहाता है तो धरातल दिखाई देना बंद हो जाता है । सरकार के सारे काम आंकड़ों के इर्दगिर्द ही घूमते हैं । यही तो कारण है कि संसद में स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने बता दिया कि हाल ही में सम्पन्न हुए कोरोनाकाल में किसी की भी मौत आक्सीजन की कमी से नहीं हुई । हो सकता है जब मंत्री जी ये आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हों तब उनके चेहरे पर भी शिकन रही हो क्योंकि लगभग सारा देश जानता है कि अप्रेल-मई का महिना केवल आक्सीजन की कमी और उससे होने वाली मौतों का गवाह रहा है । छोटे-बड़े हर अस्पताल में एक ही रोना रहा है कि वहां आक्सीजन की उपलब्धता या तो रही ही नहीं अथवा कम रही । सरकार ने भी आक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए विशेष ट्रेन तक चलाई । वहीं विदेशों से भी मदद के रूप् में आक्सीजन आई । तब इतना तो माना जा सकता है कि देश में आक्सीजन की उपलब्धता कम थीे । इस बार कोरोना के मरीज बढ़े तो उन्हें आक्सीजन की कमी से संघर्ष करना पड़ा । आक्सीजन के लिए वे मारे-मारे फिरे । जिन समाचारपत्रों ने मंत्री जी का यह बयान दिखाया उन समाचारपत्रों ने आक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों की तस्वीर भी छापी थी । सच इतने जल्दी छिप जाए यह तो संभव नहीं है । ये आंकड़े यदि दो चार साल बाद प्रस्तुत किए जाते तो भी ज्यादा हल्ला नहीं मचता पर यह तो ताजी-ताजी ही घटना है सो हल्ला मच गया । विपक्ष को जो कहना था उसने कहा पर आम व्यक्ति जिसने इस मंजर को अपनी आंखों से देखा है, वे परिवार जिन्होने आक्सीजन की कमी से अपने परिजनों को खोया है वे कैसे इस आंकड़े पर विश्वास कर लें । उनके दुखों को तो एक बार फिर ताजा कर दिया गया है । आंकड़ों के पीछे सरकार का अपना तर्क है । राज्य सरकारों ने उन्हें जो आंकड़े दिए उनमें भी किसी भी राज्य में आक्सीजन की कमी से मौतें होना स्वीकार नहीं किया है । राज्य सरकारों की अपनी मजबूरी है । वे ऐसे आंकड़े प्रस्तुत कर अपनी वाही-वाही लूटना चाहते थे कि ‘‘देखो हमारे प्रबंधन का कमाल, हमने किसी को भी आक्सीजन की कमी से मरने नहीं दिया’’ । कुछ राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने ऐसे विचार व्यक्त किए भी हैं । बावजूद इसके ऐसे आंकड़े देने वाले राज्यों में भी पर्याप्त मौतें हुई हैं । पर वे फंस चुके हैं । केन्द्र सरकार ने उनके आंकड़ों को अपनी ढाल बना लिया है । पर इसके बावजूद भी वह सवालों के घेरे में है । सवाल जायज हैं । राज्य सरकारों के इन आंकड़ों पर यदि स्वास्थ्य मंत्री पहले ही सवाल उठा देते तो उन्हें ससंद में ‘‘आक्सीजन से कोई मौत नहीं हुई’’ कहकर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ती । केन्द्र को राज्यों से सवाल करने का अधिकार तो है ही । सवाल तो इसलिए भी खड़ा होता है कि सभी लोगों ने इन मौतों को देखा है फिर उन्होने मान भी कैसे लिया कि आक्सीजन से कोई मौत नहीं हुई है । राजनीति मंे तो आंकड़ों का खेल चल सकता है पर संसद में आंकड़ों की जादूगिरी नहीं दिखाई जानी चाहिए । लोगों में आक्रोश है । आक्रोश में तो किसान भी हैं । इतने दिनों से सड़कों पर बैठकर वे इंतजार कर रहे हैं कि सरकार उनकी बात को मान ले । सरकार मानने को तैयार नहीं है । सरकार की अपनी प्रतिष्ठा है यदि वह आन्दोलन के भय से