(डॉक्टर मनोज कुमार)
(01 जुलाई,1882 से 01 जुलाई, 1962)
प्रारंभिक जीवन :-
बिधान चंद्र रॉय का जन्म 1 जुलाई, 1882 को बिहार के पटना जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रकाश चन्द्र रॉय और माता का नाम अघोरकामिनी देवी था। बिधान ने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पटना के कोलीजिएट स्कूल से सन् 1897 में पास की। उन्होंने अपना इंटरमीडिएट कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से किया और फिर पटना कॉलेज से गणित विषय में ऑनर्स के साथ बी. ए. किया। इसके पश्चात उन्होंने बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज और कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए अर्जी दी। उनका चयन दोनों ही संस्थानों में हो गया पर उन्होंने मेडिकल कॉलेज में जाने का निर्णय लिया और सन् 1901 में कलकत्ता चले गए। मेडिकल कॉलेज में बिधान ने बहुत कठिन समय गुजरा। जब वे प्रथम वर्ष में थे तभी उनके पिता डिप्टी कलेक्टर के पद से सेवा-निवृत्त हो गए और बिधान को पैसे भेजने में असमर्थ हो गए। ऐसे कठिन वक़्त में बिधान ने छात्रवृत्ति और मितव्यता से अपना गुजारा किया। चूँकि उनके पास किताबें खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे इसलिए वे दूसरों से नोट्स और कॉलेज के पुस्ताकालय से किताबें लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करते थे।
जब विधान कॉलेज में थे उसी समय अंग्रेजी हुकुमत ने बंगाल के विभाजन का फैसला लिया था। बंगाल विभाजन के फैसले का पुरजोर विरोध हो रहा था और लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, प्रजित सेनगुप्ता और बिपिन चन्द्र पाल जैसे राष्ट्रवादी नेता इसके संचालन कर रहे थे। बिधान भी इस आन्दोलन में शामिल होना चाहते थे पर उन्होंने अपने मन को समझाया और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया जिससे वे अपने पेशे में अव्वल बनकर देश की बेहतर ढंग से सेवा कर सकें।
चिकित्सक, शिक्षाशास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता :-
डॉ. बिधान चंद्र रॉय एक प्रसिद्ध चिकित्सक, शिक्षाशास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। देश की आजादी के बाद सन् 1948 से लेकर सन् 1962 तक वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। पश्चिम बंगाल के विकास के लिए किये गए कार्यों के आधार पर उन्हें ‘बंगाल का निर्माता’ माना जाता है। उन्होंने पश्चिम बंगाल में पांच नए शहरों की स्थापना की – दुर्गापुर, कल्याणी, बिधाननगर, अशोकनगर और हाब्रा। उनका नाम उन चंद लोगों में शुमार है, जिन्होंने एम. आर. सी. पी. और एफ. आर. सी. एस. साथ-साथ और दो साल और 3 महीने में पूरा किया। उनके जन्मदिन 1 जुलाई भारत मे चिकित्सक दिवस के रूप मे मनाया जाता है। देश और समाज के लिए की गई उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उन्हें सन् 1961 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मनित किया।
पेशा :-
मेडिकल की पढ़ाई के बाद बिधान राज्य स्वास्थ्य सेवा में नियुक्त हो गए। यहाँ उन्होंने समर्पण और मेहनत से कार्य किया। अपने पेशे से सम्बंधित किसी भी कार्य को वो छोटा नहीं समझते थे। जरुरत पड़ने पर उन्होंने नर्स की भी भूमिका निभाई। बचे हुए खाली वक़्त में वे निजी डॉक्टरी करते थे।
सन् 1909 में मात्र 1200 रुपये के साथ सेंट बर्थोलोमिउ हॉस्पिटल में एम. आर. सी. पी. और एफ. आर. सी. एस. करने के लिए बिधान इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। कॉलेज का डीन किसी एशियाई छात्र को दाखिला देने के पक्ष में नहीं था इसलिए उसने उनकी अर्जी ख़ारिज कर दी पर बिधान भी धुन के पक्के थे अतः उन्होंने अर्जी पे अर्जी की और अंततः 30 अर्जियों के बाद उन्हें दाखिला मिल गया। उन्होंने 2 साल और तीन महीने में एम. आर. सी. पी. और एफ. आर. सी. एस. पूरा कर लिया और सन् 1911 में देश वापस लौट आये। वापस आने के बाद उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज, कैम्पबेल मेडिकल स्कूल और कारमाइकल मेडिकल कॉलेज में शिक्षण कार्य किया।
डॉ. रॉय के अनुसार देश में असली स्वराज तभी आ सकता है जब देशवासी तन और मन दोनों से स्वस्थ हों। उन्होंने चिकित्सा शिक्षा से संबंधित कई संस्थानों में अपना अंशदान दिया। उन्होंने जादवपुर टी. बी. अस्पताल, चित्तरंजन सेवा सदन, कमला नेहरु अस्पताल, विक्टोरिया संस्थान और चित्तरंजन कैंसर अस्पताल की स्थापना की। सन् 1926 में उन्होंने चित्तरंजन सेवा सदन की स्थापना भी की। प्रारंभ में महिलाएं यहाँ आने में हिचकिचाती थीं पर डॉ. बिधान और उनके दल के कठिन परिश्रम से सभी समुदायों की महिलाओं यहाँ आने लगीं। उन्होंने नर्सिंग और समाज सेवा के लिए महिला प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किया।
