राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
सचिन पायलट ‘‘खोजी खबरदाता’’ के रूप् में उभर चुके हैं । सारे लोग उनके हर एक कदम को विशेष निगाहों से देखते हैं और हर शब्द का विश्लेषण कर अपनी नई सोच बनाकर परोस देते हैं । मीडिया को चाहिए ‘‘सबसे पहले’’ वाली न्यूज, इस के चक्कर में वे हर उस बात पर अपनी नजरें जमारये हुए रखते हैं जो उन्हें सबसे तेज का तमगा दे सके । सचिन इन दिनों इनके दुलारे बन चुके हैं । सबकी निगाहें उनके उठ रहे हर एक कदम पर लगी हुई हैं पर वे हर बार सनसनी फेलाने के मंसूबों पर पानी फेर रहे हैं । 11 जून को उनके पिताजी श्री राजेश पायलट के जन्म दिवस के अवसर पर भी सभी की निगाहें लगी हुई थी कि कहीं वे कांग्रेस छोड़़ने का एलान तो नहीं करेगें, कांग्रेस छोड़कर वे भाजपा में तो नहीं चले जायेगें या फिर स्वंय की पार्टी बनाकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा तो नहीं कर देगें । कई दिनों से कयास लगाये जा रहे थे, सारे लोग स्तब्ध होकर सचिन पायलट की हर एक गतिविधियों को देख रहे थे पर हुआ कुछ नहीं । उन्होने कुछ नहीं बोला और जो थोड़ा बहुत बोला भी वो वही कुछ था जिसे वे बोल-बोल कर थक चुके हैं । खोदा पहाड़ निकली चुहिया…पर चुहिया भी नहीं निकली । सचिन पायलट जानते हैं या वे समझ चुके हें कि वे कांग्रेस में बने रहेगें तो उनका कद बड़ा बना रहेगा, यदि उन्होने पार्टी छोड़ी तो उनका कद नीचे आ जायेगा । एक बार उन्होने प्रयास किया भी था परणिाम यह हुआ कि उनके हाथों से उपमुख्यमंत्री का पद भी जाता रहा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी । वे कांग्रेस छोड़कर गए बड़े-बड़े नेताओं का हश्र भी देख रहे होगें । सचिन पायलट ने समझदारी का काम किया, उन्होने बगावत तो की पर पार्टी नही ंछोड़ी, इसके चलते ही उनका अधिकार बना हुआ है, उनका अधिकार उन्हें देर-सबेर मिल ही जायेगा पर यदि वे पार्टी छोड़ देते हैं तो वे फिर अपना दावा भी छोड़ देगें । वैसे भी कांग्रेस आज कल से बेहतर पोजीसन में हैं, उम्मीद की जा रही है कि अब कांग्रेस और अच्छी स्थिति में आती जायेगी, समय लगेगा पर देश में भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही बन कर उभरेगी । एक समय यह लगने लगा था कि भाजपा का विकल्प ‘आप’ पार्टी बनने जा रही है, पर अब ऐसा नहीं समझ में आ रहा है । आप पार्टी जिस तरह विवादों के घिरी है, वे विवाद भले ही जबरन थोपे गए विवाद हो पर इससे आप पार्टी का ग्राफ नीचे गिरा है । आप पार्टी एक मात्र नेता अरविन्द केजरीवाल के भरोसे चल रही है ओर काई भी राजनीतिक दल एक ही नेता के भरोसे अपना वजूद नहीं बनाए रख सकता । मनीष सिसोदिया हों या सत्येन्द्र जैन वे भले ही जेल में हों पर वे आप पार्टी के दूसरे नम्बर के नेता ही माने जाते रहे हैं । अरविन्द केजरीवाल ने अपना कद बनाए रखने के चक्कर मेें किसी दूसरे नेता को अपने कद के बराबर नहीं आने दिया और जो नेता उनके कद के बराबर थे भी, उन्हें पार्टी से निकाल दिया । इसका नुकसान वे उठा भी रहे हैं । आप पार्टी का गठन जिन लोगों ने मिलकर किया था वे बहुत समझदार और जागरूक व्यक्ति थे पर धीरे-धीरे उन सभी को किनारे पर ला दिया गया अब आप पार्टी मतलब अरविन्द केजरीवाल होकर रह गया है । इस कारण से ही संघर्ष उन्हें अकेले करना पड़ रहा है, एक