बातें मानने लगीं तो उसको कोई भी विधेयक लाने में ही दिक्कत होने लगेगी । सरकार मौन है और आन्दोलनकारी किसान उतावले होते जा रहे हैं । उन्होने जंत्रमंत्र पर धरना देना शुरू कर दिया है । यह वो स्थान है जो सुर्खियां देता है । किसान आन्दोलन को समाचारपत्रों की मुख्य न्यूज बनना था । कुछ महिनों से वे अखबारों की सुर्खियों से गायब हो गए थे । पर अब एक बार वे फिर चर्चाओं में आ गए हैं । किसान ससंद चल रही है भारत की ससंद के पास । उनके अपने स्पीकर हैं और डिप्टी स्पीकर भी बाकी सदस्य सदन के सदस्य की भांति चर्चा कर रहे हैं । कृषि सुधार बिल को लेकर किसानों का यह आन्दोलन सरकार के लिए कठिनाई तो देता दिखाई देने लगा है यह अलग बात है कि सरकार इसे स्वीकार नहीं कर रही है । विपक्षी दल भी किसान आन्दोलन के बहाने अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं । वे और कर भी क्या सकते हैं । किसान आन्दोलन और आगे बढ़ेगा तो नुकसान ही देगा । कुछ तो हल निकाला ही जाना चाहिए । हल तो जासूसी कराने के आरोपों का भी निकाला जाना चाहिए । विपक्ष तो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि सरकार उनके फोन टेप कर रही है पर सरकार मान नहीं रही । किसी रिपार्ट के हवाले से लगाए जा रहे इन आरापों ने ससंद के मानूसन सत्र को बहुत नुकसान पहुंचाया है । मानसून सत्र प्रतिदिन किसी न किसी हंगामें की भेंट चढ़ रहा है । आरोप गंभीर हैं जाहिर है कि सरकार इस आरोप से बगैर किसी ठोस दलील के पल्ला नहीं झाड़ सकती । विपक्ष के पास किसान आन्दोलन का मुद्दा तो था ही अब जासूसी का मुददा भी जुड़ गया है । हर नए मुद्दे सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैंन रहकर इन मुद्दों के खत्म हो जाने का इंतजार नहीं कर सकती । कांग्रेस बहुत मुखर है । आरोप है कि राहुल गांधी के दो फोन टेप किए गए । उनकी झंुझलाहट जायज भी है । ऐसी झुझलाहट पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह भी अपने दिल में पाले हुए हैं । नवजोत सिंह सिद्धू को उनके मना करने के बाद भी पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया । कांग्रेस का यह साहसिक कदम था । कांग्रेस ज्यादतर ऐसे साहसिक कदम नहीं उठाती । यदि वह पहले ही ऐसे कदम उठाती रहती तो आज ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में ही होते । बहरहाल पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अपने आपको पार्टी से बड़ा महसूस करने लगे थे और वे हाईकमान को भी धमकाते नजर आने लगे थे । नवजोत सिंह सिद्धू तो वैसे भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से नाराज चल रहे हैं । वे अपनी नाराजी खुल कर भी व्यक्त करते रहे हैं ऐसे में उनको पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर मुख्यमंत्री के कद के समकक्ष बिठा दिया गया । वैसे सिद्धू ने भी जिस ढंग से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की मजबूत टीम के विधायकों को अपने साथ मिलाया वह भी प्रशंसनीय है । कैप्टन इनके बल पर ही तो गरजते रहे थे । उनका समर्पण भी शायद इसी के कारण हुआ । सामने से तो उन्होने भरे मंच से सिद्धू को अध्यक्ष मान लिया पर दिल में क्या है इसे अभी कोई नहीं समझ पा रहा है । दिल को समझने की कला किसी के पास होती भी नहीं है । यदि होती तो अभिनेत्र.