सन् 1942 में डॉ. बिधान चन्द्र रॉय कलकत्ता विश्विद्यालय के उप-कुलपति नियुक्त हुए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वे ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी कोलकाता में शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था बनाये रखने में सफल रहे। उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ़ सांइस’ की उपाधि दी गयी। डॉ. रॉय का मानना था कि युवा ही देश का भविष्य तय करते हैं इसलिए उन्हें हड़ताल और उपवास छोड़कर कठिन परिश्रम से अपना और देश का विकास करना चाहिए।
राजनैतिक जीवन :-
उन्होंने सन् 1923 में राजनीति में कदम रखा और बैरकपुर निर्वाचन-क्षेत्र से एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में धुरंधर नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को चुनाव में हरा दिया। सन् 1925 में उन्होंने विधान सभा में हुगली नदी में बढ़ते प्रदूषण और उसके रोक-थाम के उपाय संबंधी एक प्रस्ताव भी रखा।
सन् 1928 में डॉ. रॉय को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सदस्य चुना गया। उन्होंने अपने आप को प्रतिद्वंदिता और संघर्ष की राजनीति से दूर रखा और सबके प्रिय बने रहे। सन् 1929 में उन्होंने बंगाल में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कुशलता से संचालन किया और कांग्रेस कार्य समिति के लिए चुने गए। सरकार ने कांग्रेस कार्य समिति को गैर-कानूनी घोषित कर डॉ. रॉय समेत सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
सन् 1931 में दांडी मार्च के दौरान कोलकाता नगर निगम के कई सदस्य जेल में थे इसलिए कांग्रेस पार्टी ने डॉ. रॉय को जेल से बाहर रहकर निगम के कार्य को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कहा। वे सन् 1933 में निगम के मेयर चुने गए। उनके नेतृत्व में निगम ने मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, बेहतर सड़कें, बेहतर रौशनी और स्वच्छ पानी वितरण आदि के क्षेत्र में बहुत प्रगति की।
आजादी के बाद :-
स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी ने बंगाल के मुख्यमंत्री के पद के लिए डॉ. रॉय का नाम सुझाया पर वे अपने चिकित्सा के पेशे में ध्यान लगाना चाहते थे। गांधीजी के समझाने पर उन्होंने पद स्वीकार कर लिया और 23 जनवरी, 1948 को बंगाल के मुख्यमंत्री बन गए। जब डॉ. रॉय बंगाल के मुख्यमंत्री बने तक राज्य की स्थिति बिलकुल नाजुक थी। राज्य सांप्रदायिक हिंसा के चपेट में था। इसके साथ-साथ खाद्य पदार्थों की कमी, बेरोज़गारी और पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थियों का भारी संख्या में आगमन आदि भी चिंता के कारण थे। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से लगभग तीन साल में राज्य में क़ानून और व्यवस्था कायम किया और दूसरी परेशानियों को भी बहुत हद तक काबू में किया। भारत सरकार ने उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से 04 फरवरी, 1961 को सम्मानित किया।
01 जुलाई, 1962 को ठीक 80 वें जन्म-दिन पर उनका निधन कोलकाता में हो गया। उन्होंने अपना घर एक ‘नर्सिंग होम’ चलाने के लिए दान दे दिया। इस नर्सिंग होम का नाम उनकी माता ‘अघोरकामिनी देवी’ के नाम पर रखा गया है।
महत्वपर्ण घटनाक्रम :-
1882: 01 जुलाई को पटना (बिहार) में जन्म हुआ
1901: पटना छोड़कर कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में अध्ययन के लिए कलकत्ता गए
1909: सेंट बर्थोलोमेओव कॉलेज में अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए
1911: एम. आर. सी. पी. और एफ. आर. सी. एस. पूरा करने के बाद भारत वापस लौट आये
1925: सक्रिय राजनीति में प्रवेश
1925: हुगली प्रदूषण से संबंधित प्रस्ताव विधान सभा में रखा
1928: अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में चयन हुआ
1929: बंगाल में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संचालन किया
1930: गिरफ्तार कर अलीपोर जेल भेजे गए
1942: भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी का इलाज किया
1942: कोलकाता विश्वविद्यालय के उप-कुलपति के तौर पर उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शिक्षा और चिकित्सा व्यस्था बनाये रखा
1944: डॉक्टर ऑफ़ साइंस की उपाधि से सम्मानित किये गए
1948: 23 जनवरी को बंगाल के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला
1961: 04 फ़रवरी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया
1962: 01 जुलाई को स्वर्ग सिधार गए
1976: डॉ. बी. सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना हुई