कोरोना वायरस के कारण विश्व वयापार में जो खलबली मची है उसे कोई नकार नही सकता। वुहान शहर से निकला ये वायरस चीन के लिए सरदर्द बन चुका हैं। पूरा विश्व चीन को इसका जिम्मेदार ठहरा रहा है और महाशक्ति अमेरिका चीन को घेरने का हर संभव प्रयास कर रहा है।
जहां विश्व के ज्यादातर देश चीन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं वहां चीन को मानो जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा हो। खुद का बचाव करने के बजाए चीन और आक्रामक रवैया अपना रहा है जिसका नमूना हम “LAC, दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ टकराव, चीन द्वारा ऑस्ट्रेलियाई गोमांस पर प्रतिबंध और अमेरिका को धमकी” के रूप में देखा जा सकता है। चीन की अर्थव्यवस्था इस महामारी के कारण पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है, चीन में कई लोगो की नौकरियां जा चुकी है , पर सवाल यह है कि इतना कुछ होने के बाद भी चीन को इतनी हिम्मत आ कहाँ से रही है? आइये इस स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं |
हम सब जानते है विश्व मे दो ऐसे सैन्य शक्ति वाले देश है जो अकेले अपने दम पर पूरे विश्व का भूगोल बदल देने का दम खम रखते है, जो हमने दूसरे विश्वयुद्ध और 1971 भारत-पाक युद्ध मे देखा है।
जी हां आप सब बिल्कुल सही सोच रहे है मैं महा शक्ति अमेरिका और रूस की बात कर रहा हूँ। पूरा विश्व जानता है कि अगर इन दोनों में से किसी ने भी युद्ध लड़ा तो अकेले अपने दम पर पूरे विश्व मे तबाही ला सकता है
आइये इस तथ्य को समझने की कोशिश करते हैं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि चीन को ऐसा लगता है कि रूस उसका साथ किसी भी युद्ध मे देगा और अगर ऐसा सच मे होता है तो पूरा विश्व और अमेरिका खुद भी यह जनता है कि ऐसी स्थिति मे वो चीन का कुछ नही बिगाड़ पायेगा।
तो आइये अब इस पहलू को समझने की कोशिश करते है कि चीन ऐसी सोच क्यों रखता है।
वैसे तो चीन के हिसाब से बहुत से कारण है पर जो सबसे बड़ा कारण है वो ये है कि जब 2014 में रूस ने क्रिमीआ का राज्य-हरण किया था तो यूरोपियन देशो और अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे और G7 से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था जिससे रूस की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगा था, उस समय दुनिया का एकमात्र देश चीन ही था जो रूस के साथ आया था और दोनों ने ऊर्जा, व्यापार और वित्त समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे जो 25 अरब डॉलर का था और रूस की अर्थव्यवस्था को काफी हद तक मदद पहुचाई थी। अगर आज की बात करे तो दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार 110 अरब डॉलर से ज्यादा का हैं।
दूसरा, कारण ये है कि दोनों को अमेरिका पसंद नही है और दोनों विश्व मे अमेरिका की बादशाहत को चुनौती देते रहते है और दोनों अमेरिका को एशिया में अपनी जड़ें मज़बूत करने से रोकना चाहते है।
वो कहते है ना “दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त”, ये बात चीन और रुस पर भी सटीक बैठती हैं।
यही कारण है कि आज चीन कई देशों से उलझ रहा है और सुपर पावर अमेरिका को भी चुनौती दे रहा हैं।
पर ऐसा सोचना की रूस चीन का साथ देगा चीन की सबसे बड़ी भूल साबित हो सकती हैं।
इसके कई कारण है, आइये कुछ जरूरी बातों पर गौर करते है।
पहला, जिस तरीके से चीन की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और चीन महा शक्ति बनने के काफी करीब पहुच चुका है, आने वाले समय मे चीन, रूस के लिए खतरा बन सकता है क्योंकि रूस और चीन के बीच सीमा विवाद है जिसके कारण दोनों देश 1969 मे युद्ध भी लड़ चुके है और रूस ये भी जनता है कि चीन की नज़र साइबेरिया पर भी हैं जो रूस का अभिन्न अंग है।
दूसरा, अमेरिका ये जनता है कि पश्चिमी देशो और उसके द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने के कारण रूस बहुत हद तक अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मजबूरी में चीन पर निर्भर हो गया है और जब तक रूस चीन के साथ हैं अमेरिका तो क्या दुनिया का कोई देश चीन का बाल भी बांका नही कर सकता, इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में G7 में रूस को शामिल करने की मंशा जाहिर की हैं, वो अलग बात है कि जर्मनी, कनाडा और यू के ने रूस को शामिल करने की बात का विरोध जताया हैं पर अगर ऐसा हुआ तो यूरोप और अमेरिका से रुस के रिश्तों में काफी सुधार होगा और वयापार भी बढ़ेगा इससे ये उम्मीद की जानी चाहिए कि रूस का चीन पे निर्भरता भी काफी कम हो जाएगा।
डोनाल्ड ट्रम्प रूस के महत्व को समझते है जिसके मद्देनजर उन्होंने G7 में रूस को शामिल करने की इच्छा जाहिर की है जो कि चीन के लिए खतरे की घंटी हैं। अब हमें ये देखना है कि क्या ट्रम्प यू के, कनाडा और जर्मनी को मना पाएंगे? और रूस G7 में शामिल हो पायेगा? बेशक यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा जिसका हम सब को भी इन्तजार रहेगा |
सोनल सिन्हा
CEO
IDFT मुंबई