अकेला कितना संघर्ष करेगा ? अरविन्द केजरीवाल चाहकर भी बहुत कुछ नहीं कर पा रहे हैं पर यदि उनकी पार्टी में और भी बड़े नेता होते तो वे उनके काम को बांट सकते थे । आप पार्टी ने देश पर शासन करने का मंसूबा तो बांध लिया पर उसे अरविन्द केजरीवाल अकेले पूरा नहीं कर सकते । ऐसे में कांग्रेस के आसपास देश की राजनीति सिमटी दिखाई देने लगी है । जो क्षेत्रीय विपक्षी दल कांग्रेस से दूरी बनाए हुए थे वे भी अब कांग्रेस के साथ खड़े होने को मजबूर हो गए हैं । कांग्रेस यदि समझदारी से काम करे तो वो सारे विचक्षी नेताओं को एक जुट कर सकती है । कांग्रेस सहित सारे विपक्षी नेताओं के सामने भाजपा को हराना मुख्य अंजडा है और सच यह भी है कि भाजपा हारेगी ही तब जब सारे विपक्षी दल एकजुट हो जायें और वोटों का बंटवारा रूक जाए । यदि वाकई विपक्ष को भाजपा को हराना है तो उसे अपनी-अपनी लालसा को छोड़कर ऐसा कुछ करना पड़ेगा कि वोट न बंटे । यह तब ही हो पायेगा जब सारे दल केवल उन ही सीटों पर चुनाव लड़े जिन पर वह जीत सकती है, वे इस प्रोलभन को छोड़ दें कि उन्हें अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना है । सीटें किसी भी दल को कम मिलें पर भाजपा हार जाए इस फार्मूला पर काम किया जाना चाहिए । निश्चित ही इसमें कांग्रेस को नुकसान होगा क्योंकि कई राज्यों में वह सीट जीतने की स्थिति में अभी नहीं है, यदि कांग्रेस लोभ को रोक ले और क्षेत्रीय दलों को उनकी मनचाही सीटें दे दे तो समझौता हो सकता है । इस का फायदा भी कांग्रेस को ही मिलेगा क्योंकि बहुत सारी सीटें छोड़ देने के बाद भी उसकी सबसे अधिक सीटें रहेगीं क्योंकि वह सबसे बड़ी पार्टी है । कांग्रेस के ऊपर सभी की निगाह लगी हैं । यदि कांग्रेस इतना समर्पण नहीं करती तो विपक्षी एकता कभी नहीं हो सकती और भाजपा को फिर चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जायेगी । आप पार्टी ने केन्द्र के नए अध्यादेश के खिलाफ एक बड़ी रैली दिल्ली में की । मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक राजा की कहानी सुनाई वैसे वे बहुत अच्छे कथाकार और बहुत अच्छे वाचक नहीं है इसलिए कहानी में रोचकता नहीं आ पाई । कहानी को तो प्रधानमंत्री मोदी जी के इर्दगिर्द घूमना था सो वो घूमी भी पर रोचकता नहीं आ पाई और उसका अंत भी अच्छा नहीं रहा । आप पार्टी ने रैली की सफलता पर खुद की ही पीठ थपथपा ली । एक रैली ब्रजभूषण ने भी की । ब्रजभूषण इन दिनों सुर्खियों में हैं, उन पर महिला पहलवानों ने उत्पीड़न के आरोप लगाये हुए हैं । आरेाप गंभीर हैं पर फिर भी ब्रजभूषण को जांच के नाम पर नेतागिरी करते रहने का अवस दिया जा रहा है । कानून सभी के लिए समान होते हैं इस बात को सुना तो बहुत हे पर वास्तविकता में दिखाई नहीं देता । आप आदमी पर यदि ऐसे आरोप लगते तो वह कभी का जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया होता उसकी तो जमानत तक नहीं होती पर ब्रजभूषण सिंह सरेआम घूम रहा है और चेंलेज कर रहा है ‘‘समरथ को नहीं देष गुसाई’’ पर इतना अवश्य है कि इस सााी प्रक्रिया से भाजपा की ही फजीहत हो रही है । दिल्ली पुलिस आरोप लगाने वाली महिला पहलवानों से सबूत मांग रही है ? इसे भी बेशर्मी की हद ही माना जायेगा । ब्रजूभषण को बचाकर क्या साबित किया जा सकता है कि यह ही कि जो हमारी शरण