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माटी में मिल गई माफियागिरी   

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव

‘‘जैसी करनी, वैसी भरनी’ यह कहावत तो सदियों से लोकमानस में गूंजती आ रही है और अनेक बार इसे चरितार्थ होते हुए भी देखा है । उत्तरप्रदेश का कथित डान अब इसे चरितार्थ कर रहा है । बबूल बोओगे तो कांटे ही पाओगे सो अीतक अहमद अब कांटों का ताज पहनकर चीत्कार कर रहा है । उसके प्रति किसी की भी संवदेना नहीं है । एक समय था जब प्रयागराज में अतीक की सहमति के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था पर अब डालें उसके ऊपर टूट कर नहीं गुस्से में ही गिर रहीं हैं । कितना भय था अीतक अहमद का इसकी कहानियां भी सामने आने लगीं हैं । खौफनाक वारदातों का सरताज और क्रूरता की मिसाल बन चुके इस माफिया ने एकतरफ राज किया है प्रयागराज में । वैसे तो प्रयागराज धार्मिक नगरी है, यहां गंगा और जमुना हिलमिलकर कल-कल कर बहती हैं, भव्य मंदिर और उनमें बजने वाली घंटयों की मधुर आवाज से सारा क्षेत्र गूंजता रहता था, पर इन आवाजों में कुछ आवाजें दर्दभरी भी होती थीं जिसका जबाबदार अतीक होता था । हफ्ता वसूली तो छोटा आरोप है, ऐसे कांड तो छुटभैया गुंडा करते हैं, अतीक अहमद इससे बड़े-बड़े कांड करता था, केवल धमकी नहीं दी जाती थी बल्कि हत्या भी कर दी जाती थी ? अब एक-एक कर गुनाह सामने आ रहे हैं । हर गुनाह में निरीह निवासियों का दर्द छिपा है और उनकी गहरी आह भी । कभी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था कि इस गुंडे की हालत इस तरह की हो जायेगी । उत्तर प्रदेश में सारे माफिया राजशाही की शह पर ही पनपे हैं और राजशाही ही अंत में उनसे परेशान होती रही है । अतीक भी राजशाही का अंग रहा, वह गुडई के बल पर लोकसभा का चुनाव जीता और सांसद बन गया, वह पांच बार विधानसभा का चुनाव जीता और विधायक बना । जाहिर है कि वह सत्ता के गलियारे का भी बेताज बादष््रााह रहा । सत्ता को आंकड़े चाहिए, इन आंकड़ों की पूर्ति के लिए वे उन्हें भी टिकिट दे देते हैं जो किी भी तरह से जीत जाए । अतीक कैसे जीता होगा अंदाजा लगाया जा सकता है । सत्ता के हीरो से पुलिस भी भय खाती है और प्रशासन भी । दोनों का जब भय खत्म हो जाता है तो व्यक्ति निरंकुश टाइप का हो जाता है । अतीक भी ऐसा ही हुआ । पर जब उत्तर प्रदेश की कमान योगी जी के हाथों में आई तो उन्होने गुडों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया यही कारण है कि आज वही पुलिस जो अतीक से भय खाती थी उसके सामने अपने कर्तव्यों का पालन करती दिखाई दे रही है । जो जज अतीक के केस से अपने आपको दूर कर लेते थे वे सीना चैड़ा कर न्याय कर रहे हैं । अतीक रहम की भीख मांग रहा है और उसके सताए हुए लोग, परिवार उसे कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं । समय बदलता ही है, समय तो सिंधिया जी का भी बदल गया है । कल तक कांग्रेस उन्हें अपना सबसे वफादार साथी मानती थी वह ही आज उन्हें कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है । बात तो राहुल गांधी के ट्वीट से प्रारंभ हुई थी, जिसमें उन्हेाने इशारों में अडानी के मामले में जोड़ा था पर बात इतनी बढ़ी कि वे गद्दारों की श्रेणी में रखे जाने लगे । भारत की स्वतंत्रता के समय उनके पूर्वजों ने अंग्रेजी हुकमत का साथ दिया था, यह इतिहास में दर्ज है, इस बात को रेखांकित किया जाने लगा । पूर्वजों ने क्या किया वह नई पीढ़ी के लिए उसकी जबाबदारी बनती भी नहीं है, दूसरे उस समय परिस्थितियां क्या रहीं इसका आंकलन भी किया जाना आवश्यक होता है । कांग्रेस इतिहास के गंुम हेा चुके पन्नों में से उन पर प्रहार कर रही है और ज्योतिरादित्य सिंधिया इन आरोपों से अपने आपको बचा रहे हैं । यदि वे गद्दार ही थे तो इतने सालों तक कांग्रेस के लिए हीरो क्यों बने रहे । राजनीति के लिए इतिहास का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है, प्रश्न बहुत से हैं पर उत्तर एक ही है कि समय होत बलवान । राजनीति के चक्कर में ऐसे कई प्रश्न खड़े किए जाते हैं और आगे भी खड़े किए जाते रहेगें । कर्नाटक मेें विधानसभा चुनाव होने हैं । एक समय था कि कर्नाटक की राजनीति में भाजपा के मान्य बड़े नेता यदुरप्पा जी की सहमति आवश्यक होती थी पर अब समय बदल गया अब यदुरप्पा राजनीतिक वनवास की ओ अग्रसर कर दिए गए हैं । कोई भी नेता अपनी