ी शिल्पा शेट्टी अपने पति के इिल के राज को जान चुकी होतीं । वे तो उस समय आवाक रह गई होगीं जब उनके पति को पोर्न फिल्म बनाने के आरोप में अरेस्ट किया गया । राजकुन्द्रा किसी और मामले में अरेस्ट होते तो भी शायद इतनी बेइज्जती नहीं होती जितनी पोर्न फिल्म बनाने के आरोपों पर हुई है । फिल्मी दुनिया का सबसे घटिया काम है यह । पर मजे की बात यह है कि इस काम में पैसे बहुत हैं । राजकुन्द्रा के पास पैसों की तो काई कमी होगी नहीं । वे खुद भी अच्छे बिजनिसमेन हैं और शिल्पा शेट्टी भी सक्रिय हैं वे टीव्ही पर आने वाले एक रियलिटी शो की जज हैं इसमें हर एपिसोड पर लाखों रूपया मिलता है । वैसे फिल्मी दुनिया में शिल्पा शेट्टी की अपनी इमेज है । इस इमेज को उनके पति राजकुन्द्रा ने ही दांव पर लगा दिया । राजकुन्द्रा की पहचान शिल्पा शेट्टी के पति होने के कारण ज्यादा है । अभी भी जब राजकुन्द्रा को अरेस्ट किया गया तो उनकी पहचान शिल्पा शेट्टी के पति के रूप में ही चर्चाओं में आई । मतलब साफ है कि शिल्पा शेट्टी की इमेज अब बरबाद हो गई है । फिल्मी दुनिया का काला सच अब लगातार सामने आने लगा है । अभिनेता सुशांत राजपूत की मौत के बाद ड्रग को लेकर उठे सवाल और हुई जांच ने फिल्मी दुनिया की छवि को नुकसान पहुंचाया और अब पोर्न फिल्मों के मामले ख्ुाल जाने के बाद एक बार फिर फिल्मी दुनिया कठघरे के घेरे में खड़ी दिखाई देने लगी है । आम आदमी वैसे भी इस अपरिचित दुनिया को शंक की निगाहों से देखता ही रहा है पर अब वह जानने और समढने लगा है कि चमकीले आवरण के पीछे कुछ गंदा भी छिपा है । ड्रग से लेकर पोर्न फिल्मों का काला चिट्टा जनता के सामने आ चुका है । अभी तां जांच प्रारंभ हुई है जब यह जांच आगे बढ़ेगी तो बहुत सारे खुलासे भी सामने आयेगें । लोगों को इसका इंतजार है । वैसे आम जन इंतजार तो वैक्सीन का भी कर रहा है । एक समय था कि बहुत सारे लोग वैक्सीन लगवाने से पीछे हट रहे थे पर अब वे वैक्सीन लगवाने के लिए उत्साहित हैं पर वैक्सीन की उपलब्धता नहीं हो पा रही है । सरकार कितने भी दावे करे कि वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है पर ये दावा सच साबित नहीं होता । वैक्सीन सेटरों में लगने वाली लम्बी-लम्बी लाइनें लोगों के उत्साहित होने की गवाह तो हैं पर वैक्सीन उपलब्ध न हो पाने के कारण मायुस चेहरा लिए लौटने वाले लोग इस बात के गवाह हें कि वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है । एक सेन्टर पर जितने डोज दिए जाते हैं वे घंटे दो घंटे में ही खत्म हो जाते हैं । यूं भी अब वैक्सीन हर दिन उपलब्ध नहीं हो पा रही है । ऐसा लगने लगा है कि सरकार के दावों के बावजूद भी कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता को नहीं बढ़ा पाई हैं । तीसरी लहर की आशंका के बीच वैक्सीन लगवाने वालों का उत्साह खत्म होता जा रहा है । वैसे भी अभी तक देश में करीब 45 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन के टीके लगे हैं । इनमें भी दोनों डोज लगा चुके व्यक्तियों का आंकड़ा कम है । यानि सभी को वैक्सीन लगने में लम्बा समय लगने वाला है । इस लम्बे समय के बीच में कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है और चैथी भी । अभी तो बच्चों को भी वैक्सीन लगाई जाना शेष है । यह सब कैसे होगा और कब तक होगा कुछ नहीं कहा जा सकता ।