में है उसका बालबांका भी नहीं हो सकता भले ही आरेप वे महिला पहलवान लगायें जिनके तमगे से हर भारतवासी का सिर ऊंचा हुआ हो । ब्रजभूषण सिंह ने मुसकुराते हुए गले में ढेर सारी फल मालाएं पहने हुए कह दिया ‘6होहिं वही जो राम रचि राखा’’ उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं है, उसके चेहरे पर कुटिल मुसकान है यह मुस्कान बता रही है कि उसके ऊपर कितना बड़ा वरदहस्त रखा हुआ है । इस लड़ाई का अंत क्या होगा ? खेल मंत्री ने आश्वासन दिया है कि 15 तारीख तक कुछ न कुछ अवश्य ही होगा, पर क्या होगा ? यह तो लग नहीं रहा कि ब्रजूभषण सिंह को अरेस्ट कर लिया जायेगा और न ही यह भी लग रहा है कि सिद्धान्तवादी पार्टी भाजपा उसे निकाल देगी । वो दम ठोक रहा है कि अगला चुनाव भी वही लड़ेगा । फिर क्या महिलावान एक बार फिर धरना पर बैठेगें ? अंत कुछ समझ में नहीं आ रहा है । धर्म परिवर्तन की घटनाओं का भी अंत समझ में नहीं आ रहा है । धर्म परविर्तन करने वालों के खिलाफ जिस तरह से कठोर कार्यवाही की जा रही है उससे कई आश्चर्यचकित कर देनी वाली घटनायें भी सामने आ रही हैं । आनलाइन गेम के माध्यम से ब्रेनवास कर धर्मपरिवर्तन कराने की प्लानिंग भी उजागर हुई है । इस घटना ने तो हर एक माॅ-बाप को चिन्तित कर दिया है । मोबाइल का चलन बढ़ चुका है, लगभग हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है । इस मोबाइल में वह दिन-रात क्या करता है माॅ-बाच चाहकर भी उस पर नजर नहीं रख सकते । बच्चों की रूचि आनलाइन गेम की तरफ तेजी से बढ़ चुकी है । एक बच्चे ने तो अपने माॅ-बाच के खाते में जमा लाखों रूपयों से आनलाइन गेम खरीद कर उन्हें कंगाल कर दिया । इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चों के बीच गेम कितने लोकप्रिय हो चुके हें । इसकी ही फायदा तथा कथित धर्मपरिवर्तन कराने वाले उठा रहे हैं । वे गेम में जीतने का मंत्र बता रहे हैं और बच्चों को उस धर्म विशेष की ओर आकर्षित कर रहे हैं । बच्चे तो बच्चे ही होते हैं वे बहक जाते हैं, वे दबाव में आ जाते हैं तो उनका धर्म परविर्तन कराना आसान हो जाता है । मध्यप्रदेश के एक स्कूल गंगा जमुना में भी ऐसे ही बच्चों को एक धर्म विशेष की ओर मोड़ा गया । जब चर्चाओं में आया तो तहलका मच गया । चर्चा में इसलिए आया कि उस स्कूल ने अपने स्कूल की टाॅपर छात्राओं के जो पोस्टर बनवाकार लगाये उनमें हिन्दु बच्चियों को भी हिजब पहने दिखाया गया । उस स्कूल की स्टाफ की महिला टीचर तक धर्म परिवर्तन कर अपना नाम और रहन सहन बदल चुकी हैं । एक बहुत बड़ा गिरोह इस दिशा में काम कर रहा है, जिसे विदेष््राों से मदद मिल रही है । पूरे देश में अब इसको लेकर हलचल मच चुकी है । दिल्ली के एक रैनबसेरा में एक व्यक्ति पकड़ाया जो धर्म परिवर्तन करा रहा था । ये घटनायें बहुत चिन्ता पैदा करने वाली हैं । ऐसी घटनायें एक धर्म विशेष के प्रति आम लोगों में अच्छे विचार पैदा नहीं कर पा रही हैं । लव जिहाद भी बहुत बढ़ चुका है । क्या लव जिहाद भी एक सोची समझी रएानीति के तहत हो रहा है अब इस पर भी चिन्त किया जाने लगा है । ऐसी घटनाये उनको ही मजबूत कठघरे में खड़ी रही हैं जो ऐसा कर रहे हैं । लोग जागरूक हो रहे हैं और ऐसी घटनायें करने वालों के खिलाफ माहौल बनता जा रहा है जिस परिणाम बहुत सारे लोगों को भोगना पड़ेगा ।