मर्जी से कभी सन्यास नहीं लेता, पर भाजपा सन्यास दिलाने मेें माहिर है, उसने बड़े-बड़े नेताओं को सन्यासी बना दिया है ‘‘चल सन्यासी मंदिर में’ की स्टाइल मेें । केन्द्र के कई बड़े नेता सन्यास ग्रहण कर चुके हैं हाल ही में गजरात में भी ऐसा ही हुआ, गुजरात भाजपा के कई बड़े नेताओं को कह दिया गया कि अब तुम्हारे सन्यास लेने का समय आ गया है, बेचारे वे मनमसोस कर सन्यास हो गए । कर्नाटक में भी ऐसा ही हो रहा है । भाजपा सीधे-सीधे यह नहीं कहती कि अब हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है वह सम्मान के साथ कह देती है कि अब तुम्हारी उम्र राजनीति की नहीं रही । नेता अपने आपको देखता है , वह अभी बूढ़ा कहां हुआ है केवल उम्र बढ़ी है, सारा चक्कर उम्र का ही तो है । एक उम्र के बाद सन्यास ग्रहण कर लो खुद नहीं करोगो तो जबरन करा दिया जायेगा । जबरन वाली स्थिति केवल भाजपा में ही हो सकती है, दूसरी पार्टी में तो बगावत हो जायेगी और हुई भी है । दूसरी पार्टी के नेताओं के पास भाजपा एक नए ठिकाने के रूप् में सामने आ जाती है, पर भाजपा के नेताओं के लिए नया ठिकाना है ही नहीं, वे केवल मनमसोस कर रह जाते हैं । कर्नाटक में भी कई नेताओं के टिकिट ऐसे ही कट गए, वे बेचारो अपना दुख तक प्रकट नहीं कर पाए, वंे किसके सामने रोऐं, रोने के लिए भी एक कांधा चाहिए, भाजपा में ऐसा कांधा मिलता ही नहीं है । अभी और जिन राज्यों में चुनाव होना हैं वहां भी कुछ नेताओं को सन्यासी हो जाने का बोल दिया जायेगा और वे सन्यासी हो भी जायेगें, वंे अपने आरमां को आंसुओं में बहाकर पुराने दिनों को याद करते रहेगें ।एक प्रयोग यदि सफल हो जाता है तो फिर उस प्रयोग को बार-बार दोहराया जाता रहता है । जबरन सन्यास ग्रहण कराने का भाजपा का प्रयोग सफल हो चुका है इसका मतलब अब हर राज्य में यह प्रयोग दोहराया जाता रहेगा । हर राज्य के नेता संशकित हैं, उन्हें नहीं मालूम कब उनसे कह दिया जायेगा ‘‘जाओ सन्यास ले लो’’ । वेसमझ नहीं पा रहे हैं कि चुनाव के लिए नया कुरता-पायजामा सिलवायें या नहीं, वैसे भी कपड़ा जीएसटी के फेर में मंहगा हो चुका है, पहले देख लो उन्हें सफेद कुरता-पायजामा ही सिलवाना है कि सन्यासी वाले कुरता-पायजामा सिलवाना है । नेता संशकित हैं, वे असमंजस में हैं, उनके सन्यास का फैसला उनके हाथों में नहीं है । अभी तो कर्नाटक मेे चुनाव हो रहे हैं तो वहां के नेताओं का फैसला कर दिया गया है । यदुरप्पा चुनाव नहीं लड़ेगें, उनके जैसे कुछ और नेता भी चुनाव नहीं लड़ेगें, उनके चेहरों पर मायूसी छा चुकी है । वे हसरत भरी नजरों से सत्ता की कुर्सी की ओर देख रहे हैं जो अब उन्हें कभी नहीं मिलेगी । समय बलवान होता है, समय ने सिद्ध कर दिया है । राजस्थान में भी चुनाव होना हैं, सो धमाचैकड़ी मची हुई है । सचिन पायलट का गुस्सा रह-रह कर फूट रहा है, उन्होने अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर दिया । इससे ज्यादा वे कुछ और कर भी नहीं पा रहे हैं । वैसे सच तो यह है ही कि सचिन पायलट के साथ न्याय नहीं हुआ है, उन्हें लालीपाप देने का बोला तो जाता रहा है पर दिया नहीं गया है । वे बड़े नेता हैं और उन्होने जी तोड़ मेहनत कर राजस्थान मेें कांग्रेस को मजबूत बनाया भी है पर सत्ता का लालीपाप अशोक गहलोत खा रहे हैं, उनकी नाराजगी जायज है । उन्होने जो कर सकते थे कर दिया अब क्या होगा यह देखा जायेगा । राजस्थान में ही भाजपा की एक नेत्री है वसुंधरा राजे । समय उनके साथ भी खिलवाड़ कर रहा है । राजस्थान में एक पोस्टर विवादों में आ गया । इस पोस्टर में सबसे आगे वसुंधरा राजे खड़ी है उनके एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी हैं और दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह । इसके अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ भी हैं और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी दिखाई दे रहे हैं । उपराष्ट्रपति का पद तो राजनीति में आता ही नहीं है फिर उनकी फोटो क्यों लगाई गई ? प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की फोटो सबसे आगे ही रहती है फिर उन्हें पीछे कैसे कर दिया गया ? प्रश्न अनेक हैं यही कारण है कि पोस्टर विवादों में आ गया है । अब यह विवाद कहां तक जायेगा कहा नहीं जा सकता, पर किसी न किसी को तो इसका मुआवजा चुकाना ही होगा ।

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