बचपन,यौवन,प्रौढ़ावस्था, बुढ़ापा ये तो प्रत्येक के जीवन की अमिट कहानी है।राजा हो या रंक,धनी हो या धनहीन,उद्योगपति हो या मज़दूर सब को हीइस चक्र से ही गुजरना हीगुजरना है।गौतम बुद्ध ने तो बूढ़े व्यक्ति को देखकर व्यथित हो वैराग्य ले कर राजपाट को ही त्याग दिया था। इन्सान अपनीजवानी के पैंतीस-चालीसवर्ष धनोपार्जन व बच्चों के पालनपोषण में व्यतीतकर देता है। बच्चों की भावी जरुरतों व बुढ़ापे में अपने सुखद भविष्य के लिये धन संचय भी करता है।इन्हीं बच्चों के लिये वोकई बार अपनी खुशियों व इच्छाओं का भी पूरी तरह से परित्याग कर देता है।इस अवस्था में आने के बाद हम में से किसी के भी पास ज्यादा वर्ष शेष नहीं होते,जाते समय हम कुछ भी नहीं ले जा पाएंगेइसलिये मन में अधिक लालसा न रखें। जो खर्च आप कर सकते हैं, करें,जो आनंद आप ले सकते हैं, लें।आप में जो भी दानकरने की क्षमता है, दान दें।
इस अवस्था में बिल्कुल भी यह चिंता न करें कि हमारे जाने के बाद क्या होगा?क्योंकि जब हम राख में मिल जाएंगे तो हम प्रशंसा या निंदा का अनुभव नहीं कर पाएंगे।सांसारिक जीवन के आनंद लेने का समय वापस नहीं आएगा, कड़ी मेहनत से कमाया धन यहीं पर धरे का धरा रह जायेगा।अपने बच्चों की ज्यादा चिंता न करें,उनका भी तोअपना भाग्य है, वो अपने जीवन की राहें खुद ही चुन लेंगे। उनके लिये तोजितना छोड़ कर जाने की सोचेंगे, वो उससे भीज्यादा चाहंगे और नहीं मिला या उम्मीद नहीं दिखी तो आप घर में रहते हुए भी अजनबी से हो जायेंगे और दूर रह कर तो अजनबी हैं ही। हाँ, कुछ अपवाद तो हो ही सकते हैं और यही अपवाद तो अंधेरे में रोशनी की किरण हैं।उजड़े हुए चमन में बसंत की बहार है। कब्र में जाने तक मेहनत करने से तो अच्छा है, जिंदगी का पूरा आनंद ले। जो सुख आपतब गृहस्थी के चक्कर मेन खुद ले सके,न जीवनसंगिनी को दे सके,अब उसकी शुरुआत कीजिए,बड़ा मजा और आनंद आएगा। बात बात पर एक दूसरे को हड़काते भी रहोगे,मुस्कराओगे भी,परजुदा होने की सोच भी नही पाओगे।
दौलत कमाने के लिये सेहत का व्यापार न करें।कहीं जाने का समय भी जल्द न आ जाये,शायद तब पैसे में भीें इतनी क्षमता न रहे कि वो आपको आपकी सेहत खरीद कर दे सके।कितने बड़े ही बंगले हो आपके पास,सोने के लियेतो आठ वर्गमीटर जगह ही चाहिए।आपके पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन व खर्च करने के लिये पर्याप्त धन है तो आप सुखी है और इतना हीपर्याप्त है, बस ऐसा सोचते ही आप अपनी नज़र में शहनशाह हो जाएंगे।अपने बच्चों व अपनी दौलत की तुलना दूसरों सेन करें,बस यहीं आप सब कुछ अपने पास होते हुए भी ‘कुछ नहीं है’ का भाव आते ही एकाएक निराश,दुःखी व परेशान हो जाओगे। जिन चीजों, लोगों व परिस्थितियों को आप बदल नहीं सकते उसके बारे में चिंता करना छोड़ दो।मौन रह कर बच्चों को उनके बच्चों में ही मस्त रहने दो,खुद अपने आसपास रहने वाले हमउम्र ‘बच्चों ‘को अपनादोस्त बना लो, उनके साथ हंसी खुशी घूमो,समाज सेवा के कार्यों में हाथ बंटाओ,अलग तरह की खुशीका एहसास होगा औरयश भी मिलेगा,यही अन्त में साथ जाएगा।सच है,बच्चे वसीयत पूछते हैं, रिश्ते हैसियत पूछते हैं, दोस्त ही हैं, जोखैरियत पूछते हैं।याद रहे”बुढ़ापा बोझ नहीं है,ये तो अंतिम उपहार है,विधाताका। यथाशक्ति दो दान, करते रहो शुक्राना हर पल उसदाता का।।छूट गए तब जो सपने,उन में रंग भरने का,अब यही तो असली वक्त है।आनंदमग्न रह आंनद ले, जो आज के हर क्षण का, वो हर हाल में सशक्त है।।-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकारसेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरियाणा)मो०9034365672